इंटरव्यू

अब तक संभालते थे पिता का चुनाव, अब संभालेंगे राजनीतिक विरासत, ददरौल सीट से ठोकी ताल, पढ़ें पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा के बेटे राजेश वर्मा का स्पेशल इंटरव्यू…

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देश और प्रदेश की सियासत में स्व. राममूर्ति वर्मा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. पांच बार विधायक और दो बार सांसद रहे राममूर्ति वर्मा अंतिम बार शाहजहांपुर जिले की ददरौल विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे. विगत 23 अप्रैल को उनका निधन हो गया. अब तक पिता राममूर्ति वर्मा और पत्नी का चुनाव मैनेजमेंट संभालने वाले राजेश वर्मा अब ददरौल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लेकर उन्होंने पिता की ही सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के लिए आवेदन किया है. महज 17 साल की उम्र से ही पिता के राजनीतिक सफर के हमसफर बने राजेश वर्मा किन मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं? वर्तमान विधायक के कार्यकाल को वह किस नजरिये से देखते हैं? उनका राजनीतिक सफर कैसा रहा? उनमें ऐसा क्या खास है जिसके आधार पर पार्टी उन्हें विधानसभा का प्रत्याशी बनाए? ऐसे कई बिंदुओं पर पूर्व मंत्री स्व. राममूर्ति वर्मा के सुपुत्र और ददरौल सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार राजेश वर्मा ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आप मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं और पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : हम मूलरूप से जलालाबाद के गांव हारगुरैया के रहने वाले हैं. हमारे दादा जी सामाजिक व्यक्ति थे. मैं राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से हूं. मेरे पिता स्व. राममूर्ति वर्मा ने परिवार में सबसे पहले राजनीति शुरू की. गांव देहात में पहले ज्यादातर लोग निरक्षर थे और गरीबी भी बहुत थी. तो उन लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया. सामाजिक भेदभाव को दूर करने का काम किया. सक्रिय राजनीति उन्होंने साधन सहकारी संघ जलालाबाद से शुरू की. उसके बाद उन्होंने लगातार संघर्ष जारी रखा और लोगों के बीच पकड़ बनाई तो वर्ष 1980 में उन्होंने जलालाबाद विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा. उस समय वह लगभग 32 सौ वोट से चुनाव हार गए थे. उसके बाद माननीय नेता जी मुलायम सिंह यादव के टच में आए. 1980 में लोक दल का गठन हुआ था तो मुलायम सिंह यादव प्रदेश अध्यक्ष बने थे. उस वक्त पिताजी सैफई गए और मुलायम सिंह जी के साथ जुड़ गए. वर्ष 1985 में उन्हें टिकट नहीं मिला. वर्ष 1986 में लोकदल में विघटन हुआ और लोक दल अ व लोक दल ब बन गए. लोकदल अ के अध्यक्ष हेमवतीनंदन बहुगुणा बने और लोकदल ब के प्रदेश अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव बने. तो पिताजी वर्ष 1987 में लोक दल ब के शाहजहांपुर के जिला अध्यक्ष बन गए. फिर पूरा विपक्ष कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हुआ. नेता जी ने 17 दलों का एक गठबंधन क्रांतिकारी मोर्चा के नाम से बनाया और सभी दलों के नेताओं के साथ प्रदेश भर में रैलियां कीं. पांच सितंबर को फतेहगंज पश्चिमी भी आए. उस वक्त पिता जी ने हजारों लोगों को एकजुट किया और बहुत बड़ी सभा कराई. लगभग एक हजार ट्रैक्टरों में किसान भरकर आए. हम भी उस आंदोलन का हिस्सा बने. उस समय बहुत बड़े समाजवादी नेता थे रामभरोसे शाक्य. वही हमारे पिता के राजनीतिक गुरु थे. उस वक्त क्रांति रथ यात्रा सफल रही. वर्ष 1988 में जनता दल का गठन हुआ. वर्ष 1988 में वह पहली बार जलालाबाद के ब्लॉक प्रमुख बने. फिर वर्ष 1989 में पिता जी जनता दल के टिकट पर जलालाबाद से विधानसभा चुनाव लड़े और 34 सौ वोटों से जीत हासिल की. उसके बाद 1990 में उसी सरकार में मंत्री भी रहे. फिर वर्ष 1991 में जनता दल टूट गया और समाजवादी जनता पार्टी बनी तो चंद्रशेखर जी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और नेता जी प्रदेश अध्यक्ष बने. वर्ष 1991 में पिता जी समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और कांग्रेस उम्मीदवार को 452 वोटों से हराकर दूसरी बार विधायक बने. वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो उसके संस्थापक सदस्य बने. फिर 1993 में चुनाव हुआ. सरकार चली गई. उस चुनाव में फिर जलालाबाद सीट से 14 हजार वोट से तीसरी बार चुनाव जीत गए.

