यूपी

कहीं दिग्गजों पर भारी न पड़ जाए युवाओं की तैयारी, जानिये किस सीट पर किसकी मजबूत हो रही दावेदारी?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
सियासत की सीढ़ियां कदमों की आहट भी भांप लेती हैं. जो पहले आया वही मंजिल के फासले तय कर लेगा यह तय नहीं होता पर जिसने मजबूती से कदम बढ़ाया मंजिल हमेशा उसी के कदमों के नीचे होती है. फिर चाहे वह कोई दिग्गज हो या नौजवान. 124 बरेली शहर और 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट पर भी कुछ नौजवान सियासतदान दिग्गजों के किले में सेंध लगाने की तैयारी जोर-शोर से कर रहे हैं. आइये जानते हैं कि कौन हैं ये युवा और क्या है इनकी तैयारी?
1- अतुल कपूर, पूर्व उपभापति, भाजपा, 124 बरेली शहर विधानसभा सीट
अतुल कपूर उन युवा नेताओं में शामिल हैं जो पहली बार पार्षद का चुनाव लड़े और उस वार्ड से जीते जहां से भाजपा प्रत्याशी निर्दलीय उम्मीदवार से शिकस्त खाता आ रहा था. पहली बार में ही चुनाव जीतने वाले अतुल कपूर का नाम इतिहास के पन्नों पर इसलिए भी दर्ज हो गया क्योंकि अतुल कपूर पहली बार चुनाव लड़े और पहली बार में ही उपसभापति भी बन गए. अब वह विधानसभा का टिकट चाहते हैं. इसके लिए उनके पास दो प्रमुख आधार हैं. पहला उनकी बिरादरी और दूसरा उनका पार्षद होना. अबकी बार अतुल कपूर खत्री पंजाबी समाज का चेहरा बनकर उभरे हैं. जिस पुरजोर तरीके से वह समाज के नेता के लिए टिकट मांग रहे हैं उसे देखकर लगता है कि अबकी बार इस समाज की अनदेखी भाजपा के लिए आसान नहीं होगी क्योंकि भाजपा ने आजादी के बाद से आज तक कभी भी इस समाज के चेहरे पर भरोसा नहीं जताया है जबकि कांग्रेस ने इसी समाज से ताल्लुक़ रखने वाले स्व. राम सिंह खन्ना को न सिर्फ विधानसभा का टिकट दिया बल्कि उन्हें प्रदेश में कैबिनेट मंत्री भी बनाया.

अतुल कपूर

अतुल कपूर पिछले कोरोना काल से ही समाजसेवा के माध्यम से चुनावी तैयारी में जुट गए थे. वर्तमान में शहर विधानसभा क्षेत्र का कोई भी इलाका ऐसा नहीं रह गया जहां अतुल कपूर के होर्डिंग, पोस्टर या बैनर आदि न दिखाई दें. फिलहाल शहर सीट से भाजपा के ही डा. अरुण कुमार विधायक हैं. दो बार से लगातार विधायक बनते आ रहे डा. अरुण कुमार का टिकट इस बार संकट में बताया जा रहा है. अगर भाजपा यहां से नए चेहरे को मौका देती है तो फिलहाल इस दौड़ में अतुल कपूर सबसे आगे नजर आ रहे हैं. पार्टी का कोई भी कार्यक्रम हो या समाज का कोई भी कार्यक्रम हो, अतुल कपूर हर जगह मौजूदगी दर्ज कराते नजर आ जाते हैं. हालांकि, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री दिनेश जौहरी के सुपुत्र राहुल जौहरी भी इसी सीट पर दावेदारी कर रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी कोई खास तैयारी नजर नहीं आ रही है. हां, दिल्ली दरबार में राहुल जौहरी की पकड़ अच्छी बताई जा रही है.
2- मो. कलीमुद्दीन, समाजवादी पार्टी, 124 शहर विधानसभा सीट

