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शहर विधानसभा सीट : सपा को छोड़ना होगा मुस्लिम प्रेम, अपर कास्ट हिन्दू ही दे सकता है भाजपा को पटखनी, जानिये क्या है वजह?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणाम आने और लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद प्रदेश में विधानसभा की चुनावी हलचल तेज होती जा रही है. दावेदार पार्टी नेताओं के चक्कर काटने लगे हैं और पार्टी नेता भी हर दावेदार को टिकट दिलाने का भरोसा दिला रहे हैं हालांकि टिकट सिर्फ एक को ही मिलना है पर पार्टी नेता हर दावेदार को परख रहे हैं. ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि इस बार के चुनाव में प्रत्याशी चयन का आधार क्या होगा? क्या हर बार की तरह इस बार भी जातिवाद के आधार पर प्रत्याशी चुने जाएंगे या सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम ही चुनावी मुद्दा रहेगा?
सियासी जानकारों की मानें तो इस बार के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा दो मुख्य मुद्दों पर मैदान में उतरेगी. पहला- अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण की शुरुआत का मुद्दा और दूसरा गुंडाराज के खात्मे का मुद्दा. वहीं, विपक्ष के पास कोरोना काल में उपजीं अव्यवस्थाएं और कृषि कानून, बेरोजगारी जैसे कई मुद्दे हैं लेकिन सियासी जानकार मानते हैं कि असल लड़ाई हिन्दू-मुस्लिम को लेकर ही होगी. यह निश्चित है कि हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर चुनाव हुआ तो भाजपा के खाते में एकतरफा वोट पड़ेंगे. कुछ गैरराजनीतिक लोगों का मानना है कि योगी राज गुंडागर्दी का वह आलम नहीं रहा जो सपा सरकार में हुआ करता था. ढाबा संचालक विजय कुमार कहते हैं कि सपा के राज में आए दिन अराजकता का माहौल उत्पन्न होता था, दंगे होते थे और नौबत कर्फ्यू लगाने तक की आ जाती थी. कई बार बरेली में भी कर्फ्यू लगाना पड़ा था लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. जनता को सुकून और शांति चाहिए.
विजय जैसे कई गैर राजनीतिक लोग हैं जो योगी राज को सपा के कार्यकाल से बेहतर मानते हैं.
लोगों के दिलों में यह बात घर कर चुकी है कि सपा की सरकार का मतलब यादवों और मुस्लिमों की सरकार है. अपर कास्ट हिन्दू इसमें उपेक्षित ही रहेगा. शहर विधानसभा सीट अपर कास्ट हिन्दू बाहुल्य विधानसभा सीट है जिसमें कायस्थ, ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया, खत्री-पंजाबी आदि समाज के लोगों का वर्चस्व है. एक बड़ी आबादी मुस्लिमों की भी है. पिछले विधानसभा चुनाव के शहर विधानसभा सीट के नतीजों पर नजर डालें तो यहां से भाजपा के अरुण कुमार को लगभग एक लाख 15 हजार वोट मिले थे और गठबंधन के उम्मीदवार वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रेम प्रकाश अग्रवाल को 86500 के करीब वोट मिले थे. प्रेम प्रकाश अग्रवाल को हार का सामना जरूर करना पड़ा था लेकिन उन्हें वोटों का जो आंकड़ा हासिल हुआ वह भाजपा के लिए चिंताजनक जरूर कहा जाएगा.

शहर विधायक डा. अरुण कुमार
पूर्व प्रत्याशी व वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रेम प्रकाश अग्रवाल.

प्रेम प्रकाश अग्रवाल की हार के कई कारण थे जिसमें सबसे बड़ा कारण मोदी लहर था. दूसरा कारण सपा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल था और तीसरी वजह महागठबंधन के प्रत्याशी की घोषणा में हुई देरी थी. इसकी वजह से प्रेम प्रकाश अग्रवाल कई इलाकों में चुनावी कैंपेन नहीं कर सके और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वहीं दूसरी तरफ कैंट विधानसभा सीट से नवाब मुजाहिद हसन को गठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया था जिन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी.
सियासी जानकारों का मानना है कि इस बार हालात पिछले चुनावों से काफी बदल चुके हैं. अब न तो सपा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल है और न ही मोदी लहर. जब मोदी लहर में एक सवर्ण हिन्दू साढ़े 86 हजार वोट हासिल कर सकता है तो फिर आज की परिस्थितियों में वह जीत भी हासिल कर सकता है.

