विचार

तिकड़मों के बिना हैसियत थी कहां…

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हाय मतलब यहाँ सिद्ध जिसका हुआ, आज घोड़े वही बेचकर सो रहा
और उल्लू बनाया गया हो जिसे, बैठकर बेबसी में बहुत रो रहा।

आदमी का न कोई भरोसा रहा, क्या पता कौन कब खोपड़ी फोड़ दे
और पीड़ित न पैसा करे खर्च तो, फिर पुलिस भी उसे अब नया मोड़ दे
हाय घटना बदलकर करे खेल जब, तो कहानी किसी की कहीं जोड़ दे
खा लिया माल अपराधियों का अगर, ठीकरा फिर किसी और पर फोड़ दे

जब न फरियाद कोई सुने आजकल, सह रहे लोग जो कुछ यहाँ हो रहा
और उल्लू बनाया गया हो जिसे, बैठकर बेबसी में बहुत रो रहा।

अब पढ़ाई- लिखाई हुई तिकड़मी, इसलिए हो गया योग्यता का दमन
भर गया खूब पैसा किसी भी तरह, उन घरों में मिला देखने को चमन
जब जलेंगे नहीं प्रेम के दीप तो, औपचारिक समझ लो हुआ है अमन
मिट सकी आज नफरत न पूरी तरह, बस इसी से हुआ खूब अब विष-वमन

जो लगा दूध की आज मक्खी उसे, फेंककर दुष्ट अब हाथ है धो रहा
और उल्लू बनाया गया हो जिसे, बैठकर बेबसी में बहुत रो रहा।

गिरगिटों की तरह रंग बदलें बहुत, कूटनीतिक हुए लोग इतने यहाँ
वे किसी के सगे तो नहीं हो सके, लाभ जिससे नहीं लात मारें वहाँ
बेरहम हाय वे आज इतने हुए, निर्बलों को सताएँ दिखें वे जहाँ
बन गए हैं बड़े आदमी इस तरह, तिकड़मों के बिना हैसियत थी कहाँ

छल- कपट से जुड़ा आदमी क्यों भला,आज इंसानियत को यहाँ खो रहा
और उल्लू बनाया गया हो जिसे, बैठकर बेबसी में बहुत रो रहा।

रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)
मो.- 98379 44187

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