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आचार संहिता ने बढ़ाईं सियासी मेढकों की मुश्किलें, अब काम को मिलेगा ईनाम, शहर सीट से टॉप पर है कलीमुद्दीन का नाम, जानिये क्यों?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
निर्वाचन आयोग की ओर से जारी आदर्श चुनाव आचार संहिता के सख्त नियमों ने चुनावी बरसात में टरटराने वाले सियासी मेढकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बात अगर 124 बरेली शहर विधानसभा सीट की करें तो यहां पर चुनावी बरसात में शोर मचाने वाले सियासी मेढकों की संख्या अच्छी -खासी है। ऐसे सियासी मेढक समाजवादी पार्टी में शहर सीट पर ज्यादा हैं। ये टिकट के ऐसे दावेदार हैं जो पांच साल तक तो चैन की बंसी बजाते रहे लेकिन चुनाव नजदीक आते ही होर्डिंग, बैनर और पोस्टर लगाकर खुद को सबसे बेहतर नेता साबित करने में जुट गए। जमीनी स्तर पर ये लोग आम आदमी तक पहुंच बनाने में नाकाम रहे। वहीं कुछ नेता तो ऐसे रहे कि वह प्रचार के लिए टिकट मिलने का इंतजार करते रहे। अब जबकि चुनाव आयोग ने सख्त नियमावली बना डाली है तो इन नेताओं की धड़कनें बढ़ गई हैं। चूंकि इस बार कोई भी नेता रैलियां तो दूर जनसंपर्क में भी पांच लोगों से ज्यादा को नहीं ले जा सकेगा और पूरा चुनाव सोशल मीडिया के माध्यम से ही लड़ा जाएगा इसलिये वही नेता कामयाब हो पाएगा जो चुनावी मौसम में ही नहीं बल्कि महीनों पहले से ही तैयारी में जुटा हो। शहर विधानसभा सीट पर फिलहाल ऐसे दो ही चेहरे नजर आ रहे हैं। पहला चेहरा युवा नेता मोहम्मद कलीमुद्दीन का है जो पिछले लगभग दो साल से भी अधिक समय से शहर विधानसभा सीट से चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं। दोनों कोरोना काल में उनकी उपलब्धियां सर्वविदित हैं। खुद कोरोना पॉजिटिव होने के बाद भी दोबारा जनता की सेवा करने वाले कलीमुद्दीन विभिन्न जाति वर्गों के लोगों के सम्मेलन कराने में भी सबसे आगे रहे हैं। भाजपा के किले में सेंधमारी करने में कामयाबी हासिल करने वाले कलीमुद्दीन एकमात्र दावेदार हैं। कलीमुद्दीन का प्लस प्वाइंट यह भी है कि वह युवाओं के बीच के नेता हैं और सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा एक्टिव टीम उनके अलावा किसी भी दावेदार के पास फिलहाल मौजूद नहीं है। चूंकि सपा की लड़ाई भाजपा से है और भाजपा का आईटी सेल सपा के आईटी सेल से कहीं ज्यादा एक्टिव है इसलिए चुनावी मैदान में वही नेता भाजपा को पटखनी दे सकता है जिसके पास सोशल मीडिया की मजबूत टीम होगी। ऐसे में मोहम्मद कलीमुद्दीन की दावेदारी सबसे मजबूत नजर आती है। कलीमुद्दीन बड़ी तादाद में बुद्धिजीवी वर्ग को सपा में शामिल कराने में भी कामयाब रहे हैं।
वहीं जमीनी स्तर पर काम करने वालों में हिन्दुओं में सबसे मजबूत दावेदार नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष राजेश अग्रवाल हैं। राजेश अग्रवाल भी ऐसी शख्सियत हैं जो चुनावी मौसम में शोर मचाने वाले सियासी मेढकों से अलग वजूद रखते हैं। अगर पार्टी इस सीट से हिन्दू चेहरा मैदान में उतारती है तो उनकी दावेदारी सबसे मजबूत होगी।
बहरहाल, टिकट की घोषणा 14 जनवरी तक होने की संभावना जताई जा रही है। इसके बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी। हालांकि पार्टी अगर उक्त दावेदारों में से किसी को भी चुनावी मैदान में नहीं उतारती है तो पार्टी को इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है क्योंकि अन्य दावेदारों को जनता को अपनी पहचान बताने में ही इतना समय लग जाएगा कि चुनाव प्रचार के लिए समय तक नहीं बचेगा। इसलिए पार्टी भी उसी दावेदार पर दांव लगाने की तैयारी कर रही है जो लंबे समय से जनता के बीच काम कर रहा है। अगर पार्टी ऐसे लोगों को टिकट देती है तो कार्यकर्ताओं के बीच भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा कि पार्टी में काम करने वालों की अहमियत है वरना काम करने वाले निराश होंगे।

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