इंटरव्यू

दस साल में कुतुबखाना में एक टॉयलेट तक नहीं बनवा सके जनप्रतिनिधि, डा. आईएस तोमर को शहामतगंज पुल ले डूबा, भाजपा को कुतुबखाना पुल ले डूबेगा, पढ़ें पंजाबी समाज के नेता संजय आनंद का बेबाक इंटरव्यू

Share now

हिन्दुस्तान के बंटवारे ने जिन परिवारों का सब कुछ छीन लिया था उनमें से एक पाकिस्तानी पंजाब के रहने वाले स्व. गुरदासमल आनंद का परिवार भी था. बंटवारे में मिले जख्मों को लेकर वर्ष 1947 में वह हिन्दुस्तान तो आ गए थे लेकिन वक्त उनके जख्मों को कुरेदता रहा. तीन बार उजड़ने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पिता की बेबसी को करीब से महसूस करने वाले संजय आनंद आज बेबसों का सहारा बन चुके हैं. लोग राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल करने के लिए समाजसेवा का रास्ता चुनते हैं लेकिन संजय आनंद ने समाजसेवा के लिए राजनीति को अलविदा कह दिया. संजय पंजाबी महासभा के अध्यक्ष भी हैं. जनसेवा के कौन से काम पंजाबी महासभा कर रही है? संजय बरेली में ही पले बढ़े और बरेली शहर को बेहद करीब से देखा है. शहर के विकास को वह किस नजरिये से देखते हैं? संजय 80 के दशक में राजनीति में काफी सक्रिय रहे. एनएसयूआई के अध्यक्ष भी रहे फिर राजनीति छोड़ने की क्या वजह रही? कुतुबखाना ओवरब्रिज का विरोध वह क्यों कर रहे हैं? राजनीति समाजसेवा का एक बेहतर माध्यम है लेकिन समाजसेवा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पंजाबी समाज को आज तक बरेली की सियासत में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. पंजाबी समाज को राजनीति में प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए पंजाबी महासभा क्या प्रयास कर रही है? मेयर उमेश गौतम और विधायक डा. अरुण कुमार के विकास के दावों को वह किस नजरिये से देखते हैं? ऐसे कई बिंदुओं पर पंजाबी महासभा के अध्यक्ष संजय आनंद ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…

सवाल : आप मूलरूप से कहां के रहने वाले हैं और पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : हम मूलरूप से पंजाबी हैं. हमारे पूर्वज पाकिस्तानी पंजाब के रहने वाले थे. वर्ष 1947 में जब बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान में अपना सबकुछ छोड़कर मेरे पिता भारत आ गए. हरिद्वार, देहरादून और दिल्ली होते हुए वह बरेली आए. छोटा सा कारोबार था मेरे पिता स्वर्गीय गुरदासमल आनंद का. मेरी मां का नाम मां कैलाश रानी है. मां-पिता ने बहुत गरीबी में परिवार को पाला. हम तीन भाई और दो बहनें हैं. मेरे पिता ने बहुत संघर्ष किया यहां स्थापित होने के लिए. शुरू-शुरू में सिगरेट बेची, थोड़ा-थोड़ा सामान बेचा. वर्ष 1950 में काफी मेहनत के बाद उन्होंने कुतुबखाना में ही एक छोटा सा खोखा लगाया था लेकिन उसी दौरान उसमें आग लग गई और सब तबाह हो गया. फिर उन्होंने दोबारा उसे खड़ा किया. कुछ सालों तक सब ठीक चला. हालात सुधरने लगे थे लेकिन वर्ष 1971 में उस छोटी सी दुकान में फिर से आग लग गई. हम फिर बर्बाद हो गए. पिता ने फिर संघर्ष किया और कारोबार को संभाला. चार साल बाद वर्ष 1975 में तीसरी बार दुकान जलकर राख हो गई तीन बार पिता की मेहनत आग की भेंट चढ़ गई लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. धीरे-धीरे पिता का व्यापार बढ़ा. छोटी दुकान से बड़ी दुकान हुई. उस दौर में हम बड़ा बाजार में रहा करते थे. वर्ष 1977 में हमने राजेंद्र नगर में अपना घर बनाया. उसके बाद सुख सागर लिया गया. आज पिता के आशीर्वाद से सुखसागर ड्राई फ्रूट्स की दुनिया में उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक एक ब्रांड बन चुका है.


