जिन्दगी रोज़ थोड़ी थोड़ी
सी व्यतीत हो रही है।
कुछ कुछ जिन्दगी रोज़
ही अतीत हो रही है।।
जिन्दगी जीते नहीं आज
हमें जैसी जीनी चाहिये।
कल आएगी मौत सुनकर
बस भयभीत हो रही है।।
कांटों से कर लो दोस्ती गमों
से भी याराना कर लो।
हँसने बोलने को कुछ न
कुछ तुम बहाना कर लो।।
मायूसी मान लो रास्ता है
इक जिंदा मौत का।
हर बात लो नहीं दिल पर
मिज़ाज़ शायराना कर लो।।
जिंदगी जीनी चाहिये कुछ
अंदाज़ कुछ नज़रंदाज़ से।
हवा चल रही हो उल्टी फिर
भी खुशनुमा मिज़ाज़ से।।
मिलती नहीं है खुशी बाजार
से किसी मोल भाव में।
बस खुश होकर ही जियो
तुम हर एक लिहाज से।।
सुख से जीना है तो उलझनों
को तुम सहेली बना लो।
मत हर छोटी बड़ी बात को
तुम पहेली बना लो।।
समझो जिन्दगी के हर
बात और जज्बात को।
नाचेगी इशारों पर तुम्हारे
जिंदगी अपनी चेली बना लो।।
रचयिता – एस के कपूर” श्री हंस” बरेली