पंजाब

परशुराम नगर और सुंदर नगर की अवैध कॉलोनियां निगम ने नहीं की पास, फिर भी बेचे जा रहे प्लॉट, पढ़ें निगम के बिल्डिंग ब्रांच के भ्रष्टाचार का एक और कारनामा

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
मुख्यमंत्री भगवंत मान एक ओर तो भ्रष्टाचारी मंत्री और पूर्व मंत्रियों पर लगातार शिकंजा कसते जा रहे हैं लेकिन उनके अपने विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है। खास तौर पर जालंधर नगर निगम के बिल्डिंग ब्रांच के अधिकारी खुलेआम भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लेकिन उन पर कार्रवाई करने वाला कोई नहीं है। कार्रवाई हो भी कैसे, जब नीचे से लेकर आला अधिकारी तक भ्रष्टाचार में लिप्त हों। इसका ताजा उदाहरण परशुराम नगर, रेरू पिंड और सुंदर नगर एक्सटेंशन में दरगाह वाली जगह के पास काटी गई अवैध कॉलोनियों के रूप में देखा जा सकता है। यहां पर काटी गई अवैध कॉलोनियों की फाइल लंबे समय से नगर निगम के दफ्तर की धूल फांक रही हैं लेकिन अधिकारियों ने न तो इन कॉलोनियों को पास किया है और न ही रिजेक्ट किया है। पास इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि पास करने के लिए जो मापदंड सरकार द्वारा निर्धारित किए गए हैं उन मापदंडों पर ये अवैध कॉलोनियां खरी नहीं उतरतीं। रिजेक्ट इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि जब भी इन कॉलोनियों के बारे में आला अधिकारियों या मंत्री या मुख्यमंत्री द्वारा पूछताछ की जाए तो उन्हें यह कहकर भ्रमित किया जा सके कि कॉलोनाइजर ने यह कॉलोनियां अप्लाई ‌की हुई हैं। इसी की आड़ में कॉलोनाइजर बेखौफ होकर इन अवैध कॉलोनियों में प्लॉटों का सौदा कर रहे हैं और बिल्डिंग ब्रांच के अधिकारी अपना हिस्सा लेकर खामोश बैठ गए हैं। इनमें से परशुराम नगर वाली कॉलोनी में तीन पार्टनर बताए जाते हैं। यह भी बताया जाता है कि इन कॉलोनियों में ‌प्लॉटों की एनओसी भी निगम अधिकारियों की मिलीभगत से गलत तरीके से जाली रजिस्ट्रियों के आधार पर ली जा रही हैं।

नगर निगम के अधिकारियों के भ्रष्टाचार के ऐसे कई नमूने हैं जिनकी जांच करने वाले अधिकारी भी पैसे लेकर जांच रिपोर्ट ही बदल देते हैं। बहरहाल, इन कॉलोनाइजरों को अवैध कॉलोनी काटने की खुली छूट आधिकारिक तौर पर दे दी जानी चाहिए जिससे इन अधिकारियों को दी जाने वाली रिश्वत का बोझ कॉलोनाइजरों पर नहीं पड़ेगा और जनता को कम दामों में प्लॉट उपलब्ध हो सकेंगे क्योंकि वर्तमान में ‌कॉलोनाइजर का जो लाखों रुपये निगम अधिकारियों को रिश्वत के तौर पर जाता है उसे प्लॉट खरीदने वाली जनता से ही वसूला जाता है। साथ ही प्लॉट खरीदने के बाद नक्शा पास कराने और भवन निर्माण कराने में भी निगम अधिकारियों को रिश्वत की मोटी रकम चुकानी पड़ती है। इस तरह एक आदमी का दो कमरों का मकान तैयार होने में ही 30 से 35 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। अगर रिश्वतखोरी बंद हो जाए तो आम आदमी का ‌यही मकान बीस लाख रुपये में ही बनकर तैयार हो सकता है। इसी तरह परशुराम नगर और सुंदर नगर की कॉलोनियों में भी खेल किया जा रहा है। यहां के कॉलोनाइजरों ने भी रिश्वत की मोटी रकम नगर निगम के अधिकारियों को चढ़ावे के रूप में दी है और मासूम जनता को वैध कॉलोनी बताकर प्लॉट बेचे जा रहे हैं। बताया जाता है कि यहां आधे से ज्यादा प्लॉटों का सौदा भी हो चुका है। कुछ और ग्राहकों को फंसाने का काम स्थानीय प्रॉपर्टी डीलरों को सौंपा गया है। जब तक सारे प्लॉट नहीं बिक जाएंगे तब तक नगर निगम में इनकी फाइल लटकाकर रखी जाएगी। जब प्लॉट बिक जाएंगे तो उनकी फाइल भी रिजेक्ट‌ कर दी जाएगी लेकिन तब तक वहां मकान बनने लगेंगे और स्थानीय लोगों को उजाड़ने और बचाने के नाम पर राजनीति शुरू हो जाएगी। नेता जी अपना हिस्सा लेकर चलते बनेंगे और अधिकारी तो पहले से ही अपना हिस्सा ले चुके हैं। बहरहाल, आम आदमी पार्टी की ‌सरकार में भी नगर निगम के अधिकारियों का भ्रष्टाचार उसी तरह फल फूल रहा है जिस तरह कांग्रेस राज में फल फूल रहा था।

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