एसके कपूर “श्रीहंस”
घंटो जहरीली गैस निकालते, धूम धड़ाके वाले पटाखे ,जो पर्यावरण ,आँखों,साँस,स्वस्थ्य को नुकसान भी पहुंचाते हैं और वायु मंडल में ऑक्सीजन की कमी पैदा करते हैं और चकाचौंध करती नकली और चीनी लाइट्स,महंगे कपडे,मिठाई जो मिलावटी भी हो सकती है,कार्ड्स,मंहगी मोमबत्तियों का प्रयोग ,सोने के सिक्के,सोने के बिस्कुट, सोने चांदी के लक्ष्मी गणेश,केवल यह ही दीपावाली नहीं है।यह हमारी पुरातन संस्कृतिपूर्ण दीपावली का ,कुछ विकृत व आधुनिक बाज़ारी संस्करण है।
वास्तव में दीपावली हमारे ,पुरातन संस्कारों से जुड़ा, दीपपर्व है। इसको मनाने में भारतीयता की सोंधी महक आना बहुत जरुरी है।
ठीक है,आधुनिकता और समय के साथ कुछ सजावट,रंग रोगन,साज सज्जा आदि सब ठीक है,पर साथ ही घर में बने मिठाई और पकवान,नये लक्ष्मी गणेश की विधिवत स्थापना( विशेष रूप से मिट्टी से निर्मित) व पूजन व आरती, माँ लक्ष्मी का आवाह्न,कुबेर यंत्र,मिट्टीऔर तेल के दीये,यम दीया,तुलसी पर दीया,जल के पास दीया,कूड़े के स्थान पर दीया, घर द्वार आंगन के पास रंगोली( विशेष रूप से घर की रसोई व फुलवारी से सामान से निर्मित), पड़ोस में जाकर व्यक्तिगत रूप से, दीपावली की शुभकामनायें,बड़ों का चरणस्पर्श,पूजा की थाली,खीलें ,खिलोने, बताशे,सिक्का ,द्वार, आदि में रोली से ॐ,स्वस्तिक,शुभ लाभ,लक्ष्मी पद चिन्ह,द्वार पर आधुनिक वंदनवार के साथ ही
पारंपरिक फूलों व पत्तों जैसे आम अशोक ,गेंदे के पत्तों।फूलों की वंदनवार , छप्पन भोग ,धनतेरस पर बर्तन खरीद,पूजन के पश्चात तिलक ,कलावा,यह सब कुछ ऐसी बातें व क्रियायें व परम्परायें हैं,जो हमें अवश्य करनी, निभानी चाहिए और नई पीढी के सामने करनी चाहिए या उनसे ही करानी चाहिए।जिससे नई पीढ़ी को, दीपावली का केवल बाज़ारी रूप ही सामने न आए और इस महत्वपूर्ण दीपपर्व की महत्ता और विरासत और पैराणिक कथायों का भी महत्व ,उन्हें पता चले।अब ज्ञात हुआ है ,कि इस वर्ष गाय के गोबर के दीये भी उपलब्ध हैं। दीपावाली, धनतेरस,छोटी दीपावली(नरक चतुर्दशी), बड़ी दीपावली,अन्नकूट यानि गोवर्धन पूजा,भैयादूज यानि यमद्वितीया, इन पांच पर्वों का मिश्रित रूप है ,अतः खाने पीने के खर्चे ,आने जाने ,लेने देने, में बहुत समझदारी और व्यवहारिक रूप से व्यय करें, कि पर्व की सुंदरता भी बनी रहे और आपका आय व्यय का गणित भी नहीं गड़बड़ाए।
नई पीढ़ी को भी बताएं ,कि इस दीप पर्व में खील ,बताशे ,मीठे खिलौने,धनतेरस पर शगुन के लिए बर्तन खरीदने का ,नरक चतुर्दशी पर नई झाडू का ,अपना एक महत्त्व होता है।केवल सोना , चांदी,चकाचौंध वाले सामान,रात भर जुआ खेलना आदि ही दीवाली नहीं है।
दीपावली में मिलकर घर की सफाई करें,पुराने सामान,कपड़ों को गरीबों को दान करें या अनाथालय आदि में जरूरत के हिसाब से दें।पुराने पूजा अर्चना सामान का जल प्रवाह,आपके द्वारा मिलकर की गई सफाई से ,जो घर में चमक और रौनक आएगी, वो हज़ारों लाखों से खर्च करने की, रोशनी से कँही अधिक चमकदार होगी।
अंत में केवल यही बात कहनी है, कि दीवाली को दिखावा पर्व नहीं दीपपर्व के रूप में मनाएं ,जिसमें संस्कार संस्कृति, भारतीयता का प्रतिबिंब स्पष्ट अवलोकित हो।हाँ, और आजकल इस कॅरोना संकट में सामाजिक दूरी और अन्य सावधानियों का भी विशेष ध्यान रखें क्योंकि आपकी व दूसरे की सुरक्षा सर्वोपरि है।साथ ही अब चीनी सामान का प्रयोग बिलकुल समाप्त करके राष्ट्रभक्ति का परिचय भी देना है।तब यह सच्चा आलोक पर्व सिद्ध होगा।