चार दिन की जिन्दगी फिर
अंधेरा पाख है।
फिर खत्म कहानी और
बचना धुंआ राख है।।
अच्छे कर्मों से ही यादों में
रहता है आदमी।
अच्छे बोल व्यवहार से ही
बनती उसकी साख है।।
कब किससे कैसे बोलना यह
जानना बहुत जरूरी है।
इस गुण कला कौशल को
मानना बहुत जरूरी है।।
शब्द तीर हैं कमान हैं देते हैं
घाव बहुत गहरा।
हर स्तिथी का सही सही
पहचानना बहुत जरूरी है।।
सहयोग साथ समर्पण दीजिए
बदले में यही पायेंगे।
जैसा बीज डालेंगें फल भी
वैसा उगा कर लायेंगे।।
सम्मान पाने को मान देना
उतना ही है जरूरी।
बस तेरे मीठे बोल ही सदा
संबको याद आयेंगे।
रचयिता – एसके कपूर “श्री हंस” बरेली