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भ्रष्टाचार के काले खेल में फंसे ललतेश सक्सेना सहित नगर निगम के टैक्स विभाग के अधिकारी, आईडी में किया खेल, लगा दी फर्जी सर्वे रिपोर्ट, पढ़ें पूरा मामला…

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नगर निगम का टैक्स डिपार्टमेंट इन दिनों भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है. विभागीय अधिकारी ही सरकारी खजाने को चूना लगाने में जुटे हैं. भ्रष्टाचार चरम पर है और नगर आयुक्त गांधारी की तरह अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हुए हैं. यही नहीं शासन और जिलाधिकारी कार्यालय से कार्रवाई के लिए भेजी जाने वाली फाइलें भी दबा दी जा रही हैं. ताजा मामला प्रॉपर्टी की आईडी में खेल कर सरकारी खजाने को लाखों रुपये की चपत लगाने और फर्जी सर्वे रिपोर्ट तैयार कर गुमराह करने का सामने आया है. इसकी शिकायत समाजसेवी राजकुमार मेहरोत्रा और एडवोकेट चंद्र प्रकाश गुप्ता ने मंडलायुक्त से की है.

राजकुुमार मेहरोत्रा
एडवोकेट चंद्र प्रकाश गुप्ता

मंडलायुक्त को भेजी गई शिकायत में राजकुमार मेहरोत्रा और एडवोकेट चंद्रप्रकाश गुप्ता ने कहा है कि जोन संख्या-2 में स्थित भवन संख्या 84/89/बी-4ए की पुरानी आईडी 110434 थी तथा इसका वार्षिक मूल्यांकन 550800 रुपये है. इस भवन का वर्ष 2020-21 का बकाया 11 लाख 61 हजार 123 रुपये था लेकिन इस आईडी खत्म कर दिया गया तथा वर्ष 2021-22 में इस आईडी पर नो रिकॉर्ड फाउंड दर्शा दिया गया जबकि नियमानुसार इस प्रॉपर्टी की आईडी को खत्म नहीं किया जा सकता है. इतना ही नहीं इस प्रॉपर्टी पर बकाया 11 लाख रुपये से भी अधिक का टैक्स माफ कर दिया गया. इसके बदले में वर्ष 2007 से 2020 तक भवन खाली रहने तथा भवन का उपयोग न होने का तीन-तीन माह का प्रार्थना पत्र ले लिया गया. अब सवाल यह उठता है कि अगर भवन खाली होने या भवन का उपयोग न होने का प्रार्थना पत्र हर तीन माह पर लिया गया तो प्रॉपर्टी का बकाया पहले ही शून्य हो जाना चाहिए था लेकिन वर्ष 2020-21 में यह राशि 11 लाख 61 हजार रुपये से भी अधिक की कैसे दर्शा दी गई?

इतना ही नहीं वर्ष 2018 में इसी भवन की नई आईडी 110439 बना दी गई और उस पर 72 हजार 112 रुपये का बकाया भी दर्शा दिया गया. साथ ही भवन स्वामी का नाम भी बदल दिया गया. आईडी संख्या 110434 पर भवन संख्या 84/89/बी-4 ए का स्वामी पारसनाथ टंडन को दर्शाया गया है और उसी भवन संख्या की नई आईडी संख्या 110439 पर भवन स्वामी का नाम नवाब मुश्ताक खौर दर्शाया गया है. अब सवाल यह उठता है कि एक ही भवन के एक ही समय पर दो अलग-अलग स्वामियों के नाम से दो अलग-अलग आईडी कैसे बना दी गईं और 11 लाख 61 हजार रुपये से भी अधिक का बकाया क्यों नहीं वसूला गया.

भ्रष्टाचार का यह खेल यहीं पर खत्म नहीं होता. इस काले कारनामे की गवाही वह सरकारी रिकॉर्ड भी दे रहा है जिसमें वर्ष 2014-15 में उक्त प्रॉपर्टी नवाब मुश्ताक खौर के नाम दर्ज है.
हैरानी की बात यह है कि वर्ष 2021 में दी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है, “उक्त भवन का कर समाहर्ता राजेंद्र कुमार और तत्कालीन कर अधीक्षक आरपी सिंह द्वारा स्थलीय सत्यापन भी किया गया है जिसमें यह पाया गया है कि मौके पर संपत्ति खाली है एवं जीर्ण शीर्ण अवस्था में है एवं आसपास के लोगों से भी जानकारी ली गई जिसमें पता चला है कि पूर्व में यहां पर गीता पैलेस नाम से सिनेमा हॉल चलता था जो वित्तीय वर्ष 2007 से बंद है.”
अब सवाल यह है कि अगर स्थलीय सर्वे में प्रॉपर्टी खाली और जीर्ण शीर्ण अवस्था में है तो नवाब मुश्ताक पर कौन सी प्रॉपर्टी का टैक्स बकाया दिखाया गया है? इससे स्पष्ट होता है कि नगर निगम के टैक्स समाहर्ता राजेंद्र कुमार और तत्कालीन कर अधीक्षक आरपी सिंह ने दफ्तर में बैठे-बैठे ही स्थलीय फर्जी सर्वे रिपोर्ट बनाकर सरकारी राजस्व को लाखों रुपये की चपत लगाई है.

पुरानी आईडी पर बकाया राशि
उसी भवन की नई आईडी पर बकाया टैक्स

समाजसेवी राजकुमार मेहरोत्रा और एडवोकेट चंद्र प्रकाश गुप्ता ने आरोप लगाया कि कर निर्धारण अधिकारी ललितेश सक्सेना, तत्कालीन कर अधीक्षक आरपी सिंह, कर समाहर्ता राजेंद्र कुमार और लिपिक रामजीत सिंह की मिलीभगत से फर्जी सर्वे रिपोर्ट बनाई गई तथा गलत तरीके से 11 लाख 61 हजार रुपये से भी अधिक का टैक्स माफ कर भ्रष्टाचार किया गया है. नगर निगम अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैं. यह स्थलीय सत्यापन रिपोर्ट पूरी तरह फर्जी है, तथ्यों पर आधारित नहीं है और इसमें भ्रष्टाचार के लिए उक्त सभी अधिकारी दोषी हैं. अत: नगर निगम को आर्थिक हानि पहुंचाने के लिए कर निर्धारण अधिकारी ललतेश सक्सेना सहित उक्त सभी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो और जो 11 लाख 61 हजार रुपये से भी अधिक का कर माफ किया गया है उसे निरस्त कर पूरी टैक्स की बकाया राशि नगर निगम के खाते में जमा कराई जाए.


इस संबंध में जब कर निर्धारण अधिकारी ललतेश सक्सेना से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामले की फाइल निकलवाकर चेक करेंगे कि गड़बड़ी कहां हुई है.
वहीं जिला अधिकारी नितीश कुमार से जब पूछा गया कि उनके कार्यालय से नगर निगम को भेजी जाने वाली शिकायतों की फाइलें नगर निगम में दबा दी जा रही हैं, क्या उनकी ओर से इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं की जा रही तो डीएम ने कहा कि जिलाधिकारी कार्यालय से नियमानुसार नगर निगम को रिमाइंडर भेजकर जवाब-तलब किया जाता है. अगर कहीं कोई कमी रह गई है तो उसे दूर किया जाएगा.
इस संबंध में जब नगर आयुक्त अभिषेक आनंद से बात करने का प्रयास किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो सका.

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