पूर्व मंत्री स्व. राममूर्ति वर्मा

फिर मायावती की सरकार बनी लेकिन बाद में  भाजपा ने मायावती से समर्थन वापस ले लिया और सरकार भंग हो गई. वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में नेताजी से टिकट को लेकर नाराजगी हो गई. इस पर कांग्रेस के टिकट पर पिताजी शाहजहांपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़े और पहली बार सांसद बने. फिर नेताजी के पास वापस आ गए. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार नहीं चली और वर्ष 1998 में फिर चुनाव हुआ तो पिताजी सपा से लड़े और छह हजार वोटों से हार गए. वर्ष 1999 में फिर चुनाव हुए और पिताजी हार गए. फिर जितेंद्र प्रसाद जी का निधन हो गया और वर्ष 2001 में उपचुनाव हुए तो पिता जी 27 हजार वोट से लोकसभा का उपचुनाव जीत गए. वर्ष 2004 में फिर चुनाव हार गए. वर्ष 2007 में जलालाबाद से विधानसभा चुनाव लड़े और पांच हज़ार वोट से हार गए. फिर वर्ष 2012 में ददरौल से चुनाव लड़े और पांच हज़ार वोट से जीत गए. इसके बाद अखिलेश सरकार में मंत्री बने. फिर भाजपा की लहर में 2017 में ददरौल से चुनाव हार गए.
उसके बाद गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए. इसी साल 23 अप्रैल को उनका निधन हो गया.

सवाल : आपके राजनीतिक सफर की शुरूआत कब हुई?
जवाब : मेरे राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1987 में ही हो गई थी. जब माननीय नेता जी क्रांति रथ लेकर आए थे तो रामभरोसे शाक्य के साथ मैं भी क्रांति रथ पर सवार हुआ था. लगातार पार्टी के लिए काम किया.
सवाल : अब तक का राजनीतिक सफर कैसा रहा?
जवाब : मैं पार्टी में कभी किसी पॉलिटिकल पद पर नहीं रहा क्योंकि पिता जी और पत्नी का चुनाव का पूरा मैनेजमेंट मैं ही देखता था. इसलिए संगठन में कोई जिम्मेदारी निभाना संभव नहीं था. वर्ष 2000 में मैं अपने गांव हारगुरैया से चुनाव लड़ा और प्रधान बना.  2010 तक लगातार प्रधान रहा. वर्ष 2000 में मेरी पत्नी जिला पंचायत सदस्य बनीं. फिर वर्ष 2006 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं. तो इन सबका चुनाव मैनेजमेंट मैं ही देखता था.

राजेश वर्मा की पत्नी और पूर्व मंत्री स्व. राममूर्ति वर्मा की पुत्रवधु अर्चना वर्मा

