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कोरोना काल से लेकर बाढ़ के प्रकोप तक नसीम अहमद बने बेबसों के हमदर्द

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नीरज सिसौदिया, बरेली
सच्चेल दोस्ते की पहचान मुश्किल घड़ी में होती है और असल नेता की पहचान कुदरत के कहर के वक्त होती है। विरले ही नेता होते हैं जो आपदा की घड़ी में अपनी जान जोखिम में डालकर बेबसों का दर्द बांटने निकल पड़ते हैं। ऐसे ही एक नेता हैं बरेली जिले की बहेड़ी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के प्रबल दावेदार और पूर्व प्रत्याशी नसीम अहमद। कोरोना काल में जब सारे नेता अपने घरों में दुबके हुए थे तो नसीम अहमद बहेड़ी के गांवों की पगडंडियां नाप रहे थे। वह गांव-गांव, गली-गली जाकर लोगों को जरूरी दवाएं और खाद्य सामग्री बांट रहे थे। उस वक्त न तो विधायक छत्रपाल गंगवार ने बेबसों की मदद की, न ही पूर्व मंत्री अता उर रहमान गरीबों के साथ खड़े नजर आए और न ही कोई अन्य नेता।
नसीम अहमद लगातार जनता की सेवा करते आ रहे हैं। उन्होंने दोनों कोरोना काल के वक्तह तो लोगों की मदद की ही। बेबस गरीब महिलाओं को आत्मऔनिर्भर बनाने के लिए उन्हें सिलाई मशीनें देने का अपना वादा भी पूरा किया।

बाढ़ पीड़ित लोगों को भोजन और राशन के पैकेट बांटते नसीम अहमद।

एक और वक्तआ आया जब जनता को अपने नेता की जरूरत थी। वह वक्त था बाढ़ का। हाल ही में जब उत्त राखंड के पहाड़ों पर घनघोर बारिश हुई तो वहां की नदियों का पानी बहेड़ी के कई गांवों में तबाही लेकर आया। कई लोगों के आशियाने जमींदोज हो गए तो कई लोगों की फसलें चौपट हो गईं। कुछ परिवार तो ऐसे थे जिनके घर में रखा राशन तक बाढ़ का पानी बहा ले गया। उनके घरों में अन्नं का एक दाना तक नहीं बचा था। इस बार भी कोई नेता इन बेबसों की मदद को नहीं पहुंचा। सिर्फ नसीम अहमद ही ऐसे नेता थे जो राशन के साथ पका हुआ भोजन लेकर भी गांव-गांव बाढ़ के पानी के बावजूद पहुंचे और लोगों की मदद की।

बाढ़ग्रस्त गांवों में पीड़ित ग्रामीणों से बात करते नसीम अहमद

अपनी इसी छवि के चलते आज बहेड़ी विधानसभा में नसीम अहमद अपनी एक विशेष पहचान बना चुके हैं। अगर समाजवादी पार्टी उन्हें मैदान में उतारती है तो निश्चित तौर पर बहेड़ी की सीट पर नसीम अहमद विजयी हो सकते हैं। फिलहाल कोई अन्यप दावेदार उनके मुकाबले नहीं ठहरता, फिर चाहे वह पूर्व मंत्री हो या कोई और।

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