एक दिया हूं मैं…
मैं मशाल नहीं हूं तो न सही
एक दिया बन के जलती रहूंगी मैं
वक्त बदल न सकूं तो न सही
मील का पत्थर तो बनती रहूंगी मैं.
एक नई सोच की शुरुआत हूं मैं
एक नए साज की आवाज हूं मैं,
दूर तक जा न सकूं तो न सही
जहां तक चल सकूंगी चलूंगी मैं.
छोटे-छोटे से हैं, प्रयास मेरे ये
किसी दिन तो आंधी बनेंगे ये
आज हूं अकेली इस सफर में मैं
कल एक से हजार बनूंगी मैं.
टूटी हूं पर हारी नहीं हूं मैं
सोने सी तप के निखरूंगी अभी और मैं
भावनाओं में बहती रही हूं मैं
पर चट्टान सी खड़ी भी रही हूं मैं.
धीरे-धीरे सही पर बदलेगी तस्वीर ये
इस सोच के साथ जी रही हूं मैं
तुम साथ दे सको या न दे सको
इस राह पर अकेली ही चलूंगी मैं.
जहां जरूरी होगा हंगामा करूंगी मैं
वरना शांति से लड़ाई ये लड़ूंगी मैं
शांति से हर लड़ाई लड़ूंगी मैं
पर गर
जरूरी हुआ हंगामा करूंगी मैं.
किसी का अपमान करना मेरा मकसद नहीं
किसी को दुख पहुंचाना मेरी मंजिल नहीं
पर सच तो हां लिखती रहूंगी मैं
पर सच तो हां लिखती रहूंगी मैं.
– डॉ. नूपुर गोयल