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एक्सक्लूसिव : तीन साल से शॉप के ध्वस्तीकरण के आदेश दबाए बैठे हैं बीडीए के भ्रष्ट अफसर, लाखों रुपये प्रतिमाह का चढ़ाया जा रहा चढ़ावा, पढ़ें क्या है पूरा मामला?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
निजी कॉलोनाइजरों की अवैध कॉलोनियों को संरक्षण देने वाले और गरीबों के आशियानों को नियमों की अनदेखी कर उजाड़ने के लिए बेताब बरेली विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारियों का एक और काला कारनामा सामने आया है. इस बार मामला एक पूंजीपति से संबंधित है जिसके कारण अदालत के आदेश भी अधिकारी पी गए हैं. तीन साल पहले दिए गए अपने ही ध्वस्तीकरण के आदेश को बीडीए के अधिकारी दबाए बैठे हैं. इसके एवज में उन्हें प्रतिमाह लाखों रुपए रिश्वत के तौर पर दिए जा रहे हैं. अगर मामले की जांच उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जजों की स्पेशल कमेटी अथवा सीबीआई जांच से कराई जाए तो सारे भ्रष्टाचार की पोल खुल सकती है.
दरअसल, आकांक्षा सिंह पत्नी अंकित लाल ने निर्माण स्थल 110 बी पार्ट सिविल लाइन्स बरेली में एक बिल्डिंग का निर्माण कराया था. प्रभा टाकीज के बगल में और इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप के सामने स्थित इस इमारत में वर्तमान में मेगा शॉप नाम से एक शोरूम संचालित किया जा रहा है. परमजीत सिंह गुजराल की शिकायत के बाद लगभग साढ़े तीन साल पहले बीडीए ने इसके ध्वस्तीकरण के आदेश दिए थे. इसके खिलाफ आकांक्षा सिंह ने मंडलायुक्त के पास अपील की थी. मंडलायुक्त ने ध्वस्तीकरण के आदेश पर स्टे दे दिया था. इसके बाद मामला माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंचा. माननीय उच्च न्यायालय ने रिट याचिका संख्या 37807/2017 में 15 सितंबर 2017 को एक आदेश करते हुए प्रकरण की जांच के आदेश दिए थे. जांच के लिए प्राधिकरण की ओर से एक कमेटी बनाई गई जिसके अध्यक्ष बीडीए के सचिव थे. उनके साथ टीम में मुख्य नगर नियोजक, अधिशासी अभियंता बीएम गोयल और अधिशासी अभियंता जहीरुद्दीन शामिल किए गए थे. समिति ने 25 सितंबर 2017 को शिकायत कर्ता परमजीत सिंह गुजराल और जमीन की स्वामी आकांक्षा सिंह की मौजूदगी में स्थल की मापी और निर्माण का निरीक्षण किया. जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि आकांक्षा सिंह ने सिर्फ 176.66 वर्ग मीटर अविवादित स्वामित्व पर ही नक्शा पास कराया था जबकि मौके पर 493.47 वर्ग मीटर भूमि पर निर्माण कराया गया है जो कि मानचित्र के विपरीत है. साथ ही मानचित्र कार्यालय का पास कराया गया लेकिन उसका व्यावसायिक उपयोग किया जाना पाया गया. यह भी महायोजना भू-उपयोग के विपरीत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आकांक्षा सिंह द्वारा मौके पर किया गया निर्माण फ्रंट सैट बैक, रियर सैट बैक और पार्श्व सैट बैक को घेरते हुए किया गया है जो कि किसी भी सूरत में कंपाउंडेबल नहीं है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आकांक्षा सिंह द्वारा सड़क की जमीन पर भी अनधिकृत रूप से कब्जा कर निर्माण किया गया है. यानि सड़क की जमीन को भी नहीं छोड़ा गया. इसके अलावा निर्मित भवन में पार्किंग के प्राविधानों की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई है जो कि अनिवार्य है. साथ ही यह भी कहा गया है कि आकांक्षा सिंह ने निर्मित भवन पर मेगा शॉप के नाम से बोर्ड लगाया है जिससे प्रमाणित होता है कि बिल्डिंग का इस्तेमाल कार्यालय की जगह व्यावसायिक प्रयोग के लिए किया जाएगा जो कि नक्शे के विपरीत है. इसके अतिरिक्त मानचित्र की अन्य आपत्तियों का निस्तारण भी नहीं किया गया है जिसके कारण बिल्डिंग की कंपाउंडिंग की ही नहीं जा सकती है. अत: प्रस्तावित शमन मानचित्र को निरस्त किया जाता है. उक्त रिपोर्ट 26.09.2017 को दी गई है. इसके बाद 28 सितंबर 2017 को तत्कालीन मंडलायुक्त पीवी जगनमोहन ने भी पूर्व में लगाए गए स्टे को वापस लेते हुए आकांक्षा सिंह की अपील को खारिज कर दिया था. साथ ही आदेश करते हुए कहा कि आकांक्षा सिंह की अपील निष्प्रभावी होने के कारण निरस्त की जाती है. इस न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश दिनांक 27.07.2017 वापस लिया जाता है. विकास प्राधिकरण की पत्रावली आदेश की एक प्रति के साथ वापस भेजी जाए तथा अपील पत्रावली आवश्यक कार्यवाही उपरांत अभिलेखागार में संचित की जाए. अवैध निर्माण का ध्वस्तीकरण किया जाए. बता दें कि उक्त अवैध निर्माण को 29 जुलाई 2007 को ही ध्वस्त करने के आदेश दे दिए गए थे लेकिन बीडीए के भ्रष्ट अधिकारियों ने आज तक इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.
सूत्र बताते हैं कि उक्त बिल्डिंग का किराया लाखों रुपये में आ रहा है जिसका एक हिस्सा नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों को हर माह पहुंचा दिया जाता है. यही वजह है कि पिछले साल 21 अगस्त को विशेष सचिव माला श्रीवास्तव की ओर से भी अपील निरस्त करने का आदेश देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई. वहीं चंद्रपुर बिचपुरी के हजारों लोग जो बीडीए की लापरवाही की वजह से रामगंगानगर आवासीय प्रोजेक्ट की कथित भूमि पर बस गए उन्हें बेघर करने में बीडीए कोई कसर नहीं छोड़ रहा. अमीरों के मामले फाइलों में दफन करने के आरोपों में बीडीए के वीसी जोगिंदर सिंह भी घिरते नजर आ रहे हैं. इस संबंध में जब बीडीए के संबंध जेई अजय कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस इमारत के ध्वस्तीकरण के आदेश के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. जब अधिशासी अभियंता राजीव दीक्षित से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामला हाईकोर्ट से संबंधित है जिसे फोन पर नहीं बताया जा सकता है. जब उनसे मिलने दफ्तर पहुंचे तो वह दफ्तर में नहीं थे. जब इस संबंध में बीडीए के वीसी जोगिंदर सिंह से बात करने का प्रयास किया गया तो वह बिना जवाब दिए ही चलते बने.
बहरहाल, बरेली विकास प्राधिकरण भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है. यहां आवासीय बिल्डिंग बनाने से लेकर अवैध कालोनियां काटने तक का रेट फिक्स है. सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये के राजस्व की चपत लगाने वाले बीडीए के अधिकारी अपनी जेबें भरने में लगे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की मुहिम को बीडीए के अधिकारी पलीता लगा रहे हैं.

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