मो. कलीमुद्दीन

बरेली शहर विधानसभा सीट से दावेदारी जता रहे मो. कलीमुद्दीन पिछले करीब डेढ़ साल से समाजसेवा के माध्यम से चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं. इन डेढ़ वर्षों में कलीमुद्दीन ने जिस तेजी से कदम आगे बढ़ाए हैं उससे वह पूरे विधानसभा क्षेत्र ही नहीं बल्कि लखनऊ तक चर्चा के केंद्र में आ चुके हैं. पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता कलीमुद्दीन के नाम से भली-भांति परिचित है. हाल ही में सपा के जितने भी राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नेताओं का बरेली में आगमन हुआ लगभग सभी की मेजबानी का मौका कलीमुद्दीन को ही मिला. कलीमुद्दीन सपा के एकमात्र ऐसे दावेदार हैं जो टिकट मिलने के महीनों पहले से ही विधानसभा क्षेत्र में बूथ स्तर पर बैठकें करके पार्टी की मजबूती का भी काम कर रहे हैं. वह महानगर कार्यकारिणी में सचिव के पद पर भी आसीन हैं. उन्हें टिकट मिले अथवा न मिले पर शहर विधानसभा सीट पर सपा जरूर मजबूत हो रही है. कलीमुद्दीन की राह में दो सबसे बड़े रोड़े हैं. पहला रोड़ा चार बार से लगातार पार्षद बनते आ रहे कद्दावर नेता अब्दुल कय्यूम मुन्ना हैं. पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार मुन्ना का दावा काफी मजबूत है. संगठन में भी उनकी अच्छी पकड़ है. पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अगर शहर विधानसभा सीट से किसी मुस्लिम को टिकट देने पर विचार होगा तो पहला नाम मुन्ना का होगा. लेकिन कलीमुद्दीन ने पिछले कुछ समय में जिस तेजी से कदम बढ़ाए हैं उसे देखकर लगता है कि कलीमुद्दीन की अनदेखी अब पार्टी हाईकमान के लिए आसान नहीं होगी. कलीमुद्दीन का राह का दूसरा रोड़ा यह है कि पार्टी यहां से हिन्दू प्रत्याशी पर दांव खेलने की तैयारी में है. हिन्दुओं में दो प्रमुख चेहरे महेश पांडेय और राजेश अग्रवाल के रूप में पहले ही पार्टी के पास मौजूद हैं.


3- डा. पवन सक्सेना, समाजवादी पार्टी, 125 कैंट विधानसभा सीट
डा. पवन सक्सेना मीडिया जगत का जाना पहचाना चेहरा हैं. वह उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं. बरेली के दिग्गज पत्रकारों में उनकी गिनती होती है. हाल ही में समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले डा. पवन सक्सेना कैंट विधानसभा सीट से टिकट के प्रबल दावेदार हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कैंट सीट पर सपा के पास कोई बड़ा चेहरा मौजूद नहीं है.

अखिलेश यादव के साथ डा. पवन सक्सेना

मुस्लिम दावेदारों में जरूर इंजीनियर अनीस अहमद जैसा चेहरा सपा के पास मौजूद है लेकिन बात अगर हिन्दू चेहरे की करें तो पवन सक्सेना सब पर हावी नजर आते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि मीडिया से होने के कारण अधिकांश मीडिया जगत पवन सक्सेना के साथ खड़ा है. चूंकि मीडियाकर्मी जमीनी स्तर पर काम करते हैं इसलिए डा. पवन सक्सेना की सियासी जमीन बेहद मजबूत है. पवन सक्सेना की तैयारी भी जोर-शोर से चल रही है. पवन सक्सेना के पार्टी में शामिल होने के बाद अन्य दावेदारों की धड़कनें तेज हो गई हैं. वहीं, पार्टी में शामिल होते ही पवन सक्सेना ने जिस तरह से शहर के जाने-माने चेहरों को पार्टी में शामिल कराया है उससे हाईकमान तक सकारात्मक संदेश गया है. पत्रकार होने के नाते पवन सक्सेना जाति बिरादरी की बंदिशों से कहीं ऊपर उठ चुके हैं. हर जाति वर्ग में उनकी गहरी पैठ है. फिर चाहे वह मुस्लिम समुदाय ही क्यों न हो. पवन सक्सेना को मैदान में उतारकर समाजवादी पार्टी को बरेली में तो मीडिया जगत का साथ मिलेगा ही, प्रदेश में भी इसका फायदा पार्टी को मिलेगा. चूंकि कैंट की सीट समाजवादी पार्टी लगातार हारती आ रही है. यही वजह थी कि पिछली बार गठबंधन में कांग्रेस को यह सीट दे दी गई थी. अब अगर यह सीट पवन सक्सेना को दी जाती है तो एक सीधा सा संदेश जाएगा कि समाजवादी पार्टी पत्रकार विरोधी नहीं है जैसा कि अब तक समाजवादी पार्टी पर आरोप लगते रहे हैं. खासतौर पर मुलायम सिंह के कार्यकाल में जब पत्रकारों को पीटा गया था और मुलायम सिंह इलाहाबाद में सम्मेलन में जाने से भी कतरा रहे थे. ऐसे में समाजवादी पार्टी के पास पत्रकारों का भरोसा जीतने का यह सुनहरा अवसर है.
4- मो. फिरदौस खां उर्फ अंजुम भाई, समाजवादी पार्टी, 125 कैंट विधानसभा सीट

