भगवत सरन साहू
भारतीय समाज भले ही 21वीं सदी के दो दशक पार कर चुका है लेकिन दहेज का दंश आज भी हमारे समाज को निगल रहा है. आज भी हमारे समाज में हजारों बेटियां दहेज की बलि चढ़ रही हैं तो वहीं लाखों बेटियों को घुट-घुट कर जीने पर मजबूर होना पड़ रहा है. कुछ बेटियां ऐसी भी हैं जो इसके खिलाफ आवाज उठाना चाहती हैं लेकिन कानून के बारे में सही जानकारी न होने पर या तो वे थाने तक ही नहीं पहुंच पातीं या फिर पुलिस उनकी बात ही नहीं सुनती. कानूनी जागरूकता के अभाव में जब बेटियों को इंसाफ नहीं मिलता है तो वह या तो खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा लेती है या फिर आंसुओं के घूंट पीती रहती हैं. ऐसी महिलाओं के लिए आईपीसी की धारा 498 ए एक बड़ा हथियार है. जब किसी विवाहित महिला को उसके पति या ससुराल वालों द्वारा दहेज को लेकर शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा सकती है. यह मुकदमा वही महिला दर्ज करा सकती है जिसकी शादी के सात साल से अधिक न हुए हों. शादी के सात साल बाद यह धारा लागू नहीं होती. इस धारा के तहत आरोप सिद्ध होने पर तीन साल तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है.
यह कानून निम्न परिस्थितियों में लागू होता है.
किसी स्त्री को तंग करना जहां उसे या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधि विरुद्ध मांग को पूरा करने के लिए प्रताड़ित करने के लिहाज से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति व्यक्ति के ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण तंग किया जा रहा हो.
इसके अलावा जान-बूझकर किसी विवाहित महिला के प्रति किया गया ऐसा आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे स्त्री को आत्महत्या करने के लिए या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य के प्रति गंभीर खतरा कारित करने के लिए उसे प्रेरित करने की संभावना है, उस पर भी यह कानून लागू होगा.
पिछले कुछ समय में यह कानून दहेज उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के लिए काफी लाभकारी साबित हुआ है. इस कानून का लाभ उठाने वाली कई महिलाओं ने अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत भी की है. इसलिए दहेज उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाएं.
(भगवत सरन साहू, एडवोकेट, बरेली)
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