इंटरव्यू

साहित्य की बात : अपनेे गीतों की तरह सहज और सरल है साहित्य का यह स्वर, नाम है मधुकर, पढ़ें पूरा सफर, परिवार से भी मिलिये 

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डा. महेश मधुकर रूहेलखंड के साहित्य जगत का जाना पहचाना नाम हैं. हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में महारथ हासिल कर चुके डा. मधुकर युवा साहित्यकारों के आदर्श और प्रेरणा स्रोत भी हैं. उनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य की अनुपम कृतियों में शुमार हैं. अपने सस्वर काव्य पाठ के लिए उन्हें जाने कितने सम्मानों से नवाजा जा चुका है. डा. मधुकर के जिक्र के बिना रूहेलखंड के साहित्यजगत की चर्चा पूरी ही नहीं होती.
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के एटा जिले के रहने वाले साहित्यकार डॉ. महेश मधुकर का जन्म सन् 1 अक्टूबर 1954 को स्मृति शेष पिता लालमन एवं माता स्व. त्रिवेणी देवी के संभ्रांत परिवार में हुआ। एमए हिंदी और पीएचडी तक शिक्षा अर्जित करने बाद वह महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखंड विश्वविद्यालय से वरिष्ठ सहायक के पद से ससम्मान सेवानिवृत्त हुए। गीत, गजल, कविता लिखने का शौक उन्हें बचपन से ही था. साहित्य में अभिरूचि रही और लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया। गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे एवं समीक्षा आदि गद्य- पद्य की विभिन्न विधाओं में इन्हें महारथ हासिल है.

पुत्र डॉ. पंकज कुमार, पत्नी कुसुम लता, पुत्रवधु मीनू,
पुत्र गौरव कुमार, पौत्र सम्राट, धेवता विराट, पुत्रवधु रंजना एवं पौत्री आरना के साथ डा. मधुकर.

मधुकर द्वारा रचित धरा सुता का त्याग (खंड काव्य) 2012 में प्रकाशित हुआ जिसे बेहद पसंद किया गया. उनका एकलव्य की गुरु निष्ठा( खंड काव्य) प्रकाशनाधीन है। इनके संपादन में जय भारती (देशभक्ति गीत संग्रह) 1998, गीत प्रिया (त्रैमासिकी) का संपादक द्वय के रूप में नियमित 2008 से 2018 तक संपादकीय लेखन एवं उड़ान परिंदों की (साझा काव्य संग्रह) 2018 में आ चुका है। इनके सह संपादन में विश्वविद्यालय रजत जयंती स्मारिका 2000, साहित्यकार बाबू सिंह चौहान स्मृति एवं राजदेव राय प्रियदर्शी अभिनंदन ग्रंथ व कल्याण काव्य कलश (काव्य संकलन) आ चुके हैं।

पौत्री आरना बीच में दाएँ- बाएँ पौत्र सम्राट एवं रानव.

डा. मधुकर की रचनाओं का आकाशवाणी बरेली, रामपुर एवं दूरदर्शन, बरेली से विगत 30 वर्षों से नियमित प्रसारण हो रहा है। किशन सरोज स्मृति साहित्य सम्मान एवं ज्ञान स्वरूप ‘कुमुद’ साहित्य शिरोमणि सम्मान सहित अब तक सात दर्जन से अधिक संस्थाओं द्वारा हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशंसित, अभिनंदित एवं सम्मानित किया जा चुका है। डा. मधुकर कई साहित्यिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर सहभागिता कर सक्रिय हैं। कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन करना इनकी विशेषता रही है। आपके द्वारा नवोदित कवियों को व्हाट्सएप के माध्यम से साहित्य की विभिन्न विधाओं की बारीकियां सिखाने का समर्पित भाव से सराहनीय कार्य किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर अपने गीतों के सस्वर काव्य पाठ के लिए आप चर्चित हैं। वर्तमान में गणेशपुरम्, पवन विहार, बरेली में इनका निवास है। डॉ. मधुकर के व्यक्तित्व की सहजता व सरलता उनके गीतों में परिलक्षित है। मधुकर अच्छे साहित्यकार के साथ ही बहुत अच्छे इंसान भी हैं. सहज व सरल व्यक्तित्व के धनी हैं. दूसरों की मदद को सदैव तत्पर रहते हैं. मां वाणी के प्रखरश्चेतक के रूप में कर्ममृत रहे हैं। हम आपको आपकी रचना की इन पंक्तियों के साथ नमन करते हैं-

हर हृदय में प्रेम का निवास हो गया
द्वेष- भाव का समूल, नाश हो गया
सूर्य तेजवंत दांव मारने लगा
कोहरा हताश हुआ हारने लगा
गुनगुनाई धूप अंत शीत का हुआ
आ गया बसंत भान मीत का हुआ।

प्रस्तुति-उपमेंद्र सक्सेना एड. (साहित्यकार) बरेली

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