नीरज सिसौदिया, बरेली
रीति काल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में शुमार बिहारी की प्रमुख रचना बिहारी सतसई है। बिहारी सतसई में कुल 713 दोहे हैं। इन दोहों के लिए किसी ने कहा है कि
सतसइया के दोहरा ज्यों नावक के तीर
देखन में छोटे लगत, घाव करैं गंभीर
नावक प्राचीन काल में उस तीर निर्माता को कहा जाता था जिसके तीर देखने में तो बहुत छोटे होते थे लेकिन इतने तीखे होते थे कि किसी के भी प्राण एक पल में निकाल देते थे। कुछ ऐसे ही सियासी तीर का नाम है विनोद जोशी।
पर्वतीय समाज से ताल्लुक रखने वाले विनोद जोशी बरेली में ही जन्मे और यहीं पले-बढ़े। अपने जोश और जुनून के चलते बरेली कॉलेज की छात्र राजनीति का हिस्सा बने और दो बार छात्र संघ में जगह भी बनाई। विनोद जोशी अब छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। छोटी उम्र में बड़े सपनों ने उन्हें कैंट विधानसभा सीट से टिकट की कतार में तो खड़ा कर दिया लेकिन भाजपाई दिग्गजों के बीच टिकट हासिल करना विनोद जोशी के लिए फिलहाल नामुमकिन सा प्रतीत होता है। विनोद जोशी को भी इसका अहसास है। यही वजह है कि उन्होंने खुले मंच से हर हाल में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसा करने वाले वह 2022 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के प्रदेश के संभवत: पहले दावेदार हैं। अब सवाल यह उठता है कि विनोद जोशी ने आखिर यह कदम क्यों उठाया? वह कौन सी ताकत है जिसने विनोद जोशी को आगे बढ़ने की हिम्मत दी?
दरअसल, विनोद जोशी सिर्फ अपने राजनीतिक भविष्य की ही लड़ाई नहीं लड़ रहे बल्कि एक समाज के लिए नई राह तलाशने का काम कर रहे हैं। वह उस पर्वतीय समाज की लड़ाई लड़ रहे हैं जो आज तक कभी भी प्रतिनिधित्व हासिल नहीं कर सका है। जब विनोद जोशी पहली बार छात्र संघ के चुनावी मैदान में उतरे थे तो भी यह कहकर उनकी दावेदारी को नजरअंदाज किया जा रहा था कि पर्वतीय समाज का क्लीन शेव लड़के के बस की छात्र राजनीति नहीं है। लेकिन विनोद जोशी ने उस दौर में भी खुद को साबित किया और एक नहीं बल्कि दो बार छात्र संघ में जगह बनाई।
विनोद जोशी भले ही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव जीतने में सफल न हो पाएं मगर उनकी मौजूदगी भाजपा का खेल जरूर बिगाड़ सकती है। इसकी कई वजहें भी हैं।

पहली वजह यह कि भाजपा हिन्दुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ती रही है और इस बार भी उसी पैटर्न पर काम कर रही है। कैंट विधानसभा सीट पर लगभग सात से दस फीसदी वोट पर्वतीय समाज का बताया जाता है जिसमें ज्यादातर ब्राह्मण बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। बरेली में रहने वाला संपूर्ण पर्वतीय समाज हिन्दू है और भाजपा को वोट करता रहा है। ऐसे में अगर विनोद जोशी निर्दलीय मैदान में उतरते हैं तो बड़ी तादाद में हिन्दू वोट काटने में सफल हो सकते हैं। इसके अलावा छात्र प्रतिनिधि होने के साथ ही वह एक कोचिंग के संचालक भी हैं। यही वजह है कि पर्वतीय समाज से इतर बड़ी तादाद में युवा वर्ग भी विनोद जोशी के साथ है। अगर विनोद जोशी मैदान में उतरते हैं तो यह युवा भी काफी हद तक विनोद जोशी से दोस्ती निभाता नजर आ सकता है। ऐसे में विनोद जोशी जितना हिन्दू वोट काटेंगे उतना ही लाभ सपा को होगा क्योंकि सपा हिन्दू वोट तो हासिल कर सकती है लेकिन भाजपा इस चुनाव में मुस्लिम वोट किसी भी कीमत पर हासिल नहीं कर सकती। ऐसे में विनोद जोशी भाजपा की मुसीबत का सबब बन सकते हैं।
विनोद जोशी यह चुनाव अस्तित्व बचाने और राजनीतिक भविष्य बनाने के लिए लड़ रहे हैं। अगर वह अपने समाज के साथ ही युवा साथियों का वोट भी हासिल कर लेते हैं तो उनके सियासी सफर को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
बहरहाल, विनोद जोशी भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाते नजर आ रहे हैं।