नीरज सिसौदिया, पीलीभीत
विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की टिकटिक तेज हो चुकी है। पीलीभीत में भी मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में ही है। लगभग ढाई दशक तक पीलीभीत सदर विधानसभा सीट पर काबिज रहे समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व विधायक हाजी रियाज अहमद और उनकी बेटी रुकैया आरिफ की कोरोना से मौत के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाला परिवार में कोई कद्दावर नेता नहीं बचा। उनके सुपुत्र शाने अली और दामाद मोहम्मद आरिफ में विरासत की जंग छिड़ी हुई है लेकिन दोनों में से कोई भी उनकी विरासत संभालने में सक्षम नजर नहीं आ रहा। शाने अली की राजनीतिक उपलब्धियां शून्य हैं। हाजी रियाज अहमद ने अपने बेटे शाने अली का मुख्यमंत्री कोटे से वर्ष 2012 में लखनउ के इरा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाखिला कराया था लेकिन नौ साल बाद भी शाने अली एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके।
इस परिवार से हटकर बात करें तो सिर्फ एक चेहरा ऐसा है जो साइकिल की रफ्तार बढ़ाने में सक्षम नजर आता है। वह चेहरा आजम मीर खां का है। आजम मीर खां एक डॉक्टर भी हैं और पिछले लगभग 35 वर्षों से पीलीभीत जिले में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाने जाते हैं। विवादों से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा। उनकी गिनती जिले के साफ सुथरी छवि वाले नेताओं में होती है। वर्ष 2012 में उन्होंने उस पीस पार्टी के टिकट पर हाजी रियाज अहमद के खिलाफ चुनाव लड़ा था जिसका पीलीभीत में कोई वजूद ही नहीं था। लेकिन अपने सेवा कार्यों और साफ सुथरी छवि के दम पर आजम मीर खां लगभग 31 हजार से भी अधिक वोट हासिल करने में कामयाब रहे। आजम मीर खां ने हाजी रियाज अहमद के निधन के बाद सपा का दामन थाम लिया है। ऐसे में उन्हें हाजी रियाज अहमद के विकल्प के रूप में जनता देख रही है। हालांकि इस सीट से कई और दावेदार भी मैदान में हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में अपने दम पर 31 हजार वोट हासिल करने वाला कोई नहीं है। बहरहाल, टिकट का फैसला मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन 22 नवंबर के बाद ही होगा। अब देखना यह है कि पार्टी इस सीट पर किस चेहरे पर दांव खेलती है। फिलहाल मुख्य मुकाबला हाजी रियाज अहमद के बेटे शाने अली और आजम मीर खां के बीच ही नजर आ रहा है।
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