तन उजला मन मैला यह
कैसी करी सफाई है।
काहे इतनी कलुष भावना
पानी में आग लगाई है।।
मैं को त्यागो चलो बस
मिल कर हम की ओर।
हर दिल को जीतने की
बस यही एक दवाई है।।
अपने कर्मों का नित प्रति
दिन स्वाकलन करते रहो।
सद्भावना के साथ थोड़ा
झुककर सदा चलते रहो।।
स्वादऔर विवाद दोनों से
बच कर चलो जीवन में।
स्वास्थ्य और संबंधों की
नींव भी सदा भरते रहो।।
जियो ऐसे कि जीवन एक
यादगार किस्सा बन जाये।
जिन्दगी सबके साथ मिला
कोई एक हिस्सा बन जाये।।
साथ सबके सहकार और
मिल कर सरोकार में रहो।
कहीं जीवन घसीटता और
रिसता घिस्सा न बन जाये।।
रिश्तों में बनाकर रखो जरा
अपनापन जिक्र करते रहो।
हर किसी की चाह की हो
सके फिक्र भी करते रहो।।
रिश्ते निभाने बनाने से भी
ज्यादा है मुश्किल काम।
ना रखो मन में छुपाकर बुरा
लगे तो तर्क भी करते रहो।।
-एस के कपूर, “श्री हंस”
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