गजलों की दुनिया बड़ी ही निराली होती है. दर्द चाहे अपनों से बिछड़ने का हो या जिंदगी की उलझनों का, गजलें हमेशा दिल को सुकून देती हैं. कभी कागज की किश्ती और बारिश का पानी याद दिलाती हैं तो कभी बताती हैं कि वक्त का परिंदा कभी किसी के लिए नहीं रुकता. कभी आपसी सद्भाव का अहसास कराती हैं तो कभी सौहार्द्र की प्रेरणा बन जाती हैं. ऐसी ही सद्भाव और सौहार्द्र पूर्ण गजलों के लिए जाने जाते हैं यूपी के औरैया जिले के जाने-माने गजलकार राज शुक्ला. अपनी रचनाओं से लोगों के दिलों में राज करने वाले राज शुक्ला को गजलराज के नाम से भी जाना जाता है. पेशे से प्रॉपर्टी डीलर राज शुक्ला अपनी गजलों के बल पर हिन्दी साहित्य के दर्जनों पुरस्कार और सम्मान अपने नाम कर चुके हैं.
राज शुक्ल का जन्म औरैया जिले में 25 जून वर्ष 1976 को मां स्व. कमला देवी शुक्ल
पिता स्व. राम स्वरूप शुक्ल के संभ्रांत परिवार में हुआ था. फिलहाल वह बरेेेेली के संजय नगर में रहते हैं. राज साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन कार्य करने में सिद्धहस्त हैं. अनेक स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.
उन्हें अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न उपाधियों से अलंकृत किया जा चुका है जिनमें प्रमुख रूप से
संस्था औरैया हिंदी प्रोत्साहन निधि न्यास द्वारा सर्वश्रेष्ठ गजलकार सम्मान,
विशम्भर दयाल स्मृति संस्थान द्वारा, सहारा इंडिया परिवार द्वारा 2002 से 2014 तक प्रतिवर्ष सम्मानित करने के साथ ही अनेकों सम्मान दिए जा चुके हैं.
उन्हें काव्य रत्न सूरदास दास सम्मान प्रथम प्रकाशन पठानकोट पंजाब सन् 2016 में दिया गया था.
कलावती क्लोरीन साहित्यिक समित द्वारा ग़ज़ल सम्राट की उपाधि से जनवरी 2021 में सम्मानित किया गया है. कोरोना काल में उनके योगदान को देखते हुए भारतीय कलाकार संघ द्वारा कोरोना योद्धा की उपाधि से सम्मानित किया गया है. फरवरी 2021 में उन्हें समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत द्वारा समरस श्री उपाधि से सम्मानित किया गया. इसके अलावा
कल्चरल ऐशोशियेशन द्वारा मार्च 2021 में उन्हें व्यंग्य श्री सम्मान से नवाजा गया.
साहित्य के प्रति समर्पित भाव से वह अनवरत उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं और अपने श्रेष्ठ सृजन के बल पर साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं. इनकी ही लिखी एक ग़ज़ल प्रस्तुत है-
जला के शमां अंधेरे में बुझाई तुमने
ये कैसी रीत मुहब्बत की निभाई तुमने
सुलग रहे हैं मेरे ज़ख़्म अभी तक इसमें
जफ़ा की आग जो इस दिल में जलाई तुमने
जले हैं सारे ही अरमान यहां इक इक कर
चिता भी सोच के क्या ख़ूब सजाई तुमने
चिराग गुल हैं उजाला भी कहां से होगा
ये बात पहले नहीं मुझको बताई तुमने
बुझा बुझा के भी हम हार गये हैं जानम
बता दो आग कहां से ये मंगाई तुमने
कि जिसको देख के जीने की ललक थी दिल में
मेरी हयात की उम्मीद मिटाई तुमने
ये कौन पूछता पंडित से किसी मुल्ला से
कि क्यों जलन ही जलन जग में बढाई तुमने
बना है ‘राज’ यहां एक अजब कठपुतली
बिसात कैसी हवाओं ये बिछाई तुमने
–प्रस्तुतकर्ता- उपमेंद्र सक्सेना एड.( साहित्यकार) बरेली