जो मन खुश कर सके
हमेशा वो सकून लिखना।
जो गिरा दे दीवार भेदभाव
की वो कानून लिखना।।
मुरझाए न किसी चेहरे
की रोशनी और रौनक।
कलम से हमेशा ऐसा जज्बा
जोशो जनून लिखना।।
पहले इंसान बन कर फिर
तुम कलमकार बनना।
अपने से छोटे बड़ों दोनों
के लिए सरोकार बनना।।
लिखना ही काफी नहीं
शुरुआत आचरण से हो।
जो सिल सके हर रिश्ते टूटे
हुए तुम वो दस्तकार बनना।।
दृढ़ता, करुणा, ज्ञान, निर्णय
लिखना अपने लेखन में।
बुद्धि,विवेक,दूजों की समझ
दिखाना अपने लेखन में।।
अहंकार, प्रतिशोध, ईर्ष्या
आने न पाये शब्दावली में।
कदापि झूठ हाथों सच मत
बिकना अपने लेखन में।।
हर कदम मिटे बुराई कुछ
ऐसा व्याख्यान लिखना।
शब्द बने मशाल कुछ ऐसा
तुम फरमान लिखना।।
लफ़्ज़ों में तुम्हारे हो ताकत
तस्वीर बदलने की।
जो पूरे न कर पाया हरआदमी
तुम वह अरमान लिखना।।
–एस के कपूर “श्री हंस” बरेली