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आजादी के बाद से कैंट सीट पर रहा है मुस्लिमों का दबदबा, इस बार भी सपा से मुस्लिम उम्मीदवार चाहते हैं दावेदार, जानिये क्या है वजह?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली कैंट विधानसभा सीट पर पिछले दस वर्षों से भले ही हिन्दू विधायक बनता आ रहा हो मगर आजादी के बाद से ही इस सीट पर मुस्लिम नेताओं का दबदबा रहा है. अभी भी यह सीट मुस्लिम बाहुल्य है. अगर कोई भी सियासी दल दस से पंद्रह हजार नॉन मुस्लिम वोट भी हासिल कर ले तो यह सीट आसानी से भाजपा के हाथों से निकल सकती है लेकिन हर बार मुस्लिम आपस में ही बंट जाते हैं और सीट भाजपा के खाते में चली जाती है.
कैंट सीट से वर्ष 2012 में चुनाव लड़ चुके और इस बार समाजवादी पार्टी के प्रबल दावेदार माने जा रहे इंजीनियर अनीस अहमद बताते हैं कि कैंट सीट पर हमेशा मुस्लिम नेताओं का ही दबदबा रहा है. मो. हुसैन, अशफाक अहमद, रफन अहमद, इस्लाम साबिर और शहजिल इस्लाम यहां से विधायक भी रहे हैं.

इंजीनियर अनीस अहमद

परिसीमन के बाद समाजवादी पार्टी यहां से चुनाव इसलिए नहीं जीत सकी क्योंकि दूसरी छोटी जातियों व दलितों के वोटों का ध्रुवीकरण पार्टी नहीं कर सकी. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि दलित वोट बसपा के पाले में जाता रहा. चूंकि इस बार बहुजन समाज पार्टी बरेली में अपने सियासी वजूद को खो चुकी है और बहुजन समाज पार्टी के कई दिग्गज नेता समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में दलित व पिछड़ी जातियों के वोटों का ध्रुवीकरण बेहद आसानी से किया जा सकता है. दलित इस बार अपना वोट बर्बाद नहीं करेंगे. ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी कैंट सीट से मुस्लिम उम्मीदवार को उतारती है तो यह सीट बेहद आसानी से सपा के खाते में आ सकती है. अगर इस सीट से समाजवादी पार्टी किसी वैश्य को टिकट दे भी देती है तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वैश्य वोट सपा के खाते में आएगा. इसका सीधा सा उदाहरण पिछले चुनाव से समझा जा सकता है. पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने व्यापारी नेता को यह सोचकर मैदान में उतारा था कि भाजपा से आए राजेंद्र गुप्ता वैश्य वोट हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे लेकिन राजेंद्र गुप्ता को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. जब राजेंद्र गुप्ता जैसे दिग्गज व्यापारी नेता भी वैश्य वोट भाजपा से नहीं तोड़ पाए तो फिर सपा में तो कोई ऐसा बड़ा चेहरा भी नहीं है जो वैश्य वोट तोड़ने में समर्थ हो. बाकी पार्टी जो भी फैसला लेगी वह शिरोधार्य होगा.
कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के एक और प्रबल दावेदार डा. नसीम अख्तर कहते हैं कि समाजवादी पार्टी में कोई भी ऐसा हिन्दू दावेदार नहीं है जो मुस्लिम वोट हासिल कर सके लेकिन मुस्लिम दावेदार ऐसे जरूर हैं जो हिन्दू वोट हासिल करने की क्षमता रखते हैं.

