कुदरत इस कदर आज खफा हो गई है।
जहरीली हर शहर की हवा हो गई है।।
कुछ नासमझियां हमारीऔर कुछ पहेली।
जिंदगी मुश्किलों में आज रवा हो गई है।।
इस बीमारी का कहर बरपा है इस तरह।
बाहर घूमना भी जुर्म दफ़ा हो गई है।।
घर रहें बंद इस कॅरोना कड़ी तोड़ने को।
यही सबसे बड़ा ईलाज दवा हो गई है।।
यकीन मानिए सब होगा वैसा ही दुरुस्त।
आज रुकने में ही जिन्दगी नफा हो गई है।।
बना कर रखिये बातचीत भले दूर से ही।
कोई कहे न कि फ़ितरत बेवफ़ा हो गई है।।
*हंस* बस हौंसला धीरज मत खोना सफर में।
खुद ही कहोगे जाने कहां गुम बवा हो गई है।।
-एस के कपूर “श्री हंस”
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