मो. फिरदौस खां उर्फ अंजुम भाई

युवा चेहरों में कैंट सीट से मुस्लिम युवाओं में समाजवादी पार्टी के पार्षद और बरेली विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य मो. फिरदौस खां उर्फ अंजुम भाई का नाम पहले पायदान पर है. पहली बार में ही हिस्ट्रीशीटर को हराकर पार्षद बनने वाले अंजुम भाई और उनका परिवार चार बार से लगातार पार्षद बनता आ रहा है. वह अब तक पार्षद का एक भी चुनाव नहीं हारे. अब विधानसभा के लिए पुरजोर तरीके से दावेदारी जता रहे हैं. चुनावी तैयारी तो वह पिछले कई महीनों से कर रहे हैं. हाल ही में सलमानी समाज ने भी अंजुम भाई को समर्थन देने का एलान किया है. बुधवार को ही वह अखिलेश दरबार में हाजिरी लगाकर लौटे हैं. हिन्दू वोटरों पर भी अंजुम भाई की अच्छी पकड़ बताई जाती है. क्षेत्र की जनता के लिए अंजुम भाई का दरबार 24 घंटे खुला रहता है. एक दौर में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के करीबियों में शामिल रहे अंजुम भाई की सबसे बड़ी परेशानी दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके इंजीनियर अनीस अहमद हैं.


5- डा. शाहजेब हसन, समाजवादी पार्टी, 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट
साफ-सुथरी छवि वाले दंत चिकित्सक डा. शाहजेब हसन बरेली विकास प्राधिकरण के नामित सदस्य भी रह चुके हैं. पूर्व विधायक इस्लाम साबिर और उनके भाई फहीम साबिर के साथ राजनीति का ककहरा सीखने वाले डा. शाहजेब अंसारी बिरादरी से आते हैं. कैंट सीट पर अंसारी बिरादरी का बड़ा वोट बैंक है. इसी वोट बैंक पर डा. शाहजेब हसन को भरोसा भी है. यही वजह है कि डा. शाहजेब हसन पुरजोर तरीके से समाजवादी पार्टी के टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं.

डा. शाहजेब हसन

अगर इस्लाम साबिर के परिवार का समर्थन उन्हें पूरी तरह मिला तो उन्हें टिकट भी मिल सकता है लेकिन मुस्लिमों में सबसे मजबूत दावेदार इंजीनियर अनीस अहमद उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. इस चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा.
6- गौरव सक्सेना, समाजवादी पार्टी, 125 कैंट विधानसभा सीट
बात अगर युवा दावेदारों की हो तो गौरव सक्सेना के जिक्र के बिना वह पूरी नहीं होती. छात्र राजनीति से मुख्य धारा की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने वाले गौरव सक्सेना महानगर कार्यकारिणी में महासचिव भी हैं. कैंट क्षेत्र में वह बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने का काम कर रहे हैं. यह जिम्मेदारी वह महानगर महासचिव की हैसियत से भी कर रहे हैं.

गौरव सक्सेना

पार्टी में अपने काम की वजह से ही गौरव सक्सेना ने एक मुकाम हासिल किया है. निर्दलीय पार्षद का चुनाव जीतकर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उनकी शख्सियत किसी पार्टी की मेहरबानी की मोहताज नहीं है लेकिन विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ने के लिए वह पार्टी का सहारा चाहते हैं. अपने काम के आधार पर ही गौरव सक्सेना ने इस बार कैंट विधानसभा सीट से दावेदारी जताई है. गौरव सक्सेना की राह का सबसे बड़ा रोड़ा भी इंजीनियर अनीस अहमद ही हैं. अनीस अहमद की पारिवारिक पृष्ठभूमि और नेता जी के समय से पार्टी के प्रति समर्पण और दो बार विधानसभा चुनाव लड़ने का अनुभव अनीस अहमद को मजबूती दे रहा है.

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