झारखण्ड

झुमरा पहाड़ माओवादियों का सेफ प्लेटफाॅर्म, पुलिस के लिए बना चुनौती

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बोकारो थर्मल। रामचंद्र अंजाना
नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के लिए झुमरा पहाड़ का बड़ा महत्व है। पारसनाथ पहाड़ पर कमजोर पड़ने के बाद कहा जाता है कि माओवादियों का यहां केंद्रीय मुख्यालय बन गया है। यही कारण है कि यहां उनकी उच्चस्तरीय कमेटियों की बैठक समय-समय पर होती है। इसे नक्सलियों का अभेद दुर्ग कहा जाता है, लेकिन अब यहां भी वे खतरे में हैं। यही कारण है कि अपने गढ़ को बचाने के लिए माओवादी आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में माओवादियों को उखाड़ फेंकने के लिए सीआरपीएफ एवं पुलिस टीम कोई कसर नहीं छोड़ रही है। माओवादियों का हथियारबंद दस्ता करीब डेढ़ माह से झुमरा पहाड़ में डेरा डाले हुए हैं। इसकी सटीक सुचना बोकारो पुलिस को भी थी। करोडों का इनामी माओवादी मिथिलेश उर्फ दुर्योधन महतो अपने जेड़ सुरक्षा के अतिरिक्त जोन के हथियार बंद दस्ता के संगठन की आंतरिक ढांचा को मजबूत करने करने के लिए झुमरा पहाड़ पहुंचा है। इससे पहले संगठन ने उसे सांरडा भेज दिया था। सांरडा से वापस झुमरा पहाड़ पहुंचने की मकसद बोकारो पुलिस लग गयी थी। पुलिस उन्हें यहां से बाहर निकलने नहीं देने के लिए पहाड़ पर सीआरपीएफ गोपनीय ढंग से सर्च ऑपरेशन चला थी, कि दोनों के बीच आज रजडेरवा गांव के पास जंगल में मुठभेड़ हो गयी। यहां अब तक दर्जनों बार बार मुठभेड़ हो चुकी है लेकिन न सीआरपीएफ पीछे हटी ना माओवादी। झुमरा पहाड़ से माओवादी मिथिलेश उर्फ दुर्योधन को सांरडा भेजे जाने के बाद पारसनाथ जोन का कमांडर अजय महतो को यहां का कमान सौंपा गया था। सूत्रों के अनुसार दस्ते में करीब 70 से अधिक नक्सली शामिल हैं। पहाड़ पर पानी का कोई प्रबंध नहीं है। ऐसे में वे डेढ़ माह से कैसे कैंप किए हुए हैं, जबकि पहाड़ पर अब आम आदमी शायद ही कहीं नजर आता है। बोकारो के तत्कालीन एसपी तदाशा मिश्रा के कार्यकाल में मिथिलेश को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। जेल से छुटने के बाद फिर से माओवादी मिथिलेश उर्फ दुर्योधन महतो पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है। लाख कोशिश के बावजूद पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर सकी।

पुलिस ने इस गिरफतार करने के लिए लाख से करोड रूपया तक की इनाम राशि रखी है। लेकिन पुलिस को कुछ खास कामयाबी नही मिली है। सुत्रों का कहना है मिथिलेश उर्फ दुर्योधन महतो को गांव के लोगों से संबंध बहुत अच्छा ओर विश्वास के कारण इसके खिलाफ कोई सुराग पुलिस को नही मिल पाती है। खासमहल परियोजना में लेवी को लेकर 23 हाइवा ड़परों को जलाने के बाद वह दुबारा झुमरा पहाड़ में अपना किला मजबुत कर संगठन में शीर्षस्थ पद हासिल किया। उसके बाद संगठन ने उसे सांरडा का कमान सौंप दिया। इसके बाद बाद शुक्रवार की रात रेलवे लाइन के दोहरीकरण के कार्य में लगे कंपनी का समान को आग कि हवाले करना माओवादियों का प्लांइनिग था। मुठभेड़ माओवादियों की प्लांनिग नही एक संयोग कहना उचित रहेगा। सूत्रों का कहना है कि माओवादियों को पुलिस मुमेंट की सूचना देर से मिली, सूचना मिलने के पक्षचात वहां से माओवादी निकलने वाले थे कि पुलिस कुछ दुरी पर से दिख गए ओर गोली चलाना शुरू कर दिया। फिलहाल माओवादी अपनी मजबुत किला को बचाने के लिए झुमरा पहाड़ पर संघर्ष करते नजर आ रहें है। लाल सलाम की गुंज लगभग बंद सी हो गयी है, कभी-कभार सिर्फ गोलीबारी की गुंज उठती रहती है।

झुमरा पहाड स्थित पुलिस व सीआरपीएफ कैंप को हटाने के लिए माओवादियों ने 90 करोड़ की पेशकश भी कर चुकी है। इसके बाद से पुलिस वहां पर लगातार कार्रवाई जारी रखी है। कई बार पुलिस को सफलता मिली है, तो कई बार मुंह के बल चोट खानी पडी़ है। अब तक के कार्रवाई में तत्कालीन एसपी प्रिया दूबे के कार्यकाल में ही पुलिस को सिर्फ सफलता मिली है। तेज-तरार्र एसपी अनिल पाल्टा के समय भी कई बार मुठभेड़ हुई थी, लेकिन कई जवान शहीद हुए थे। मोस्ट वाॅटेड माओवादी मिथिलेश का खुफिया तंत्र पुलिस से भी ज्यादा मजबूत है। इसी का नतीजा है कि पुलिस हर बार मिथिलेश के आगे नतमस्तक हो जाती है।

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