सवाल : पंजाबी महासभा से कब जुड़ना हुआ?
जवाब : वैसे तो मैं लगभग 15 साल से पंजाबी महासभा से जुड़ा हूं पर पदाधिकारी के तौर पर मैं आज से पांच साल पहले सक्रिय हुआ जब मुझे महासभा में महामंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उसके बाद अध्यक्ष बना और आज भी अध्यक्ष हूं.
सवाल : किस तरह के कार्य कर रही है पंजाबी महासभा, आपके अध्यक्ष बनने के बाद क्या बदलाव हुए महासभा की कार्यशैली में?
जवाब : पंजाबी महासभा ने एक नए रूप में संगठन को चलाया है. समाजसेवा के क्षेत्र में यह आज भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है. आज लगभग 500 परिवारों को पंजाबी महासभा ने जोड़ा है जिनकी हर महीने बैठक होती है. महासभा ने जो सबसे पहला कार्य कि 14 लाख रुपये का स्वर्ग धाम वाहन लिया जो आज तक लगभग 5000 शवों को सुरक्षित श्मशान भूमि तक पहुंचा चुका है. उसके बाद चार मोर्चरी शव शैय्या बनवाईं जो शव को सुरक्षित रखने में मदद करती हैं. महासभा की ओर से पंजाबी समाज की सौ गरीब विधवा महिलाओं को प्रतिमाह पांच सौ रुपये की पेंशन और पांच सौ रुपये का राशन वितरित किया जाता है. राशन वितरण योजना को हमने अन्नपूरक योजना का नाम दिया है. इसके तहत हम अब तक 60 लाख रुपये का राशन वितरित कर चुके हैं. इसके अलावा कंबल वितरण, वस्त्र वितरण आदि काम भी समय-समय पर महासभा करती रहती है. महासभा की ओर से एक लंगर गाड़ी की भी शुरुआत की गई है जो लगभग 500 लंगर बांट चुकी है. 200 लोगों का लंगर बरेली के ही डीडी पुरम में रोजाना बांटा जाता है. लगभग तीन माह पूर्व हमने वृंदावन यात्रा योजना की शुरुआत की है. यह यात्रा उन लोगों के लिए शुरू की गई है जो पैसों के अभाव में वृंदावन यात्रा नहीं कर पाते. उन्हें सौ रुपये में वॉल्वो बस से लाना-ले जाना और खाने-पीने तक की सारी व्यवस्था महासभा की ओर से की जाती है. अब तक हमारी तीन बसें वृंदावन धाम जा चुकी हैं और चौथी बस अब जाने वाली है.


सवाल : पंजाबी समाज बरेली में बड़ी तादाद में सक्रिय है लेकिन राजनीति में उसे प्रतिनिधित्व नहीं मिलता. क्या आपको नहीं लगता कि समाजसेवा में अग्रणी भागीदारी निभाने वाले पंजाबी समाज के लोगों को राजनीति में भी आना चाहिए?
जवाब : जी बिल्कुल आना चाहिए. हमारी अगली योजना बरेली में पंजाबियों की राजनीतिक स्थिति को लेकर ही शुरू करने की है. हम विधानसभा 124 और 125 में सर्वे कराने जा रहे हैं कि कितने पंजाबी मतदाता हैं बरेली में क्योंकि आज भी राजनीतिक पार्टियां हमें सिर्फ 10 हजार मानती हैं लेकिन हमारा अपना अनुभव, हमारा अपना आकलन कहता है कि हम 10 हजार नहीं बल्कि 40 से 50 हजार के करीब हैं. आज धर्म की समाज की राजनीति चल रही है. हर कोई समाज में बंटा हुआ है. कहीं कायस्थ वोट ज्यादा है तो उसे टिकट दे दिया जाता है. गंगवार वोट ज्यादा है तो संतोष जी लड़ते चले आ रहे हैं जीतते चले आ रहे हैं. तो क्यों न पंजाबियों को भी टिकट मिले और पंजाबियों की राजनीति में भागीदारी बढ़े. यह एक नई चीज शुरू करने वाले हैं हम.


