इंटरव्यू

कैंट विधानसभा में कोई काम नहीं हो रहा, सब अपनी जेबें  भरने में लगे हैं, कल तक जो मोटरसाइकिल से चलते थे आज अरबपति हैं, पढ़ें पूर्व भाजपा महानगर अध्यक्ष का स्पेशल इंटरव्यू?

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बरेली की सियासत और समाजसेवा के क्षेत्र में अजय अग्रवाल का चेहरा किसी परिचय का मोहताज नहीं है. अजय अग्रवाल उन लोगों में से हैं जो जनसंघ के जमाने से पार्टी की सेवा कर रहे हैं. एक समय था जब भाजपा महानगर अध्यक्ष का चुनाव कार्यकर्ताओं द्वारा वोटिंग के माध्यम से किया जाता था. उस दौर में अजय अग्रवाल दो बार महानगर अध्यक्ष चुने गए थे. पार्टी के आला नेताओं से नाराजगी के चलते अजय अग्रवाल ने मुख्य धारा की राजनीति से किनारा कर लिया लेकिन भाजपा को नहीं छोड़ा. समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुके अजय अग्रवाल ने राजनीति क्यों छोड़ दी? तब और अब की राजनीति में वह क्या फर्क महसूस करते हैं? कैंट विधायक के वर्तमान कार्यकाल को वह किस नजरिये से देखते हैं? समाजसेवा के क्षेत्र में वह कौन-कौन से उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं? राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर उनका क्या नजरिया है? ऐसे कई मुद्दों पर भाजपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष अजय अग्रवाल ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आप मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : मैं मूलत: बरेली का ही रहने वाला हूं. यहां साहूकारा में एक वैश्य परिवार में वर्ष 1954 में मेरा जन्म हुआ था. मेरे पिता सर्राफा कारोबारी थे और मैं भी सर्राफे का ही कारोबार करता हूं.
सवाल : राजनीति में कब आना हुआ?
जवाब : समाज सेवा के प्रति मेरा झुकाव बचपन से ही था. वर्ष 1972 में मैं जनसंघ से जुड़ गया था जब उनका चुनाव निशान दीपक हुआ करता था. उसी में सक्रिय रहा और लगातार समाज सेवा करता रहा. जनसंघ से ही मेरे राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई.
सवाल : अब तक का राजनीतिक सफर कैसा रहा, कौन-कौन सी जिम्मेदारियां मिलीं?
जवाब : जनसंघ के बाद जब वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी तो मैं बतौर कार्यकर्ता उसमें काफी सक्रिय रहा. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेई जी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. इसके बाद मेरे समर्पण और सेवा भाव को देखते हुए मुझे साहूकारा वार्ड अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई जो मैंने पूरी मेहनत और लगन से निभाई. इसके बाद मुझे भाजपा के पश्चिमी मंडल का अध्यक्ष बनाया गया. यह वह दौर था जब भाजपा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी और हम पार्टी को बरेली में स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे. फिर मेरे कार्यों को देखते हुए वर्ष 1989 में मुझे महानगर भाजपा अध्यक्ष चुना गया. उस वक्त कार्यकर्ता मतदान करके अध्यक्ष चुना करते थे. वर्ष 1993 में जब दोबारा महानगर अध्यक्ष के चुनाव हुए तो मुझे 126 में से कुल 97 वोट मिले और 3 वोट सतीश रोहतगी को मिले थे जो पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार जी के संसदीय कार्यालय में काम देखते हैं. इस तरह वर्ष 1993 में मैं दोबारा महानगर भाजपा अध्यक्ष चुन लिया गया. उस वक्त पार्टी के आला नेता नहीं चाहते थे कि मैं महानगर अध्यक्ष बनूं लेकिन कार्यकर्ता मुझे बेहद पसंद करते थे. इसलिए मुझे दोबारा से चुनकर महानगर अध्यक्ष बनाया. इसका मुझे यह नुकसान हुआ कि वर्ष 1993 में जब विधानसभा चुनाव आए तो मुझे टिकट नहीं दिया गया. पार्टी के अंदर उपजी इस गुटबंदी से मैं बेहद निराश था और परेशान होकर वर्ष 1994 में मैंने महानगर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

