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तालीम और तरबियत के पुरोधा जफर सरेशवाला

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तालीम और तरबियत मुस्लिम छात्रों के लिए फाइनेंशियल लिटरेसी की शिक्षा मुफ्त में मुहैया करवाती है

तालीम यदि आगे बढ़ने का रास्ता है तो तरबियत उस रास्ते की रोशनी है।

जफ़र सरेशवाला पहले नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी थे लेकिन नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद वो उनके प्रशंसक बन गए।

जफ़र सरेशवाला मुस्लिम कौम के हितों,अधिकारों और सियासी सूझ बूझ के लिए काम करते हैं।

महेश भट्ट, रजत शर्मा, सलीम खान जैसी फिल्मी हस्तियां और तमाम राजनैतिक हस्तियां जफ़र सरेशवाला की मुहिम “तालीम और तरबियत” में साथ हैं।

डॉ. राजेश शर्मा, बरेली

मुस्लिमों की नुमाइंदगी तो राजनीति सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में बहुत से लोग करते हैं लेकिन वह लोग मुस्लिमों के हित में कितना कुछ कर पाते हैं यह बात मुस्लिम कौम के आखिरी सिरे तक बैठे हुए इंसान को पता नहीं चल पाती। मुस्लिम बिरादरी का भविष्य किन हाथों में सुरक्षित है वह इसका भी अंदाजा नहीं लगा पाते। किसी भी कौम की तरक्की के लिए बहुत जरूरी है उस कौम को जागरूक करने की। मुस्लिम समाज में उनकी मौजूदा स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कुछ वर्षों से लगातार कोशिश कर रहे हैं जफर सरेशवाला।जफ़र सरेशवाला “तालीम और तरबियत” की मुहिम से इस दिशा में भी लगे हुए हैं। हाल ही में बरेली हवाई अड्डे पर डॉक्टर राजेश शर्मा के साथ उनकी खास मुलाकात हुई।

जफर सरेशवाला मौलाना आजाद नेशनल यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर भी रह चुके हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनको बेहतर अनुभव हैं। वैसे तो जफर सरेशवाला अपने खानदानी बिजनेस जो बैंकिंग से संबंधित है का बड़ा काम कर ही रहे थे।गुजरात में हुए बार-बार के दंगों में उनका दफ्तर, फैक्ट्री, घर, कारोबार सब स्वाहा हुआ तब जफर सरेशवाला को महसूस हुआ कि इस देश के हालात बहुत खराब है और देश में मुसलमानों के साथ दोयम व्यवहार हो रहा है। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मुखालफत करना शुरु की। लोगों के बीच जाकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ बहुत कुछ कहा।फिल्मकार महेश भट्ट से भी जफ़र सरेशवाला की मित्रता थी उनसे वो राय मशवरा लिया करते थे।जफर सरेशवाला जब इंग्लैंड में थे और अपने कारोबार में लगे हुए थे तभी उनको पता चला कि लालकृष्ण आडवाणी इंग्लैंड आ रहे हैं तो जफर सरेशवाला ने उनका विरोध किया और लंदन हाईकोर्ट में उनके खिलाफ पिटीशन भी दायर की।नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ लगातार विरोध का रुख रखने वाले जफर सरेशवाला ने यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर से लेकर अमेरिका के सिक्योरिटी ऑफ स्टेट कॉलिन पॉवेल तक से मिलकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की शिकायत की। उनके खिलाफ वैश्विक अभियान चलाया।ये सब जफ़र सरेशवाला अकेले अपने दम पर ही कर रहे थे। तब उनके मित्र महेश भट्ट ने उन्हें समझाया कि मोदी से मुलाकात करके ही मसले का हल तय करो। इसमें जफर की मदद रजत शर्मा ने की।रजत शर्मा ने जब इस बात को आगे बढ़ाया तो मुख्यमंत्री मोदी के भी सलाहकारों ने उन्हें जफर सरेशवाला से मिलने से मना किया। लेकिन नरेंद्र मोदी अपना मन बना चुके थे। इंग्लैंड में ही फिफ्थ फ्लोर पर जब जब जफर सरेशवाला की मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई तो नरेंद्र मोदी ने अपने अंदाज में उनके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा कि अरे तुम यह सब क्या कर रहे हो तुम तो मेरे अपने हो। नरेंद्र मोदी ने जफ़र सरेशवाला के गले में हाथ डाला और कहा यार चल। जब जफ़र ने बाद में बातचीत में मोदी से पूछा कि क्या हमारी कौम दोयम दर्जे की है जिस पर मोदी ने उन्हें बीस मिनट तक समझाया कि उनकी कौम और वह सब उनके हैं। वह सब के मुख्यमंत्री हैं। चाहे कोई उन्हें वोट दे या ना दे। महेश भट्ट ने जफर सरेशवाला को राय दी थी कि नरेंद्र मोदी की आंखों में आंखें डाल कर एक प्रश्न जरूर पूछना कि क्या न्याय के बिना शांति हो सकती है। जफर ने यह प्रश्न नरेंद्र मोदी से पूछा नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया बिल्कुल नहीं हो सकती है। नरेंद्र मोदी ने तब जफर से वादा किया कि इंसाफ भी होगा और यह कभी दोहराया नहीं जाएगा। इसमें आगे काम भी हुआ क्योंकि पहली बार फसाद में 425 हिंदू जेल गए और 90 हिंदुओं को सजा हुई।
यह ऐसे वाकये थे कि जफर सरेशवाला नरेंद्र मोदी के प्रशंसक बन गए।उसके बाद से जफर सरेशवाला मुस्लिम कौम की पैरवी नरेंद्र मोदी से करने लगे। तब से अब तक कई मुस्लिम महत्वपूर्ण मसलों को जफर सरेशवाला ने सरकार से हल करवाये।जफ़र सरेशवाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास माने जाते रहे हैं। इधर प्रधानमंत्री के पास और भी बहुत लोग मुस्लिमों के हितैषी एकत्र हो गए हैं और यह मुहिम अब कई लोगों के हाथ में है तो जफर सरेशवाला ने मुस्लिम कौम के भविष्य के लिए अपनी एक मुहिम शुरू की है “तालीम और तरबियत” इसके तहत जफर सरेशवाला तमाम ऐसे मसलों पर फोकस कर रहे हैं जिससे मुस्लिमों का सरकार में विश्वास बढ़े। जफर स्वयं कहते हैं कि मुस्लिमों की सत्तर प्रतिशत आबादी अपनी दशा और दिशा के लिए खुद जिम्मेदार है।2014 में यूपीएससी की परीक्षा में कुल ग्यारह लाख पैंतालीस हज़ार छात्र शामिल हुए लेकिन इसमें मुस्लिम समाज के मात्र चौदह से बीस हजार बच्चे ही थे जबकि देश में उस समय मुस्लिमों की आबादी बीस प्रतिशत थी। जफर सरेशवाला ने यह समझ लिया था की तालीम द्वारा ही मुस्लिमों की दिशा और दशा बदली जा सकती है। साठ से ज्यादा शहरों में वह इस तालीम की मुहिम को चला रहे हैं।2017 -18 के बाद परीक्षा में बैठने वाले मुस्लिमों की संख्या इस मुहिम से बड़ी है।उन्हें अब इसमें सुधार नजर आ रहा है और अपनी मुहिम की तरक्की भी।