सवाल : पंजाबी महासभा को आगे बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
जवाब : हमने पंजाबी महासभा की छह इकाइयां बनाई हैं. हमारी महिला इकाई है जिसमें 186 महिलाओं की मासिक बैठक होती है. उत्तर प्रदेश का एक महिलाओं का संगठन महिला इकाई बनाया. उसके बाद एक महिला युवा इकाई बनाई जो हमारी बेटियां हैं, हमारी बहुएं हैं उनको जोड़ा. महिला युवा इकाई बनाई. फिर एक युवा इकाई बनाई अपने बच्चों की. कोई भी त्योहार हो, कोई भी आयोजन हो हमारी सभी इकाइयां मिलकर उसे सेलिब्रेट करती हैं. कोरोना काल में पंजाबी महासभा ने अग्रणी रहकर 18 लाख रुपए की एक सबसे बड़ी राशि खर्च की और लगभग 2 ट्रक पानी-शरबत और 240 टन राशन उन प्रवासियों को बांटा जो दूरदराज के शहरों से, बाहरी राज्यों से भूखे प्यासे चले आ रहे थे. इतना ही नहीं लगभग 47 बेटियों की शादी भी पंजाबी महासभा की ओर से कराई जा चुकी है. लगभग 30 परिवारों का तलाक का मामला भी बिना कोर्ट जाए पंजाबी महासभा ने आपस में बैठकर सुलझाया है. परिवारों को टूटने से बचाया है. लगभग एक साल पूर्व एक कपूर परिवार के बेटे की हत्या कर दी गई थी डीडी पुरम में, उसकी पत्नी को पांच लाख रुपये की मदद की थी पंजाबी महासभा ने. तो इस तरह के कार्य करती रहती है महासभा.


सवाल : आप राजनीति में कब आए और इसे छोड़ने की क्या वजह रही दी?
जवाब : मैं कॉलेज टाइम से ही राजनीति में सक्रिय हो गया था. राजनीति में मेरी शुरुआत तो विद्यार्थी परिषद से हुई थी लेकिन एक साल में ही मेरा मोह भंग हो गया था. फिर मैंने एनएसयूआई ज्वाइन की और उसमें मैं यूनिवर्सिटी का प्रेसिडेंट भी रहा. वर्ष 1980-82 में मैं प्रेसिडेंट रहा. 1986 में एनएसयूआई का यूनिवर्सिटी का अध्यक्ष रहा. फिर यूथ कांग्रेस अध्यक्ष रहा, फिर कांग्रेस की मुख्य बॉडी में रहा. चुनाव के दौरान मैं पहले भी सक्रिय रहता था और आज भी सक्रिय रहता हूं लेकिन समाज सेवा से जुड़ने के कारण मैंने राजनीति त्याग दी. चूंकि पंजाबी महासभा का हमारा एक नारा था ‘सेवा की बात हमारे साथ’. दूसरा कारण यह था कि गैर राजनीतिक संगठन है यह. मैं जब अध्यक्ष बना तो मैंने हर पार्टी के लोगों को मंच पर बुलाया. चाहे भाजपा हो, सपा हो या कांग्रेस हो, मैंने सभी दलों को अहमियत दी.


