नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत अब गर्माने लगी है. अब तक चुप्पी साधे बैठे विपक्षी अब सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे हैं. समाजवादी पार्टी से कैंट विधानसभा सीट से प्रबल दावेदार इंजीनियर अनीस अहमद के बाद अब इसी सीट से दावेदार और पूर्व मंत्री अताउर्रहमान के बहनोई डा. नसीम अख्तर ने सरकार की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े करते हुए स्थानीय सांसद और विधायक को भी कठघरे में खड़ा किया है.
उन्होंने कहा कि हर बार हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर चुनाव लड़ती आ रही भाजपा के पास अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है. इसलिए वह जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने जा रही है. जब उनसे पूछा गया कि इस कानून से भाजपा को क्या लाभ होगा तो डा. नसीम अख्तर ने कहा कि हमारे प्रदेश की बड़ी आबादी अनपढ़ है जो यह समझती है कि ज्यादा बच्चे सिर्फ मुस्लिमों के ही होेते हैं. वह सिर्फ इसी बात से खुश हैं कि मुसलमानों के लिए यह कानून लाया जा रहा है लेकिन सवाल यह उठता है कि कानून लाने से क्या समस्या का समाधान हो जाएगा? पहले इस पर सर्वे कराना चाहिए था, इसका पालन कैसे हो पाएगा यह सोचा जाना चाहिए. लोगों को जागरूक करना चाहिए उसके बाद कानून लाया जाता.

डा. नसीम अख्तर बरेली कॉलेज में लॉ डिपार्टमेंट के डीन भी रहे हैं. उनके पिता रेवेन्यू बोर्ड में नौकरी करते थे और वह नसीम को जज बनाना चाहते थे पर दो बार पीसीएस जे के इंटरव्यू में असफल होने के कारण नसीम अपने पिता का सपना पूरा नहीं कर सके. पिछले लगभग 10 वर्षों से नसीम अख्तर राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. अब उन्होंने कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के लिए दावेदारी की है. इससे पूर्व वर्ष 2011 में उनका नाम मेयर पद के दावेदार के रूप में चर्चा में आया था. राजनीति में उनका आगमन कब और कैसे हुआ? पूछने पर डा. नसीम बताते हैं, “वर्ष 1998 में अयोध्या मामले पर हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाया था. अगर कोई हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बोलता है तो वह कंटेप्ट ऑफ कोर्ट की श्रेणी में आता है. लेकिन जब मैंने अगले दिन अखबार पढ़ा तो देखा कि मुलायम सिंह यादव ने हाईकोर्ट के आदेश को गलत कहने की हिम्मत दिखाई थी. मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ और मैंने तत्काल समाजवादी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की. तब से मैं पार्टी से जुड़ा हुआ हूं.”

डा. नसीम अख्तर वैसे तो वर्ष 1998 से पार्टी से जुड़े हैं पर सक्रिय राजनीति में आने के सवाल पर कहते हैं, “मैं राजनीति में वर्ष 2011 में सक्रिय हुआ. उस वक्त नगर निगम के चुनाव होने वाले थे और वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव होने थे. उस वक्त अखिलेश यादव रथ लेकर आए थे. सर्किट हाउस में वह स्थानीय नेताओं के साथ बैठक कर रहे थे तो कुछ लोगों ने अखिलेश के समक्ष मेरा नाम मेयर पद के प्रत्याशी के लिए प्रस्तावित किया था. उसके बाद अखबारों में भी इस खबर ने सुर्खियां बटोरीं. फिर मैं राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गया. मैं समाजवादी युवजन सभा का राष्ट्रीय सचिव रहा, पूर्व जिला अध्यक्ष वीरपाल सिंह यादव की कमेटी में सचिव रहा, महानगर कार्यकारिणी का हिस्सा भी रहा. हमने वर्ष 2012 के चुनाव के लिए काफी मेहनत की. मैंने सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद और रामपुर तक लोगों को जोड़ा और जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो पूरी टीम के साथ लखनऊ जाकर अखिलेश का अभिनंदन भी किया.”
डा. नसीम अख्तर बरेली कॉलेज के लॉ डिपार्टमेंट से अगस्त में रिटायर होने जा रहे हैं. फिलहाल उन्होंने कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के लिए दावेदारी की है. अगर पार्टी उन्हें टिकट देती है तो उनके चुनावी मुद्दे क्या होंगे? पूछने पर डा. अख्तर कहते हैं, “वर्तमान सांसद और विधायक ने कोई काम नहीं किया है. पुराने शहर में बेटियों के लिए एक इंटर कॉलेज तक नहीं है. सड़कें टूटी हैं, नालियां जाम हैं, यही हाल मढ़ीनाथ इलाके का भी है. एक ढंग का सरकारी अस्पताल नहीं है. मैं इन्हीं मुद्दों पर चुनाव लड़ूंगा.”

चुनाव जीतने पर अपनी प्राथमिकताएं गिनाते हुए डा. नसीम अख्तर कहते हैं, “मैं सबसे पहले तो गर्ल्स इंटर कालेज और सरकारी अस्पताल बनवाऊंगा.फिर दम तोड़ रहे फर्नीचर कारोबार एवं जरी जरदोजी के कारोबार को सरकार के स्तर पर बाजार उपलब्ध कराने का प्रयास करूंगा ताकि सरकार इन कारीगरों का सामान बिकवाए और बेरोजगार कारीगरों को रोजगार मिल सके.”
योगी सरकार के कार्यकाल को डा. नसीम अख्तर किस नजरिये से देखते हैं? इस सवाल पर वह प्रदेश सरकार को पूरी तरह नाकाम बताते हुए कहते हैं, “जब दवा की जरूरत होती है तो दवा नहीं मिलती, अस्पताल में बेड की जरूरत होती है तो बेड नहीं मिलता, इतना ही नहीं अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां तक नहीं मिल रही थीं, नदियों के किनारे लाशों के ढेर सबने देखे तो ऐसे में इस बात का खुद ब खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि योगी सरकार कितनी सफल है.”