राजनीति पर अपने विचार रखते अजय अग्रवाल

सवाल : महानगर भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद क्या राजनीति छोड़ दी?
जवाब : कुछ दिन तो मैं परेशान रहा कि समाज सेवा का काम कैसे करूंगा लेकिन समाजसेवा करने की इच्छा थी तो करता रहा. मैं रहा बीजेपी में ही और मेरी विचारधारा आज भी वही है जो भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा है.
सवाल : समाजसेवा के लिए क्या आप किसी सामाजिक संगठन से भी जुड़े?
जवाब : मैं कई समाजसेवी संगठनों से जुड़कर काम करता रहा. बरेली गौशाला कमेटी, अग्रवाल सेवा समिति, सनातन धर्म स्कूल, युवक कल्याण परिषद और बरेली विकास मंच जैसी तमाम संस्थाओं में मैं जुड़ा रहा. वर्तमान में हम बरेली विकास मंच के नाम से संस्था चला रहे हैं.
सवाल : लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का विचार कैसे आया?
जवाब : वर्ष 1980 से हम रामगंगा नदी जाया करते थे और 26 साल लगातार जाते रहे. हुआ यह कि जब हम वहां जाते थे तो अक्सर नदी में लाश तैरती नजर आती थी. जब हमने स्थानीय लोगों से पूछा तो पता चला कि लावारिस लाशों को नदी में फेंक दिया जाता है. वर्ष 1996 की बात है कि हमारे सामने ही रिक्शे वाले ने दो शव नदी में फेंक दिए तब हमारे मन में यह ख्याल आया कि हमें इस समस्या का हल करना है. इस पर हमने बरेली विकास मंच के नाम से तत्काल एक संस्था बनाई और जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया. लगभग 50-60 लोग मिलकर ज्ञापन देने गए थे. हमने उनके समक्ष प्रस्ताव रखा कि नदी में जो लावारिस शव डाले जाते हैं उनका अंतिम संस्कार करवाने की जिम्मेदारी हम लेना चाहते हैं. हम पहले ऐसे लोग थे जो इस समस्या के समाधान के लिए आगे आए थे. वर्ष 1998 में हमने संस्था का गठन किया तो जिलाधिकारी और एसएसपी पीके मौर्य से बात की. हमारी भावनाओं एवं उद्देश्य को उन्होंने समझा और 27 नवंबर वर्ष 1998 को उन्होंने हमें यह जिम्मेदारी सौंप दी. उसी दिन से बरेली विकास मंच पूरे जिले के लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने लगा. अब तक हम लगभग 5000 से भी अधिक शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. बरेली विकास मंच से करीब 600 लोग जुड़े हुए हैं.
सवाल : लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के अलावा भी आप समाज सेवा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं?
जवाब : वर्ष 2004 में हमने देखा कि मंदिर के इधर-उधर फूल पड़े रहते थे, चौराहों पर खंडित मूर्तियां पड़ी रहती थीं तो हमने इसकी योजना बनाई और 80 जगहों पर सीमेंट के बड़े-बड़े पॉट रखे जो आज भी रखे हुए हैं. सारे फूल, खंडित मूर्तियां और तस्वीर वगैरह लोग इसमें डाल दिया करते थे. हम उन्हें उठाकर राम गंगा किनारे गड्ढों में डाल दिया करते थे. 10 साल तक हमने यह योजना चलाई लेकिन लोगों ने इसका दुरुपयोग किया और उसमें गंदा सामान डालना शुरू कर दिया. फिर हमने इस योजना को बंद कर दिया. हालांकि कुछ जगहों पर यह काम अभी भी चल रहा है. इसके अलावा संस्था की ओर से जरूरतमंद महिलाओं को तीन सौ रुपये से लेकर सात सौ रुपये तक की पेंशन प्रतिमाह दी जाती है ताकि उनके भरण पोषण में कुछ मदद हो सके. फिलहाल ऐसी करीब 90 महिलाओं को प्रतिमाह पेंशन दी जा रही है.
