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जब मिला था दलितों का साथ तो बरेली जिले की नौ में से सात सीटें जीती थी सपा, ब्रह्मस्वरूप सागर को बरेली में दलित चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट कर सकती है सपा 

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली जिले की नौ विधानसभा सीटों पर दलित वोट बैंक हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहा है लेकिन समाजवादी पार्टी यहां किसी भी बड़े चेहरे को दलितों के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर पाई है. यही वजह है कि सिर्फ बरेली जिला ही नहीं बल्कि पूरे बरेली मंडल में दलितों का वोट या तो बहुजन समाज पार्टी ले गई या फिर भारतीय जनता पार्टी के खाते में गया. दलितों का विश्वास जीतने के लिए सपा ने न तो यहां कभी प्रयास किया और न ही कभी किसी चेहरे को दलितों के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया. पहले भी जहां ब्रह्म स्वरूप सागर जिला प्रवक्ता के रूप में समाजवादी पार्टी का दलित चेहरा थे और जिले की दलित राजनीति के केंद्र भी हुआ करते थे वहीं उन्होंने स्व. ताराचंद वाल्मीकि को पार्टी में लाकर दलितों को प्रभावी तरीके से जोड़ने का काम किया था लेकिन बाद में ब्रह्म स्वरूप सागर के बसपा में जाने के बाद सपा के पास कोई भी बड़ा दलित चेहरा बरेली जिले में नहीं रह गया था. वहीं अब सपा में वापसी के बाद ब्रह्म स्वरूप सागर दलितों का वोट बैंक साधने में और अधिक सक्षम नजर आते हैं क्योंकि बसपा में दस वर्ष रहने के दौरान उन्होंने दलितों और पिछड़ों के बीच गहराई से काम किया है और व्यक्तिगत रूप में दलितों को एकजुट करने में सफलता भी हासिल की है. बसपा का मौजूदा सियासी हाल देखते हुए ब्रह्म स्वरूप सागर दलितों को यह समझाने में भी सक्षम हैं कि दलितों के हित बसपा की जगह अब सपा में सुरक्षित हैं लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब सपा ब्रह्म स्वरूप सागर को उस सम्मान से नवाजे जिसे देखकर दलित गौरवान्वित महसूस करें कि सपा भी दलित नेताओं को उसी प्रकार सम्मान देगी जिस प्रकार बसपा में दिया जाता था. फिलहाल सपा ने दलितों की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जबकि अबकी बार अगर समाजवादी पार्टी को  बरेली मंडल में दलितों का वोट मिलेगा तो सपा जिले की सभी नौ सीटों पर भी आसानी से जीत हासिल कर सकती है.
इतिहास गवाह है कि जब समाजवादी पार्टी को दलितों का साथ मिला तो बरेली में उसे जीत हासिल हुई. वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. बसपा से गठबंधन के कारण उस वक्त बड़ी तादाद में दलितों का वोट सपा के खाते में आया था. उस वक्त बरेली की नौ में से सात सीटें समाजवादी पार्टी ने ही जीती थीं. इनमें बहेड़ी से मंजूर अहमद, कावर से शराफतयार खान, भोजीपुरा से हरीश गंगवार, आंवला से महिपाल सिंह यादव, फरीदपुर से सियाराम सागर, सनहा से कुंवर सर्वराज सिंह और बरेली कैंट से समाजवादी पार्टी के ही प्रवीण सिंह ऐरन ने जीत हासिल की थी. सिर्फ नवाबगंज और बरेली शहर सीट पर ही उस समय भाजपा में रहे भगवत सरन गंगवार और राजेश अग्रवाल जीते थे. पहले की तुलना में आज दलित वोटों की संख्या कई गुना अधिक है. समाजवादी पार्टी का खुद यह मानना है कि भाजपा को हराने के लिए अबकी बार मुस्लिम वोट एकतरफा उनके खाते में जाएगा लेकिन सिर्फ मुस्लिम और यादव वोटों के जरिये सीट जीतना अब संभव नहीं है. जब तक दलित वोट नहीं मिलेंगे तब तक समाजवादी पार्टी बरेली की किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकेगी और दलित वोट हासिल करने के लिए उसे किसी ऐसे चेहरे को प्रतिनिधित्व देना होगा जो सिर्फ अपनी विधानसभा सीट पर ही नहीं मंडल भर की सियासत में अपनी अलग पहचान रखता हो और दलित वोटों का ध्रुवीकरण करने में सक्षम हो. फिलहाल समाजवादी पार्टी के पास ऐसा एकमात्र चेहरा ब्रह्म स्वरूप सागर का ही नजर आ रहा है. चूंकि ब्रह्म स्वरूप सागर पुराने समाजवादी हैं और बरेली एवं मुरादाबाद मंडल की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय भी हैं इसलिए पार्टी के लिए वह लाभदायक साबित हो सकते हैं. बहरहाल, समाजवादी पार्टी दलितों को कितनी तवज्जो देती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा मगर दलित वोट बैंक के बिना बरेली जिले के सपा के उम्मीदवारों के लिए विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ना आसान नहीं होगा.

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