नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जल्दबाजी में कोई ऐसा फैसला नहीं लेना चाहती जिससे पार्टी का नुकसान हो। यही वजह है कि पार्टी का पूरा फोकस सही उम्मीदवार के चयन पर है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव यह अच्छी तरह जानते हैं कि एक गलत उम्मीदवार का चयन पार्टी की हार का सबब बन सकता है। इसलिए वह विभिन्न दलों से गठबंधन के बाद ही उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी करेंगे ताकि किसी भी प्रकार के मतभेद को उम्मीदवारों की घोषणा से पहले ही निपटाया जा सके और जिताउ उम्मीदवार को ही मैदान में उतारा जाए। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि सपा के उम्मीदवारों की पहली सूची सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन यानि 22 नवंबर के बाद ही जारी की जाएगी। संभव है कि इस सूची में बरेली जिले की उन सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा भी की जा सकती है जिन पर किसी प्रकार का कोई बड़ा विवाद नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट से सपा उम्मीदवार की घोषणा भी पहली सूची में की जा सकती है। यहां मुख्यत: तीन नामों पर सबसे ज्यादा जोर है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी यहां से मुस्लिम उम्मीदवार पर दांव खेलना चाहती है क्योंकि मंडल मुख्यालय होने के नाते शहर और कैंट में से एक सीट मुस्लिमों को देकर मुस्लिम समाज को आसानी से संतुष्ट किया जा सकता है। इसकी एक वजह यह भी है कि अखिलेश यादव के अचानक जागे हिन्दू प्रेम की वजह से मुस्लिम समाज बिखरता नजर आ रहा है। चूंकि शहर विधानसभा सीट हमेशा से भाजपा का गढ़ रही है इसलिए भी कैंट सीट से मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की कवायद जोर पकड़ रही है।

अगर सपा यहां से मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारती है तो इं. अनीस अहमद खां से बेहतर प्रत्याशी फिलहाल समाजवादी पार्टी के पास कोई दूसरा नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इंजीनियर अनीस अहमद खां के साथ बड़ी तादाद में दलित वोट बैंक भी है। वर्ष 2012 के चुनाव में अनीस अहमद ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जो 24453 वोट हासिल किए थे वे मुस्लिम और दलित वोट ही थे। ऐसे में अगर पार्टी इस बार इंजीनियर अनीस अहमद पर दांव खेलती है तो जीत की राह आसान हो सकती है।

वहीं, अगर सपा कैंट सीट से हिन्दू दावेदार को प्राथमिकता देती है तो पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अनुराग सिंह नीटू का नाम सबसे पहले आता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि नीटू के साथ भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक जुड़ा हुआ है जो नीटू को टिकट दिलवाने के लिए भी पूरा जोर लगा रहा है। इसमें वह व्यापारी वर्ग भी शामिल है जो भाजपा का स्थायी वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा कैंट सीट के कुछ भाजपा पार्षद भी नीटू के साथ अंदरखाने पूरे जोर शोर से लगे हुए हैं। नीटू को पार्टी में शामिल कराने से लेकर उनके पक्ष में माहौल बनाने तक इन भाजपा नेताओं की भी अहम भूमिका रही है। एकमात्र दमदार क्षत्रिय होने के कारण पूरा क्षत्रिय समाज नीटू के साथ है। चूंकि इस सीट पर भाजपा में भी क्षत्रिय हमेशा उपेक्षित रहा है इसलिए नीटू के सहारे क्षत्रिय वोट बैंक में सेंध लगाई जा सकती है।

तीसरा नाम डा. पवन सक्सेना का है। पत्रकारिता से व्यापारी राजनीति में कदम रखने वाले डा. पवन सक्सेना अब मुख्य धारा की राजनीति में पदार्पण कर चुके हैं। व्यापारी राजनीति में सक्रिय होने के चलते भाजपा के स्थायी वोट बैंक माने जाने वाले व्यापारी वर्ग पर पवन सक्सेना की पकड़ अन्य सभी दावेदारों से मजबूत है। भाजपा को शिकस्त देने के लिए व्यापारी वोट बैंक को तोड़ना बेहद जरूरी है। कायस्थ होने के नाते पवन सक्सेना के साथ उनके अपने समाज का भी वोट है। ऐसे में पवन सक्सेना भी सपा को जीत दिलाने में सक्षम नजर आते हैं।
बहरहाल, समाजवादी पार्टी इस सीट पर हिन्दू-मुस्लिम के बीच अटकी हुई है। सर्वे रिपोर्ट पहुंच चुकी है। अंतिम मंथन शुरू होने वाला है। इन तीन प्रमुख दावेदारों की किस्मत का फैसला मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के बाद आने वाली सपा उम्मीदवारों की पहली सूची में होने की प्रबल संभावना है।