सवाल : आप बरेली में पले-बढ़े और इस शहर को बेहद करीब से देखा है. विकास की रफ्तार को किस नजरिये से देखते हैं आप?
जवाब : विकास एक ऐसी चीज है जो समय-समय पर योजना के अनुसार निरंतर चलती रहती है. लेकिन ऐसा कोई विकास आज तक बरेली में नहीं हुआ जिसे हम वास्तव में विकास का नाम दे सकें. कोई ऐसी चीज नहीं हुई जिसे देखकर हम यह कह सकें कि वाकई विकास हुआ है. पुल बन रहे हैं, पार्क बन रहे हैं लेकिन यह एक आम बात है. विकास पूर्व मुख्यमंत्री स्व. एनडी तिवारी के दौर में हुआ था. बहुत सारी इंडस्ट्रीज लगाई थीं उन्होंने बरेली जिले में. आज लोग कहते हैं कि वर्ष 2014 के बाद सब कुछ हुआ है. मैं इस चीज को ही नहीं मानता. मैं कहता हूं कि पूर्व में भी काम हुए और आज भी काम हो रहे हैं लेकिन ये रूटीन के काम हैं. कोई अनोखे काम नहीं हो रहे. बरेली शहर को सबसे पहली जरूरत है नियम बनाने की और उनका पालन करवाने की. हमसे लगभग 70-80 किलोमीटर की दूरी पर उत्तराखंड का एक शहर है हल्द्वानी. वहां आपको ब्लैक कमांडो मिलेंगे, वहां कोई भी बिना हेलमेट के नहीं दिखेगा. शहर की दशा सुधारने को रूल्स बनाए जाते हैं लेकिन यहां रूल्स ही नहीं हैंं. हाल ही में हम एसपी सिटी से मिले और उनसे जब रूल्स बनाने की बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे पास व्यवस्था ही नहीं है. सिपाही नहीं हैं. क्या व्यवस्था बनाओगे आप? जब आपके पास सिपाही नहीं है. कुतुबखाने पर अभी लाइट लगी तो दिन बाद बुझ गई. पैसा खा गए सारे लोग. आज कुतुबखाने खाने पर मोती पार्क है. ऐतिहासिक जगह है. यहां पर एक टॉयलेट बना हुआ है. सिर्फ एक ही टॉयलेट है. मेयर से भी कह चुके हैं, विधायक से भी कह चुके हैं लेकिन कोई भी नेता यहां एक भी टॉयलेट बनवा सके हैं और न ही यहां कोई काम करवा सके हैं. आज यह नया प्रोजेक्ट लेकर आ रहे हैं कुतुब खाना ओवरब्रिज का. हम इसका सबसे बड़ा विरोध करते हैं.