इस बार कांग्रेस और सपा के गठबंधन पर फिलहाल कुछ भी तय नहीं है लेकिन शहर विधानसभा सीट पर सपा और कांग्रेस दोनों को ही सवर्ण हिन्दू को ही मैदान में उतारना होगा. खासतौर पर सपा को मुस्लिम और यादव प्रेम त्यागना होगा और जनता को यह भरोसा दिलाना होगा कि समाजवादी पार्टी सिर्फ मुस्लिमों और यादवों की ही पार्टी नहीं है. मुस्लिम प्रेम त्यागने की दो और मुख्य वजहें भी हैं. पहली यह कि शहर विधानसभा सीट पर सपा के पास कोई प्रभावी मुस्लिम चेहरा नहीं है. सपा चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डा. अनीस बेग एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता हो सकते थे मगर इस बार वह चुनाव लड़ने के मूड में ही नहीं हैं.

डा. अनीस बेग

दूसरा बड़ा चेहरा अब्दुल कयूम मुन्ना के रूप में मौजूद तो है मगर पार्टी के स्थानीय मुस्लिम नेता ही उनकी काट करने में लगे हैं और महानगर अध्यक्ष का भी पूरा आशीर्वाद उन्हें मिल पाएगा या नहीं इस पर भी संशय के हालात बने हुए हैं.

अब्दुल कय्यूम मुन्ना

अब बिना चेहरों के पार्टी मैदान में उतरेगी तो खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा. साथ ही मुस्लिम वोट बैंक की सपा की ताकत का भी बंटवारा हो जाएगा. वहीं, अपर कास्ट हिंदू की बात करें तो नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष राजेश अग्रवाल, पंजाबी महासभा के अध्यक्ष संजय आनंद, पंडित किशन्नी महाराज के परिवार के विष्णु शर्मा जैसे चेहरे सपा के पास मौजूद हैं जिन पर दांव खेला जा सकता है. राजेश अग्रवाल पिछले कई दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं और लगातार पार्षद का चुनाव जीतते आ रहे हैं.

अखिलेश यादव के साथ राजेश अग्रवाल

संजय आनंद वो चेहरा है जो बरेली में समाजसेवा के क्षेत्र में एक बड़ा मुकाम हासिल कर चुका है और निर्विवाद है. साथ ही उस दौर के कांग्रेसी भी रहे हैं जब बरेली में कांग्रेस की तूती बोला करती थी. हालांकि बाद उन्होंने राजनीति की जगह समाजसेवा का रास्ता चुना और पंजाबी महासभा के माध्यम से बिना किसी सरकारी सहायता के सैकड़ों परिवारों का पेट पाल रहे हैं. अगर संजय आनंद को पार्टी मैदान में उतारती है तो खत्री-पंजाबी समाज के हजारों वोट भी सपा के पाले में आ जाएंगे क्योंकि इस बार खत्री-पंजाबी समाज के ज्यादातर नेता एकजुट होकर उस पार्टी को समर्थन देने की तैयारी कर रहे हैं जो उनके समाज का प्रत्याशी उतारेगी. शहर विधानसभा सीट पर उक्त समाज के वोटरों का आंकड़ा लगभग 40 से 50 हजार के बीच बताया जा रहा है.

संजय आनंद

वहीं, ब्राह्मण वोटरों का आंकड़ा भी लगभग इतना ही बताया जा रहा है. ऐसे में पंडित किशन्नी महाराज के परिवार के विष्णु शर्मा पर भी दांव खेला जा सकता है.

विष्णु शर्मा

अगर समाजवादी पार्टी सवर्ण हिन्दू पर दांव खेलती है तो कुछ मुस्लिम नेता भले ही नाराज हो जाएं पर आम मुस्लिम और यादव वोटर का वोट सपा के खाते में ही आएगा. अगर मुस्लिम और सवर्ण वोट सपा के खाते में आएगा तो निश्चित तौर पर नतीजा भी सपा के अनुकूल ही होगा.
वहीं, कांग्रेस के पास प्रेम प्रकाश अग्रवाल के रूप में पहले से ही बड़ा चेहरा मौजूद है. पिछले चुनावों में उनके प्रदर्शन को देखते हुए इस बार उनकी जीत की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है. अगर अश्विनी ओबरॉय, राम सिंह खन्ना के परिवार सहित पुराने कांग्रेसियों को एकजुट करने में कांग्रेस सफल हो जाती है तो शहर विधानसभा सीट पर कब्जा जमाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.
बहरहाल, टिकट बंटवारे में अभी काफी वक्त है. इस बीच पार्टियों के पास समीकरण बनाने और दूसरों के समीकरण बिगाड़ने के कई मौके आने हैं. दल बदलने का खेल अभी और चरम पर जाएगा. जीत का सेहरा किसके हिस्से में आएगा, यह तो वक्त ही बताएगा.

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