आनंद सिंह
दिल्ली के चुनाव में सिर्फ भाजपा ही नहीं हारी, पाकिस्तान और आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले भी पराजित हुए।
दिल्ली के चुनाव में अलका लांबा हार गईं, जो आप से कांग्रेस में गई थीं, इस अकड़ के साथ कि उन्हें आप की जरूरत नहीं। उनका मानना था कि वह कांग्रेस जैसी प्रायः मृतप्राय पार्टी से भी लड़ कर जीत सकती हैं। उनका घमंड टूट गया।
दिल्ली के चुनाव में शाहीन बाग और अमित शाह का कथित करंट नहीं लगा विरोधियों को। हां, भाजपा को जोर का झटका जरूर लगा।
शाहीन बाग में लोगों ने ऐसा बटन दबाया कि कमल का फूल मुरझा ही गया।
दिल्ली के चुनाव में बजरंग बली की कृपा अरविंद केजरीवाल पर बरसी और वह नई दिल्ली से चुनाव जीते।
दिल्ली के चुनाव में, दिल्ली की जनता ने 8 फरवरी का वह आडियो, वीडिओ और ट्वीट संभाल कर रखा है, जो मनोज तिवारी ने संभाल कर रखने को कहा था। कई लोग उसे री-ट्वीट भी कर रहे हैं।
दिल्ली के चुनाव में हरियाणा के उन नेताओं की मेहनत पर भी पानी फिर गया, जो आउटर, सेंट्रल, नार्थ और ईस्ट दिल्ली में दम-खम लगाए हुए थे। सब जगह प्रायः उन्हें हार ही मिली।
दिल्ली की जनता ने जो जनादेश दिया, वह समझने योग्य है।
एससीडी में भाजपा
देश में भाजपा
स्टेट में दिल्ली
यही कांसेप्ट है, दिल्ली का।
इसे केजरीवाल समझते हैं।
संजय सिंह, सिसौदिया भी समझते हैं।
सिसौदिया को अपनी समझ और बढ़ानी होगी क्योंकि पटपड़गंज से वह हारते-हारते बच गए।
उनकी विजय में वह चार्म नहीं, जो 2015 में थी। कारण की मीमांसा उन्हें ही करनी होगी।
जो जीता, वही सिकंदर।
आज केजरीवाल एंड टीम जीती है।
कल मनोज तिवारी एंड टीम जीत सकती है।
अहम है, दिल्ली का विकास और मुफ्त में चीजों को देने की परंपरा को खत्म करना।
मुफ्त में चीजों को देने से उसकी महत्ता कम होती है। केजरीवाल को हैट्रिक की बधाई।