सवाल : वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और अपने दौर की राजनीति में आप क्या अंतर महसूस करते हैं?
जवाब : पहले राजनीति सेवा की भावना से होती थी. जब हम राजनीति करते थे तो उस समय इतना भ्रष्टाचार नहीं. हम 4 साल महानगर अध्यक्ष रहे. न हमने भ्रष्टाचार किया और न ही हमारे साथियों ने किया लेकिन आजकल की राजनीति सेवा भाव की राजनीति नहीं है. चूंकि हम संघ से जुड़े हुए हैं और हमारे रग-रग में भाजपा की विचारधारा बसी है इसलिए हम अभी भी भाजपा के समर्थक हैं और हमेशा रहेंगे.
सवाल : क्या राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या का कोई समाधान है?
जवाब : हम तो बहुत छोटे समाजसेवी हैं. बड़े-बड़े राजनेता बैठे हुए हैं ऊपर लेकिन इस समस्या का कोई समाधान नहीं है क्योंकि पहले विचारों की राजनीति होती थी और अब लेन-देन की राजनीति हो रही है. विचारों की राजनीति खत्म हो चुकी है. आज गलत तरीकों से आदमी पार्टी के जिम्मेदार पदों पर बैठ जा रहा है. पहले हम कार्यकर्ताओं द्वारा चुनकर आए थे.
सवाल : पहले और अब के चुनाव में क्या बदलाव देखते हैं, आपके हिसाब से चुनावी मुद्दे क्या होना चाहिए?
जवाब : पहले पता ही नहीं लगता था कि चुनाव हो रहे हैं मगर आज करोड़ों-अरबों रुपया बंट रहा है और भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. मुद्दे समाज सेवा के और समाज सुधार के होने चाहिए. जहां तक महंगाई का सवाल है, महंगाई इस समय बहुत हो गई है. यह दुर्भाग्य है हिंदुस्तान का कि यहां हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनाया जा रहा है जबकि हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ना नहीं चाहते. समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही पार्टियों के कुछ सिरफिरे नेता इन्हें लड़वा रहे हैं जनता नहीं चाहती लड़ना. सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है. रोजगार तो मिला ही नहीं किसी को. अगर कोई वैकेंसी आती भी है तो लाखों रुपए की रिश्वत चाहिए उसमें नियुक्ति पाने के लिए.
सवाल : आप कैंट विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं, कैंट विधायक के वर्तमान कार्यकाल को आप किस नजरिए से देखते हैं?
जवाब : मेरे नजरिये से देखा जाए तो कोई काम नहीं हो रहा है. सब लोग अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं. कल तक जो मोटरसाइकिल से चलते थे आज वे अरबपति बन चुके हैं. कल तक जिनके मकान तक ठीक नहीं थे, वे भी आज अरबपति बने हुए हैं. हम जब अध्यक्ष थे तो जो विधायक बने थे उनकी हालत बहुत दयनीय थी उस समय और आज करोड़ों अरबों के मालिक बन गए हैं. क्षेत्र के विकास की रफ्तार बहुत धीमी है. अब राजनीति व्यापार हो चुकी है. हमें तो लगता ही नहीं है कि कहीं कोई विकास हुआ है. थोड़ा बहुत इसलिए हुआ है कि दिखावा किया जा सके. ऊंट के मुंह में जीरा डाल दिया है. यहां के मुख्य स्थानीय मुद्दे सड़कें और लाइटें हैं.
सवाल : …तो आप भाजपा को वोट नहीं देंगे?
जवाब : चाहे कुछ भी हो जाए. हम तो भाजपा को ही वोट देंगे. हम भले ही किसी बात से नाराज हों लेकिन हमारी विचारधारा तो भाजपा की ही है इसलिए वोट तो हम भाजपा को ही देंगे.

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