नीरज सिसौदिया, बरेली
सियासत का मैदान हो या जंग का मैदान, इतिहास के पन्ने क्षत्रियों की वीरगाथाओं से भरे पड़े हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी में क्षत्रियों की अनदेखी कैसे की जा सकती है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी यह बात समझ चुके हैं। यही वजह है कि अब वह बरेली जिले में आगामी विधानसभा चुनाव में क्षत्रियों को भी प्रतिनिधित्व देने को तैयार हैं। ऐसे में कैंट विधानसभा सीट से सपा के टिकट के प्रबल दावेदार अनुराग सिंह नीटू का रास्ता साफ नजर आ रहा है। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि कैंट विधानसभा सीट पर लगातार हार के कारण अखिलेश यादव इस सीट पर तुष्टिकरण की राजनीति अपनाते हुए नया प्रयोग करने के लिए भी तैयार हैं। वहीं, दूसरी वजह यह है कि हिन्दू विरोधी छवि को खत्म करने के लिए वह ज्यादा से ज्यादा हिन्दू प्रत्याशी उतारने की तैयारी में हैं।
समाजवाद का गणित तभी फिट बैठेगा जबकि समाज के हर वर्ग को स्थान और बनता सम्मान दिया जाए। पार्टी मुख्यालय के पदाधिकारी बताते हैं कि अखिलेश यादव बरेली जिले की नौ विधानसभा सीटों में से एक सीट पर क्षत्रिय प्रत्याशी उतारने को तैयार हैं। हालांकि पूर्व सांसद सर्वराज सिंह के बाद कोई भी क्षत्रियों का दमदार नेता यहां नहीं था लेकिन अनुराग सिंह नीटू की सपा में एंट्री होते ही यह कमी भी दूर हो गई। सूत्र बताते हैं कि अनुराग सिंह नीटू को पार्टी में शामिल करने का उद्देश्य ही क्षत्रियों को साधना था। चूंकि पार्टी में जिले का ऐसा कोई भी दूसरा क्षत्रिय नेता सपा के पास नहीं था जो जिले में क्षत्रियों के समीकरण को साध सके इसलिए क्षत्रिय महासभा के वरिष्ठ पदाधिकारी अनुराग सिंह नीटू को साधा गया। उनकी ज्वाइनिंग ही इसी उद्देश्य से कराई गई है कि उन्हें किसी न किसी सीट चुनाव लड़ाकर सपा की सवर्ण विरोधी छवि को भी खत्म किया जा सके। यही वजह है कि नीटू ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन करते ही इतनी तेजी से प्रचार प्रसार शुरू कर दिया कि आज सिर्फ कैंट विधानसभा सीट ही नहीं बल्कि पूरे महानगर में सिर्फ नीटू के नाम की ही चर्चा हो रही है। रिक्शा वालों, ऑटो वालों और सब्जी वालों से लेकर बड़े-बड़े उद्योगपतियों तक की नजरें नीटू की दावेदारी पर टिकी हुई हैं। बहरहाल, टिकट वितरण का ऐलान होने में अब ज्यादा समय नहीं रह गया है। अखिलेश यादव की हरी झंडी के बाद क्षत्रिय समाज के लोगों में उत्साह का माहौल है और नीटू का रास्ता लगभग साफ नजर आ रहा है। हालांकि, इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं भी उतनी ही प्रबल हैं जितनी कि क्षत्रिय को उतारने की हैं। क्योंकि जिला मुख्यालय होने के नाते एक सीट मुस्लिम को देना पार्टी की मजबूरी भी है अन्यथा मुस्लिम वोट बैंक खिसक भी सकता है।
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