सोशल मीडिया में भी मुस्लिमों के प्रति नफरत के लिए जफर सरेशवाला देश के गैर जिम्मेदार लोगों को दोषी मानते हैं। उनका मानना है कि हर कौम में एक फ़ीसदी लोग ऐसे होते हैं जो अमन और माहौल को खराब कर देना चाहते हैं। सोशल मीडिया से उनके कारनामों को हवा मिल जाती है।
मुसलमानों की राजनीतिक स्थिति को भी जफर सरेशवाला बड़ी गंभीरता से लेते हैं। उनका कहना है कि अब तो सभी दलों के लोग मुस्लिमों को टिकट देने में हिचकने लगे हैं लेकिन सभी दलों को मुस्लिमों का वोट चाहिए। तो यह सब दल मुस्लिमों को नहीं चाहते उनका हित और अधिकार नहीं चाहते बस उनका वोट चाहते हैं।


“तालीम और तरबियत”में जफर सरेशवाला देश के विभिन्न शहरों में अपनी कार्यशाला आयोजित कराते हैं। कार्यशाला के दौरान मुसलमानों में वित्तीय साक्षरता फैलाने का प्रयास किया जाता है। कार्यशाला में इस बी आई, यूनियन बैंक,एन एस ई और बी एस ई के विशेषज्ञ छात्रों को प्रशिक्षण देते हैं जो अपना स्टार्ट शुरू करने या पूंजी बाजार यानी शेयर बाजार में प्रवेश करने के इच्छुक हैं।इस मुहिम का नाम उन्होंने पहले एम्पोवेर्मेंट इन मेन स्ट्रीमिंग ऑफ मुस्लिम थ्रू एजुकेशन रखा था लेकिन अभिनेता सलमान खान के पिता सलीम खान की सलाह पर इसको अब तालीम और तबियत कहा जाता है। फाइनेंशियल लिटरेसी के बारे में मुस्लिमों को जागरूक करना, उनके अधिकार और हक उनको बताना,मुसलमानों को सियासी सूझबूझ के बारे में बताना इस मुहिम का उद्देश्य है। तालीम यदि आगे बढ़ने का रास्ता है तो तरबियत उस रास्ते को रोशन करती है।कीसी रास्ते पर चलते चलते आप थक जाते हैं तब रोशनी ही आपको रास्ता दिखाती है। तरबियत अपनी आरजू को परवान चढ़ाने का नाम है। इनकी इस कार्यशाला के लिए कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता। अब तक पचास हजार से ज्यादा छात्रों ने इस कार्यशाला में हिस्सा लिया है।
बरेली के पंडित राधेश्याम कथावाचक स्मृति समारोह में शामिल होकर भी जफर सरेशवाला ने यही कहा कि हमें मिलकर एकता की मिसाल कायम करनी होगी। हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही अपने धर्मों के बारे में जानने की बहुत जरूरत है।लेकिन किसी भी धर्म से पहले हम हिंदुस्तानी हैं।जफर सरेशवाला को राधेश्याम कथावाचक स्मृति समारोह में लाने के लिए कुलभूषण शर्मा ने बहुत प्रयास किए। कुलभूषण शर्मा एक लंबे अरसे से जफर सरेशवाला से जुड़े हुए हैं और उनकी इस मुहिम “तालीम और तरबियत” को भी पोषित कर रहे हैं।बरेली के लिए भी जफ़र सरेशवाला की मुहिम “तालीम और तरबियत” को मुहैया कराने के लिए कुलभूषण एक अरसे से प्रयास कर रहे हैं।

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