नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी में बहेड़ी नगरपालिका की चेयरमैन के पति और पूर्व बसपा नेता नसीम अहमद की एंट्री ने पूर्व मंत्री अताउर्रहमान खेमे में खलबली मचा दी है. बरेली से लेकर लखनऊ तक जिस तरह से नसीम अहमद ने सियायी दांव खेले हैं उससे अता उर रहमान की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. अता उर रहमान के न चाहते हुए भी नसीम अहमद पहले तो समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन गए और अब 118 बहेड़ी विधानसभा सीट से टिकट की कतार में भी शामिल हो चुके हैं. नसीम अहमद की हैरान करने वाली एंट्री और टिकट के लिए दावेदारी ही अता उर रहमान की परेशानी की मुख्य वजह बताई जाती है. नसीम अहमद जिस तरह से टिकट की तैयारी में जुटे हैं वह अता उर रहमान के लिए मुश्किलें बढ़ा रही हैं.
दरअसल, अता उर रहमान बहेड़ी ही नहीं प्रदेश स्तर पर भी समाजवादी पार्टी का बड़ा चेहरा हुआ करते थे. समाजवादी पार्टी में बरेली में मुस्लिम राजनीति तीन चेहरों के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती थी. इनमें अता उर रहमान, इस्लाम साबिर और सुल्तान बेग शामिल थे. इन तीनों नेताओं में वर्चस्व की जंग अंदरखाने हमेशा चलती रही. इस्लाम साबिर और सुल्तान बेग के मुकाबले फिलहाल कोई ऐसा चेहरा अब तक समाजवादी पार्टी में बरेली में खड़ा नहीं हो सका जो उनसे बड़ा वजूद रखता हो लेकिन अता उर रहमान के सामने नसीम अहमद बड़ी चुनौती बनकर सामने आ गए हैं. नसीम अहमद वर्ष 2017 में पहली बार 118 बहेड़ी विधानसभा सीट से बसपा से चुनाव लड़े थे. उस वक्त भाजपा की लहर थी और अता उर रहमान तत्कालीन विधायक भी रहे थे. इसके बावजूद अता उर रहमान विधानसभा चुनाव में नंबर दो की पोजीशन हासिल नहीं कर सके और नसीम अहमद ने उनसे ज्यादा वोट हासिल करके दूसरे पायदान पर जगह बना ली थी. बस उसी दिन से बहेड़ी में अता उर रहमान का सियासी कद कम होने लगा था.
इससे पहले भी वर्ष 2012 में जब अता उर रहमान चुनाव लड़े थे तो महज 18 वोटों से ही जीत हासिल कर सके थे. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अता उर रहमान को टिकट के लिए काफी जद्दोजेहद करनी पड़ी थी. शिवपाल यादव ने उनकी जगह अंजुम रशीद को प्रत्याशी बनवा दिया था लेकिन बाद में अखिलेश यादव की सपा में वापसी हुई और टिकट अता उर रहमान को मिल गया. इसके बाद से अता उर रहमान को अखिलेश का करीबी माना जाने लगा और पार्टी में उनका कद भी बढ़ गया. शिवपाल यादव सपा से अलग हो गए तो अता उर रहमान का रास्ता पूरी तरह साफ हो चुका था लेकिन हाल ही में नसीम अहमद ने ऐसा दांव खेला कि अता उर रहमान के पैरों तले जमीन निकल गई. अता उर रहमान के न चाहते हुए भी नसीम अहमद की समाजवादी पार्टी में पैराशूट लैंडिंग हो गई. किसी को कानों कान खबर भी नहीं हुई और नसीम अहमद ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली. ऐसे में अता उर रहमान की सियासी जमीन खिसकने लगी है. नसीम अहमद की एंट्री ने यह तो साबित कर दिया है कि अखिलेश यादव की नजरों में अब अता उर रहमान की पहले जैसी स्थिति नहीं रही. नसीम अहमद की एंट्री अता उर रहमान समर्थकों को भी रास नहीं आ रही है. यही वजह है कि पिछले दिनों जब महान दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष केशव देव मौर्य जनाक्रोश रैली लेकर बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे तो अता उर रहमान और नसीम अहमद के समर्थकों में मारपीट हो गई. पार्टी सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि नसीम अहमद की एंट्री से अता उर रहमान के विरोधी गुट के नेता काफी खुश हैं और वे नसीम अहमद को विधानसभा का टिकट दिलवाने का पूरा प्रयास भी कर रहे हैं. वहीं अता उर रहमान की दबंगई वाली छवि नसीम अहमद के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. क्योंकि अखिलेश यादव इस बार कोई ऐसा उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारना चाहते जिसकी वजह से पार्टी की छवि पर प्रतिकूल असर पड़े. साथ ही पिछली बार टिकट गंवाने वाले अंजुम रशीद भी टिकट की कतार में खड़े नजर आ रहे हैं. चूंकि अता उर रहमान की वजह से अंजुम का टिकट काटा गया था इसलिए अब अंजुम भी पूरा जोर लगा रहे हैं कि उन्हें टिकट मिले या न मिले पर अता उर रहमान को टिकट नहीं मिलना चाहिए. बहरहाल, नसीम अहमद की तैयारी अता उर रहमान की मुश्किलें बढ़ने के संकेत दे रही है. अब देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव पहली ही बार में चुनावी मैदान में उतरकर अता उर रहमान को पछाड़ कर नंबर दो की पोजीशन हासिल करने वाले नसीम अहमद को टिकट देगी या फिर पूर्व मंत्री अता उर रहमान पर भरोसा जताते हैं.