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एमएलसी चुनाव : क्या उम्मीदवारी में बदल पाएगी सतीश कातिब मम्मा की दावेदारी? क्या काम आएगा तीन दशक का राजनीतिक सफर?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
राजनीति की दुनिया में कदम रखने वाले हर शख्स का अरमान सियासत के आसमान को छूने का होता है लेकिन विरले ही होते हैं जिनका यह अरमान हकीकत की मंजिल तक पहुंच पाता है। कुछ लोकसभा पहुंचते हैं, कुछ विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ते हैं, कुछ राज्यसभा और विधान परिषद का फासला तय कर लेते हैं तो कुछ स्थानीय राजनीति तक ही सिमटकर रह जाते हैं। सियासत की इन मंजिलों तक पहुंचने के लिए काबिलियत के साथ ही गॉड फादर भी बेहद जरूरी होता है। ऐसे कई सियासतदान हैं जो अपनी बेबाकी और सेवाभाव के चलते जनता के दिलों में तो राज करते हैं मगर सियासत के सफर की मंजिल को हासिल नहीं कर पाते। बरेली के कई ऐसे सियासतदान हैं जिनका यह सफर गॉड फादर के अभाव में मंजिल का फासला तय नहीं कर सके। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज भी उसी शिद्दत से मंजिल का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा ही एक नाम है भाजपा पार्षद सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा का। मम्मा ने अपनी जिंदगी का लगभग साढ़े तीन दशक से भी अधिक समय राजनीति और समाजसेवा को समर्पित कर दिया। वह नगर महापालिका के समय भी सभासद रहे और आज भी पार्षद हैं। वह बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य भी हैं। साथी राजनेता बताते हैं कि मम्मा जमीन से जुड़े नेता हैं और वह अब तक विधायक भी बन चुके होते अगर पार्टी ने उन्हें मौका दिया होता। व्यापारी संगठनों से लेकर समाजसेवी संगठनों तक शायद ही ऐसा कोई प्रतिष्ठित संगठन होगा जिसके पदाधिकारी के रूप में मम्मा ने सेवाएं न दी हों। मम्मा और उनकी पत्नी पूरे राजनीतिक जीवन में कभी भी नगर निगम का कोई भी चुनाव नहीं हारे। भाजपा के सबसे वरिष्ठ पार्षदों में शुमार सतीश कातिब मम्मा ने अब बरेली – रामपुर स्थानीय निकाय एमएलसी चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी की है। उनकी दावेदारी कई मायनों में अहम मानी जा रही है। अगर भाजपा उन्हें एमएलसी टिकट देती है तो यह बरेली के लिए एक नया इतिहास बन जाएगा क्योंकि आज तक बरेली का कोई भी पार्षद कभी भी भाजपा से एमएलसी का चुनाव नहीं लड़ सका है। संगठन के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश भी जाएगा कि देर से ही सही मगर पार्टी में एक आम समर्पित कार्यकर्ता को भी ऊंचा मुकाम हासिल हो सकता है। मम्मा पिछले लगभग दो साल से एमएलसी चुनाव को लेकर तैयारियां कर रहे हैं। बरेली और रामपुर जिले का शायद ही ऐसा कोई जन प्रतिनिधि होगा जिसके दरवाजे पर मम्मा ने दस्तक न दी हो। फिर चाहे वह विरोधी दलों के जन प्रतिनिधि ही क्यों न हो। ग्राम प्रधान से लेकर सांसदों तक मम्मा अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। यह मम्मा का व्यक्तित्व ही है कि वह विरोधी दलों के नेताओं के भी प्रिय हैं। इसका सबूत विरोधी दलों के लगभग दो सौ से भी अधिक निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के समर्थन पत्र हैं जिसमें उन्होंने मम्मा को लिखित रूप में समर्थन देने पर सहमति जताई है। यह जानते हुए भी कि अगर यह पत्र उन जनप्रतिनिधियों की पार्टी के आला नेताओं के हाथ लग गया तो पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में उन जनप्रतिनिधियों को पार्टी से निष्कासित तक किया जा सकता है। फिर भी उन्होंने मम्मा को एमएलसी चुनाव के लिए अपना समर्थन देने का ऐलान कर दिया है।
मम्मा के साथ जन प्रतिनिधियों की एक सहानुभूति भी देखने को मिल रही है। खास तौर पर उनकी जो लोग मम्मा के राजनीतिक सफर और उनकी कार्यशैली के बारे में जानते हैं। वे मम्मा को एमएलसी के टिकट का हकदार मानते हैं। उनका कहना है कि मम्मा ने अपनी पूरी जिंदगी राजनीति को समर्पित कर दी है। उनके जैसे कर्मठ और जनता के बीच के नेता को अगर एमएलसी का टिकट मिलता है तो यह भाजपा के इतिहास में सुनहरे अध्याय के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा। क्योंकि आम जनता उनमें अपना अक्स देखती है। वह चाहती है कि उन्हें वीवीआईपी नहीं उनके बीच का एमएलसी मिले। मम्मा को भी उम्मीद है कि उनके इस राजनीतिक सफर को इस बार मंजिल जरूर मिलेगी। बहरहाल, एमएलसी का टिकट किसे मिलेगा इसका फैसला तो विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही होगा लेकिन सतीश कातिब मम्मा के चाहने वाले इस बार अपने बीच के नेता को विधान परिषद की सीढ़ियां चढ़ते देखने का इंतजार कर रहे हैं।
अब देखना यह है कि क्या मम्मा का लगभग साढ़े तीन दशक का राजनीतिक अनुभव उन्हें विधान परिषद का टिकट दिला पाएगा? क्या मम्मा की दावेदारी उम्मीदवारी में बदल पाएगी?

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