गलतफहमी में जीने का मजा कुछ और होता है।
किसी के गम को पीने का सिला कुछ और होता है।।
हक़ीक़त जान कर रोता है अक्सर ही यहाँ इंसाँ।
मगर सच बात कहने का नशा कुछ और होता है ।।
सुलह कर ली है मैंने भी तो अब अपने मुक़द्दर से।
रज़ा पर उसकी चलने से भला कुछ और होता है।।
गलतफहमी में जीने से उलझ जाती है ख़ुद हस्ती।
लिखा कुछ और होता है पढ़ा कुछ और होता है।।
समझ पाया नहीं मैं “हंस” इस उलझी पहेली को।
कि बोया और होता है अता कुछ और होता है।।
-एस के कपूर “श्री हंस”, मो. 9897071046, 8218685464