नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली/लखनऊ
दलित राजनीति की जमीन पर इन दिनों एक बड़ा बदलाव महसूस किया जा रहा है। आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, भीम आर्मी प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ पिछले कुछ दिनों से यौन शोषण के गंभीर आरोपों को लेकर विवादों में घिरे हुए हैं। चंद्रशेखर रावण पर लगे यौन शोषण के आरोप केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं, बल्कि दलित राजनीति की धुरी को हिलाने वाला घटनाक्रम है। इससे दलित नेतृत्व की दिशा बदल सकती है। इसी खाली स्थान को भरने के लिए जयप्रकाश भास्कर तेज़ी से उभरते विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं। उनकी साफ छवि, सामाजिक जुड़ाव और सक्रिय राजनीतिक उपस्थिति उन्हें इस दौर में सबसे सशक्त दावेदार बनाती है। आने वाले महीनों में उत्तर भारत की दलित राजनीति का नक्शा बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
यह विवाद न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उस राजनीतिक और सामाजिक आधार को भी हिला रहा है, जिसने उन्हें उत्तर भारत की दलित राजनीति में एक उभरते हुए और मजबूत चेहरे के तौर पर स्थापित किया था। हालात ऐसे बन रहे हैं कि यदि यह विवाद आगे और प्रभावशाली होता है तो दलित राजनीतिक समीकरणों में एक नए नेतृत्व के लिए राह पूरी तरह खुल सकती है।
दरअसल, चंद्रशेखर आजाद रावण ने दलित समाज के उस हिस्से को अपनी ओर आकर्षित किया था, जो मायावती से दूरी बना चुका था या जिन्हें लगता था कि बसपा अब वह धार नहीं रखती जो कभी कांशीराम के समय हुआ करती थी। यह वही वर्ग था जो दलित आत्मसम्मान, आक्रामक नेतृत्व और जमीनी संघर्ष की राजनीति को प्राथमिकता देता है। रावण ने भीम आर्मी के जरिए अपने नेतृत्व की एक उग्र और प्रतिरोधी छवि गढ़ी थी। यही वजह थी कि वह कम समय में उत्तर भारत में दलित युवाओं की एक आवाज बनकर उभरे। लेकिन यौन शोषण के आरोपों के बाद से उनकी यह छवि गहरी चोट खा चुकी है। यह एक ऐसा आरोप है जो सामाजिक रूप से सबसे संवेदनशील तबके के नेता की नैतिक प्रामाणिकता को सीधे चुनौती देता है। दलित राजनीति की ऊर्जा और भावनात्मक आधार बहुत हद तक नैतिकता, संघर्ष और शुचिता से निर्मित होती है। जयप्रकाश भास्कर में ये सभी गुण मौजूद हैं। ऐसे में इस विवाद ने उनके समर्थक समुदाय को असमंजस की स्थिति में ला दिया है। कई समर्थक इंतज़ार की मुद्रा में हैं, जबकि कुछ चुपचाप दूरी बनाना शुरू कर चुके हैं।
यह खाली जगह किसके पास जा सकती है?
राजनीति में कोई खाली स्थान अधिक समय तक खाली नहीं रहता। खासकर उस तबके की राजनीति में जहां नेतृत्व की आवश्यकता लगातार बनी रहती है। चंद्रशेखर रावण की छवि कमजोर होने का सबसे सीधा लाभ उस व्यक्ति और दल को हो सकता है, जो दलित समाज में एक वैकल्पिक नेतृत्व की तलाश के रूप में सामने आए। इस स्थिति में सबसे चर्चित नाम सर्वजन आम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश भास्कर का उभर रहा है।
जयप्रकाश भास्कर पिछले कुछ वर्षों में दलित समाज के भीतर अपनी पकड़ मजबूत कर चुके हैं। खास तौर से धोबी समाज, जो दलित समाज का एक बड़ा और जागरूक तबका माना जाता है, पहले ही उनके साथ जुड़ना शुरू कर चुका है। यदि यह जुड़ाव गति पकड़ता है तो दलित उपजातियों में भी उनके लिए स्वीकार्यता बढ़ना स्वाभाविक है और रावण की राह में आए इस विवाद ने उनके लिए राजनैतिक दूरी को कम कर दिया है।
भास्कर की साफ-सुथरी छवि और उभरती पहचान
जयप्रकाश भास्कर की सबसे बड़ी ताकत उनकी साफ-सुथरी छवि है। वह लंबे समय से अलग-अलग सामाजिक और राजनीतिक मंचों पर दलितों के हक़ की आवाज बुलंद करते रहे हैं। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में अब तक कोई ऐसा विवाद या आरोप अपने ऊपर नहीं आने दिया है, जिससे उनकी नैतिकता पर सवाल उठे। यह बात दलित समर्थक वर्ग के मन में विश्वास पैदा करती है।
