नीरज सिसौदिया, बरेली
रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के अटूट प्यार का प्रतीक होता है. किस्मत वाले होते हैं जिन्हें इस त्योहार पर अपनी बहन के हाथों से रेशम का धागा नसीब होता है. वहीं, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो सामाजिक जिम्मेदारियों के चलते अपनी बहनों से दूर ही राखी का यह त्योहार मनाने को मजबूर हो जाते हैं. ऐसे लोगों के चेहरे पर उस वक्त मुस्कान खिल उठती है जब कोई गैर उन्हें न सिर्फ अपनेपन का एहसास कराता है बल्कि उनकी सूनी कलाई पर रेशम का अटूट बंधन भी बांध देता है. ऐसे ही भाइयों के होठों पर मुस्कान बिखेरने वाली एक बहन का नाम प्रमिला सक्सेना है. आम जनता के लिए सामाजिक अधिकारों और पर्यावरण की लड़ाई लड़ने वाली प्रमिला सक्सेना इन भाइयों का मर्म भी अच्छी तरह से समझती हैं. यही वजह है कि जब भी राखी का त्योहार आता है तो प्रमिला सक्सेना पारिवारिक जिम्मेदारी की जगह सामाजिक जिम्मेदारी को प्राथमिकता देती हैं. इस बार भी यही हुआ. सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में प्रमिला सक्सेना इतनी मशगूल हो गईं कि पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के लिए उन्हें वक्त ही नहीं मिला और रात 11 बजे वह अपने सगे भाई को राखी बांध पाईं.
बता दें कि वर्चस्व वेलफेयर सोसाइटी के तहत समाज सेवा के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने वाली प्रमिला सक्सेना का भाई लखनऊ में रहता है. प्रमिला ने हर बार की तरह इस वर्ष भी राखी की पूरी तैयारी की हुई थी. सराहनीय बात यह है कि प्रमिला सक्सेना ने खुद ही राखियां बनाईं और सबसे पहले भगवान को बांधी. इसके बाद वह कर्मचारी नगर पुलिस चौकी व पुलिस लाइन मंदिर पहुंचीं. यहां जलाभिषेक कर शिव परिवार एवं बजरंग बली आदि देवी देवताओं को राखी बांधी. फिर मंदिर के पुजारी जी और आरआई को राखी बांधी. फिर परिवार से दूर जिंदगी के अंतिम लम्हे गुजार रहे बुजुर्गों के पास वृद्ध आश्रम पहुंचीं और उनकी सूनी कलाइयों पर रेशम के तार सजाए. उनका मुंह मीठा कराया और सभी बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया.
इतना ही नहीं जिस रिक्शे पर सवार होकर प्रमिला सक्सेना वृद्ध आश्रम पहुंची थीं उसकी सूनी कलाई पर भी राखी बांधी. वहीं वृद्ध आश्रम के संचालकों ने रिक्शा चालक का मुंह मीठा कराने के साथ ही उसे नाश्ता भी कराया. इसके बाद वह अपने भाई को राखी बांधने के लिए लखनऊ निकल पड़ीं.
इस दौरान चौपुला से मालगोदाम तक भीषण जाम का सामना करना पड़ा. फिर सोचा ट्रेन में भीड़ होगी इसलिए बस में ही यात्रा की जाए लेकिन पहले तो बस ही नहीं मिली और काफी इंतजार के बाद जैसे-तैसे बस मिली भी तो सीट नहीं मिली. उस पर कंडक्टर की बदजुबानी अलग से झेलनी पड़ी. पूरा सफर खड़े-खड़े ही करना पड़ा. इन सब परेशानियों से जूझते हुए प्रमिला सक्सेना रात करीब 11 बजे अपने भाई के लखनऊ स्थित घर पहुंचीं और अपने भाई को राखी बांधी. यहां आपको बता दें कि प्रमिला सक्सेना जो एनजीओ चलाती हैं उसके लिए किसी से चंदा नहीं लेती हैं और न ही उन्हें कोई सरकारी मदद ही मिलती है. पति की ओर से उन्हें खर्च के लिए जो राशि मिलती है वह उसे भी समाजसेवा के लिए समर्पित कर देती हैं. अपने एक संकल्प के लिए उन्होंने वर्षों से अन्न ग्रहण नहीं किया है. वह सिर्फ फलाहार पर ही निर्भर हैं. पर्यावरण संरक्षण के लिए वह हमेशा तत्पर रहती हैं. पेड़ों की कटाई का विरोध करती हैं और पौधरोपण पूरा साल करती रहती हैं. वह दूसरों को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करती रहती हैं. हर त्योहार पर बेसहारा और जरूरतमंद लोगों के साथ खुशियां बांटना ही उनके जीवन का उद्देश्य है.