डा. नसीम अख्तर

वह कहते हैं कि समाजवादी पार्टी को इस सीट से ऐसे मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देना चाहिए जो हिन्दू समाज से दिल से जुड़ा हो. वह कहते हैं, ‘मैं एक शिक्षक रहा हूं और शिक्षक का सिर्फ एक ही धर्म होता है और वह है अपने शिष्य को अच्छी शिक्षा देना जिससे वह आगे बढ़ सके. चूंकि मैंने कभी भी अपने शिष्य को शिक्षा देते वक्त उसका धर्म नहीं देखा इसलिए मैं हिंदू समाज में भी लोकप्रिय हूं. अगर हिन्दू यहां से उम्मीदवार बनाया जाएगा तो मुस्लिम वोट सहेजना मुश्किल हो जाएगा. बाकी पार्टी सब जानती है. जो भी पार्टी का आदेश होगा उसका पालन किया जाएगा.’
डा. शाहजेब हसन भी कैंट सीट से मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की हिमायत करते हैं. वह कहते हैं कि कैंट सीट के तहत पड़ते पुराना शहर के इलाके मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं. यहां करीब एक लाख से भी अधिक मुस्लिम वोटर हैं जो इस बार किसी भी सूरत में बदलाव लाना चाहते हैं. यहां का मुस्लिम इस बार बिखरने वाला नहीं है. वह जानता है कि समाजवादी पार्टी ही भाजपा को हराने में सक्षम है. उसे यह भी मालूम है कि सपा में ही मुस्लिम हित सुरक्षित है. मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व सिर्फ सपा ही दे सकती है.

डा. शाहजेब हसन

ऐसे में अगर पार्टी मुस्लिम प्रत्याशी की अनदेखी करती है तो पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि ऐसा करने से मुस्लिम वोटर दूसरी ऐसी पार्टी की ओर आकर्षित हो सकता है जो मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारेगी.लेकिन अगर सपा मुस्लिम प्रत्याशी उतारती है तो दूसरी पार्टी चाहे कितने भी मुस्लिम प्रत्याशी उतार ले, मुस्लिम वोटर बंटेगा नहीं, वह सपा को ही वोट देगा. क्योंकि मुस्लिम वोटर यह समझ चुका है कि अगर मुस्लिम बंटा तो इसका फायदा सीधे तौर पर भाजपा को होगा. इसलिए इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार ही मैदान में उतारा जाना चाहिए.बाकी पार्टी का जो निर्णय होगा वह स्वीकार होगा.
वहीं, कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के एक और दावेदार मो. फिरदौस उर्फ अंजुम भाई का कहना है कि सपा के जितने भी हिन्दू दावेदार हैं उनमें कोई भी ऐसा चेहरा नहीं है जो मुस्लिमों की तो छोड़िये अपनी ही बिरादरी के वोट लेने में सक्षम हो. कैंट सीट की जान पुराना शहर का इलाका रहा है जो पूरी तरह से मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. यहां से अशफाक अहमद, रफन अहमद, इस्लाम साबिर और शहजिल इस्लाम जैसे मुस्लिम नेता विधायक चुने गए हैं. चूंकि इस बार मुस्लिम एकजुट होकर भाजपा को हराना चाहता है इसलिए वह सपा की ओर नजरें गड़ाए बैठा है. अगर सपा मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारती है तो यह सारा मुस्लिम वोट टूटकर कांग्रेस या ओवैसी की पार्टी के पाले में चला जाएगा जिससे सपा की जीत नामुमकिन हो जाएगी क्योंकि बनिया बिरादरी कभी भी सपा को वोट नहीं देगी.

मो. फिरदौस उर्फ अंजुम भाई

वहीं प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से अगर पूर्व डिप्टी मेयर डा. मो. खालिद मैदान में उतरते हैं तो सपा से गैर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का फायदा डा. खालिद को होगा. वह पुराना शहर में खासे लोकप्रिय भी हैं और वर्ष 2012 में जब सपा ने फहीम साबिर को मैदान में उतारा था तो डा. खालिद के कारण ही मुस्लिम वोट टूट गया था और फहीम साबिर चुनाव हार गए थे.
इसी प्रकार कैंट सीट से एक और दावेदार डा. अनीस बेग का भी यही मानना है.

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