इसके अलावा, वह उम्र में युवा हैं और दलित राजनीति में नए चेहरे की खोज की भावना को भी पूरा करते हैं। दलित समाज का युवा तबका चाहता है कि उनका नेता न केवल उनकी सामाजिक आकांक्षाओं को व्यक्त करे, बल्कि उन्हें सत्ता और नीति-निर्णय की वास्तविक प्रक्रियाओं में भी प्रतिनिधित्व दिला सके। भास्कर धीरे-धीरे इस भूमिका की ओर आगे बढ़ते दिख रहे हैं।
दलित राजनीति का बदलता रुझान
दलित राजनीति अब केवल नारेबाजी या प्रतीकात्मक विरोध तक सीमित नहीं है। यह अब सामाजिक प्रतिनिधित्व, राजनीतिक हिस्सेदारी और सत्ता में भूमिका तय करने की राजनीति बन चुकी है। मायावती के बाद इस राजनीति में नेतृत्व को लेकर शून्य जैसी स्थिति बनती जा रही थी। रावण ने इस खालीपन को आंशिक रूप से भरा, लेकिन वर्तमान विवाद ने उन्हें कमजोर कर दिया है। ऐसे में भास्कर जैसा नेतृत्व एक ठोस विकल्प के रूप में खड़ा होता दिखाई देता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि दलित समाज के भीतर बौद्धिक और सामाजिक विमर्श तेजी से बढ़ रहा है। लोग अब नेता को केवल प्रतीकात्मक पहचान के आधार पर नहीं चुनना चाहते, बल्कि यह देखना चाहते हैं कि उनका नेता संगठन बना पाने, संघर्ष कर पाने और सत्ता तक पहुँच पाने की क्षमता रखता है या नहीं। भास्कर इस दिशा में अपने कदम लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।
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राजनैतिक लाभ और आगे का रास्ता
यदि चंद्रशेखर रावण पर लगे आरोपों की गूंज जारी रहती है या अदालत/जांच आगे बढ़ती है, तो दलित राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। यह सीधे तौर पर शक्ति-संतुलन को बदल देगा और यह बदलाव सिर्फ चेहरों का नहीं होगा, बल्कि यह राजनीतिक रणनीति और सामाजिक गठबंधन के स्वरूप को भी बदल देगा।
जयप्रकाश भास्कर के लिए यह समय सबसे महत्वपूर्ण है। यदि वह दलित समाज के विभिन्न उपसमूहों- जाटव, धोबी, पासी, वाल्मीकि, खरवार, मुसहर आदि के बीच संवाद बढ़ाते हैं और संगठित ढांचे को मजबूत करते हैं, तो वह आने वाले समय में उत्तर भारत की दलित राजनीति का दूसरा बड़ा चेहरा बन सकते हैं।
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रावण पर क्या हैं आरोप
आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ पर एक महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। शिकायतकर्ता महिला ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि रावण ने उससे विवाह का झांसा देकर संबंध बनाए और लंबे समय तक उसका शारीरिक व भावनात्मक शोषण किया। महिला का आरोप है कि जब उसने शादी के बारे में बात की तो रावण ने उसे धमकाया और संबंध स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इस मामले में महिला की ओर से दिल्ली में शिकायत दर्ज कराई गई, जिसके बाद पुलिस ने आरोपों की प्रारंभिक जाँच शुरू की है। महिला ने यह भी कहा है कि वह लंबे समय से रावण के संपर्क में थी और सामाजिक कामकाज के दौरान ही दोनों की मुलाक़ातें बढ़ीं।
हालांकि, चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ और उनकी पार्टी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि यह मामला राजनीतिक साजिश है और चुनावी माहौल को देखते हुए उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है। रावण की ओर से कहा गया है कि वह कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और सच्चाई सामने आने की बात कही है। फिलहाल मामला जांच के चरण में है और पुलिस द्वारा महिला के बयान व उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आगे की कार्रवाई की जा रही है।





