पंजाब

नगर निगम में भर्ती घोटाला, गरीबों के हक पर डाका डाला, बेरी बोले-दिखवाएंगे मामले को

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
भ्रष्टाचार और रिश्वत खोरी का अड्डा बन चुके जालंधर नगर निगम का एक और काला कारनामा सामने आया है. अबकी बार नगर निगम में भर्ती घोटाला उजागर हुआ है. यह घोटाला कोई आज नहीं हुआ बल्कि पढ़े लिखे होनहार युवाओं के हक पर डाका डालने का खेल लगभग तीन साल पहले ही खेला गया था जिसे अब व्यापक स्वरूप देने की तैयारी चल रही है.
दरअसल, नगर निगम में दिल्ली की एसएस कंपनी को आउटसोर्सिंग पर कर्मचारी मुहैया कराने का ठेका दिया गया है. इस कंपनी के माध्यम से नगर निगम के कर्मचारियों, पार्षदों ने अपनी पत्नियों, बहनों और रिश्तेदारों को ही नौकरी पर रखवा दिया है. सूत्र बताते हैं कि इस खेल में मेयर और कमिश्नर कार्यालय के कर्मचारी भी शामिल हैं. उन्होंने रिश्वत की मोटी रकम लेकर कर्मचारियों की पत्नियों और पार्षदों के रिश्तेदारों को नौकरी पर रखवाया था. इन पदों पर अयोग्य लोगों को कंपनी की ओर से तैनात कर दिया गया है. सूत्र बताते हैं कि कंपनी को निगम की ओर से इन कर्मचारियों की सैलरी के रूप में 15 हजार रुपए प्रतिमाह का भुगतान किया जाता है जबकि कंपनी की ओर से कर्मचारियों को 12 हजार रुपए ही दिए जाते हैं. ओएंडएम में तैनात वंदना डालिया पत्नी हिमांशु पुरी समेत ऐसे करीब सौ से भी अधिक कर्मचारी हैं जो मेयर कार्यालय के कर्मचारियों की मेहरबानी से मौज उड़ा रहे हैं. बताया जाता है कि ये कर्मचारी सुबह 12 बजे दफ्तर आते हैं और शाम को चार बजे घर चले जाते हैं. कुछ स्टाफ को टाइपिस्ट की पोस्ट पर तैनात किया गया है जिन्हें टाइपिंग आती ही नहीं है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर नगर निगम को जब इन कर्मचारियों की जरूरत ही नहीं थी तो फिर इनके नाम पर करोड़ों रुपया क्यों बर्बाद किया जा रहा है. इसका असल खेल तो अब शुरू होना है. सूत्र बताते हैं कि इन कर्मचारियों को अब पक्का करके निगम का स्थायी कर्मी बनाने की तैयारी की जा रही है. इसके एवज में इनसे दो साल की सैलरी के बराबर रकम रिश्वत के तौर पर ली जानी है.
सोचने वाली बात यह है कि इस सारे खेल को इतने शातिराना तरीके से अंजाम दिया जा रहा है कि कोई पकड़ भी न सके. दरअसल, पहले रिश्वत लेकर इन्हें आउटसोर्सिंग कंपनी के माध्यम से निगम में बैक डोर से बिना किसी परीक्षा और इंटरव्यू के एंट्री कराई गई. इसके बाद तीन साल तक इन्हें मौज कराई गई. अब इन्हें ट्रेंड बताकर पक्का करवा दिया जाएगा और बेचारे गरीब बेरोजगार युवा सरकारी भर्ती निकलने का इंतजार ही करते रह जाएंगे. वहीं पंजाब सरकार कागजों में हजारों युवाओं को नौकरी दिलाने का वादा भी पूरा दिखा देगी लेकिन वास्तव में नौकरी असल हकदार की जगह उन पार्षदों व निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों की पत्नियों, बहनों या बच्चों को मिलेगी जो पहले से ही गाड़ियों में घूम रहे हैं. ऐसे में असल हकदार युवा अपराध का रास्ता चुनने को मजबूर हो जाएंगे. मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो कई अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी लपेटे में आ सकते हैं.
इस संबंध में जब मेयर जगदीश राज राजा से बात करने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका. वहीं जालंधर सेंट्रल के विधायक राजिंदर बेरी ने कहा कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है. मैं पूरे मामले की जानकारी लेता हूं. इसे दिखवाया जाएगा.

देर से आना…जल्दी जाना..ठीक नहीं…
सूत्रों के मुताबिक यहां स्मार्ट सिटी के कई काम निजी हाथों में दिए जा चुके हैं। जिस कथित कंपनी के माध्यम से कुछ लोग यहां नगर निगम में काम कर रहे हैं उनके बारे में आम लोगों की तरफ से बहुत सी शिकायतें मिल रही हैं. लोगों का कहना है कि उन्हें लगता है कि इन लोगों का कोई भी पेपर नहीं हुआ और न हो कोई इंटरव्यू लिया गया. सीधे उन्हें सीट पर बैठा दिया गया। लोग नाम छिपाने की शर्त पर ऐसे खुलासे कर रहे हैं जिनसे बड़े स्कैंडल का पर्दाफाश हो सकता है।

टाइपिस्ट को टाइपिंग आती ही नहीं
वैसे तो कंप्यूटर व सामान्य टाइपिंग आना अब आम बात है लेकिन कथित रूप से सिफारिश के दम पर कुछ लोग जो सर्विस रूल को नहीं मानते वह कागजों में टाइपिंग का काम करते हैं. आम जनता की एक एप्लीकेशन टाइप करने में उन्हें घंटों लग जाते हैं। कई बार तो राइट हैंड की एक फिंगर से टाइपिंग होती देख जनता भी हैरान रह जाती है। कई बार मेयर राजा से जुड़े स्टाफ के कुछ लोग ड्यूटी टाइम पर धूप सेंकते नजर आते हैं।

ड्यूटी का कोई टाइम नहीं
आम तौर पर सरकारी दफ्तरों में सुबह 9 से 5 बजे की ड्यूटी है परंतु निगम के कुछ कर्मचारी कथित रूप से ड्यूटी से दो घंटा लेट भी आते हैं और जाते भी 1 घंटा पहले हैं। यानि 11, 12 बजे आना और 4 बजे चले जाना। सूत्रों की मानें तो स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर के विकास का भट्ठा बैठ गया है। नाम न छापने की शर्त पर दो व्यक्तियों ने बताया कि भाई भतीजावाद के नाम पर यदि भर्ती होती रह गई तो आम आदमी को नौकरी कहां मिलेगी? वहीं निगम विभिन्न टैक्सों के कलेक्शन के लिए ऊर्जावान स्टाफ को रख ले तो निगम का घाटा भी पूरा हो सकता है।

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