सवाल : अब आपने ददरौल सीट से सपा के टिकट के लिए दावेदारी की है. आपको ऐसा क्यों लगता है कि टिकट आपको मिलना चाहिए?
जवाब : समाजवादी पार्टी हमारे खून में है. लगातार पार्टी के लिए मैं काम करता आ रहा हूं. लोगों के काम आए. पिता जी ने भी संघर्ष किया है और उनकी इच्छा भी थी कि राजनीति में रहकर जो उन्होंने लोगों की सेवा की है, जो विकास कार्य छूट गए हैं, उन कामों को भी मैं  पूरा करूं. हमारे पिता जी ने अपने बल पर इतना बड़ा नाम देश और प्रदेश में स्थापित किया है, उस राजनीति को आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है. अगर हम राजनीति नहीं करेंगे तो आगे चलकर लोग भूल जाएंगे कि कोई राममूर्ति वर्मा भी थे, तो हमारे नाम के साथ-साथ उनका नाम भी चलेगा.
सवाल : वे कौन से मुद्दे हैं जिन पर आप चुनाव लड़ना चाहेंगे?
जवाब : एक सबसे बड़ा मुद्दा बिजली का है. हमारे क्षेत्र में पिता जी ने बिजली के लिए काफी काम किए थे. चार सब स्टेशन बनाए 32 केवीए के. एक बड़ा विद्युत सब स्टेशन बनाया 132 केवीए का. उन्होंने जिन 266 गांवों का विद्युतीकरण कराया था उनकी लाइनें दुरुस्त नहीं हैं जिसकी वजह से वोल्टेज की बहुत बड़ी समस्या है. जो प्राइवेट ट्यूबवेल लगे हैं, सरकारी ट्यूबवेल हैं उन पर सप्लाई बहुत धीमे जा रही है. वोल्टेज बहुत कम है तो इन जर्जर लाइनों को बदलवाना हमारी प्राथमिकता है जिससे किसानों को भी लाभ पहुंचे और रिहायशी गांव के लोगों को भी लाभ पहुंचे.
सवाल : शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी की आपकी ददरौल विधानसभा सीट पर क्या स्थिति है?
जवाब : हमारी विधानसभा में शिक्षा के लिए पिता जी ने बहुत काम किया है. उन्होंने 8 हाईस्कूल और दस इंटर कॉलेज के साथ ही एक मॉडर्न डिग्री कॉलेज बनवाया है. कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो छूट गए हैं जहां स्कूलों और राजकीय डिग्री कॉलेज की स्थापना करना अनिवार्य है. जैसे मन्नापुर ब्लॉक है वहां कोई राजकीय डिग्री कॉलेज नहीं है. वहां की लगभग डेढ़ लाख की आबादी ऐसी है जिसे राजकीय डिग्री कालेज की सुविधा के लिए या तो 35 किमी दूर जिला मुख्यालय आना पड़ता है या फिर 22-23 किमी दूर जलालाबाद जाना पड़ता है. तो पिछड़े हुए इलाकों में राजकीय डिग्री कॉलेज, राजकीय इंटर कॉलेज, हाईस्कूल बनाना मेरी प्राथमिकता है.
सवाल : स्वास्थ्य की क्या सुविधाएं हैं?
जवाब : स्वास्थ्य के लिए भी बहुत काम किया है. सबसे बड़ा काम जो हमारे पिता जी और माननीय अखिलेश यादव जी ने किया है वह मेडिकल कॉलेज की स्थापना का काम है. अजीतपुर झिंझेरा ग्राम पंचायत में जो बंजर भूमि पड़ी हुई थी उस पर एक बड़ा मेडिकल कॉलेज बनाया गया है. तमाम बच्चे वहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
सवाल : रोजगार की क्या स्थिति है आपकी विधानसभा सीट में?
जवाब : ददरौल विधानसभा क्षेत्र में बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज लगी हैं. औद्योगिक क्षेत्र भी है. लघु उद्योग की काफी संभावनाएं हैं जो अभी नहीं हैं.
सवाल : वर्तमान भाजपा विधायक के पांच साल के कार्यकाल को आप किस नजरिये से देखते हैं?
जवाब : वर्तमान विधायक के कार्यकाल में डेवलपमेंट का तो कोई कार्य हुआ नहीं. न तो कहीं इस पर ध्यान दिया गया. जो काम हमारे पिता जी ने डेवलपमेंट के कराए थे उनकी हमने एक पुस्तिका भी छपवाई थी ‘जनता के प्रति हमारी जवाबदेही’. जनप्रतिनिधि की क्या जवाबदेही होनी चाहिए तो उसी जवाबदेही के तहत पुस्तिका छपवाई थी. तमाम पुल, पुलिया, सड़कें, विद्युतीकरण करवाया था. सैकड़ों महिलाओं की समाजवादी पेंशन लगवाई. नागरपाल का पुल बनवाया जिससे सैकड़ों गांव को शहर से जोड़ दिया गया. वर्तमान विधायक के कार्यकाल में कुछ नहीं हुआ.

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