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कैंट विधानसभा सीट : सपा कनफ्यूज, कांग्रेस “फ्यूज”, एकतरफा जीत की ओर बढ़ रहे संजीव अग्रवाल के कदम, जानिये क्या है वजह?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली कैंट विधानसभा सीट पर जन्मे वर्तमान हालात एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी की वापसी के संकेत दे रहे हैं। यहां समाजवादी पार्टी उम्मीदवार को लेकर कनफ्यूज नजर आ रही है तो वहीं कांग्रेस बेदम दिखाई दे रही है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवार संजीव अग्रवाल एकतरफा जीत की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं।
दरअसल, समाजवादी पार्टी अब तक यह निर्णय नहीं ले सकी है कि इस सीट से वह मुस्लिम प्रत्याशी उतारेगी या फिर किसी हिन्दू को मैदान में उतारा जाएगा। हालांकि संभावना जताई जा रही है कि आज दोपहर बाद तक समाजवादी पार्टी बरेली के प्रत्याशियों की घोषणा कर देगी लेकिन उसमें कैंट सीट शामिल होगी या नहीं इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी संजीव अग्रवाल पूरे जोर-शोर से प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं। सपा से फिलहाल उनका मुकाबला ही नहीं माना जा रहा है।
वहीं, कांग्रेस ने पूर्व मेयर सुप्रिया ऐरन को मैदान में उतारा है। सुप्रिया ऐरन वीवीआईपी नेताओं की लिस्ट में शामिल हैं। इसलिए चुनिंदा लोगों को छोड़ दें तो उनकी अपनी ही पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष सहित कई नेता अंदरखाने उन्हें हराने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। एक दौर था जब प्रवीण सिंह ऐरन सांसद थे और सुप्रिया ऐरन मेयर थीं लेकिन पुराना शहर, सुभाष नगर और मढ़ीनाथ जैसे इलाकों की मूलभूत समस्याओं का स्थाई समाधान दोनों में से कोई नहीं करा सका। यह तो बानगी भर है। आम जनता से ऐरन परिवार की दूरी उनकी मुश्किलें बढ़ाती नजर आ रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब पति सांसद और पत्नी मेयर थीं। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, उस वक्त ऐरन परिवार शहरवासियों का भला नहीं कर सका तो अब क्या करेगा? बता दें कि प्रवीण सिंह ऐरन भी एक जमाने में कैंट सीट से विधायक रह चुके हैं।
सुप्रिया ऐरन के प्रति जनता की नाराजगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब मेयर रहते हुए सुप्रिया ऐरन ने वर्ष 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा था तो जीतना तो दूर वह टॉप थ्री में भी जगह नहीं बना सकी थीं। उस वक्त बसपा से टिकट कटने के बाद आईएमसी के समर्थन से मैदान में उतरे इंजीनियर अनीस अहमद खां 24353 वोट हासिल करके तीसरे स्थान पर रहे थे। सुप्रिया ऐरन महज 16 हजार वोटों पर ही सिमट गई थीं। इस बार आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया है। ऐसे में सपा अगर इस सीट से मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती है तो इस सीट पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा निश्चित है जो कि फिलहाल सपा का स्थाई वोट बैंक माना जा रहा है। मुस्लिम वोटों का जितना बंटवारा होगा उतना ही लाभ भारतीय जनता पार्टी को होगा। ऐसे में कैंट सीट पर संजीव अग्रवाल बढ़त बनाते नजर आ रहे हैं।
बहरहाल, विधानसभा चुनाव में अभी वक्त है। इस बीच कई उतार चढ़ाव आने बाकी हैं। सपा का उम्मीदवार मैदान में आने के बाद कई समीकरण बदलेंगे लेकिन अगर संजीव अग्रवाल इसी रफ्तार से काम करते रहे तो इस सीट पर भाजपा के विजय रथ को रोकना आसान नहीं होगा।

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