सवाल : कुतुबखाना ओवरब्रिज का विरोध आप क्यों कर रहे हैं, इससे तो जाम से निजात मिलेगी और व्यापारियों को ही फायदा होगा?
जवाब : बरेली का हार्ट ऑफ सिटी है कुतुबखाना क्षेत्र. जहां लगभग एक लाख से भी अधिक व्यापारी कर्मचारियों समेत काम करते हैं. जिले का व्यापारी यहां आकर माल खरीदता है. आप उसे बंद कर दोगे. पूर्व में सरकारें, राजा- महाराजा बाजार बसाया करते थे और आप उजाड़ रहे हैं. जाम दुकानदार नहीं लगा रहा. जाम आपकी अव्यवस्था के कारण लगते हैं. वर्ष 1960 में, 70 में, 75 तक यहां बसें चला करती थीं लेकिन आज नहीं चलती हैं. आबादी पब्लिक बढ़ा रही है तो क्या कसूरवार दुकानदार है? आबादी के हिसाब से विकास सरकार नहीं कर पाई है, जनप्रतिनिधि नहीं कर पाए हैं. आपको अगर सही मायने में विकास करना है तो इंडस्ट्री लगाइए, बाजार बाहर शिफ्ट कर दीजिए. क्यों नहीं कर रहे आप, मेडिकल वालों को, रेडीमेड वालों को जगह दीजिए. आप तो बस यह कर रहे हैं कि पुल बना दिया. बाजार बाहर विकसित करिए क्यों नहीं कर रहे? 340 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है और आप लोग कमीशन के चक्कर में पुल बना रहे हैं. अधिकारी न बाजार आया और न ही व्यापारियों की बात सुनी. बस ऑफिस में बैठकर नक्शा बना दिया कि पुल बनेगा. अधिकारी आज है कल चला जाएगा लेकिन परेशानी किसे झेलनी होगी? व्यापारी को. डॉक्टर आईएस तोमर ने शहामतगंज का पुल बनवाया था और उसके बाद यहां से चुनाव लड़े. 14000 वोटों से हार गए. एक बहुत बड़ा ओवर ब्रिज बनवाया था उन्होंने शहामत गंज का. फिर क्यों हार गए? जीतना चाहिए था न क्योंकि उन्होंने पुल बनवाया था लेकिन वह पुल की व्यापारियों के हित में नहीं था. जो व्यापारी पुल की जज में आया उसने डॉक्टर आईएस तोमर को वोट नहीं दिया, वहां तो कुछ हजार लोग थे तो आप चुनाव हार गए और यहां लाखों लोग हैं. क्या हाल होगा चुनाव का, आप एक भी ईंट लगाकर तो देखिए. भाजपा जीतेगी नहीं. आज चुनाव धर्म जाति के नाम पर हो रहा है विकास पर नहीं. आज एक ही समुदाय का वोट पड़ता है और 25 साल से एक ही व्यक्ति जीतता आ रहा है. वह कहता है कि हमें आपकी जरूरत ही नहीं है. पब्लिक भी जागरूक नहीं है| 40 वर्षों में एक भी इंडस्ट्री लगाई हो तो बताएं.


सवाल : एयरपोर्ट तो बन गया बरेली में?
जवाब : यह एयरपोर्ट भी भाजपा की उपलब्धि नहीं है. आज ये एयरपोर्ट को अपनी उपलब्धि बताते हैं. एयरपोर्ट की जमीन तो मायावती ने दी थी. पैसा दिया था मुलायम सिंह और अखिलेश यादव ने. आपने उसमें क्या लगा दिया कि आप जहाज लेकर आए? जबकि जहाज की रोजाना की जरूरत ही नहीं है. फ्लाइट शुरू होना अच्छी बात है, मैं उसका विरोध नहीं कर रहा पर और भी तो जरूरतें हैं. पहले उन्हें तो पूरा करें.


सवाल : अगर पंजाबी समाज को मौका मिले राजनीति में आने और सत्ता पर बैठने का तो क्या करेंगे?
जवाब : अगर पंजाबी समाज को मौका मिलेगा तो सबसे पहले बरेली शहर से जाति की राजनीति खत्म होगी. आपने देखा होगा कि पंजाबी हों या सिख हों हैं तो एक ही. सेवा में कभी पीछे नहीं हटते, वे कोई भेदभाव नहीं रखते. वे हिंदू-मुस्लिम देखकर भी काम नहीं करते. वे लंगर लगाते हैं तो यह सोच नहीं रखते कि ये हिंदू है या मुस्लिम है, ईसाई है या फिर सिख है, वे सबको एक ही नजरिये से देखते हैं और सेवा करते हैं. आज अगर राजनीति में भी पंजाबी समाज आता है तो वह सब को एक ही नजरिए से देखेगा और विकास कराएगा.


सवाल : क्या पंजाबी सभा को गरीबों के सेवा के लिए कोई मदद मिलती है?
जवाब : बरेली शहर में पंजाबी महासभा अब तक दो करोड़ रुपए के कार्य अपने दम पर कर चुकी है जो बहुत बड़ी उपलब्धि है महासभा की. वह भी बिना किसी से मांगे. कोई सरकारी मदद भी नहीं ली लेकिन कोई भी दुखियारा हमारे दर पर आता है तो खाली हाथ बिल्कुल भी नहीं जाता.

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *