नीरज सिसौदिया, बरेली
दुनिया बदलने का सफर लाखों मीलों का है, अगर हम चंद कदमों का फासला भी तय कर लें तो न जाने कितने बेबसों की तकदीर संवर सकती है. कुछ ऐसी ही सोच लेकर चल रही हैं डाक्टर मृदुला शर्मा. डा. मृदुला शर्मा बरेली के चिकित्सा जगत का जाना पहचाना नाम हैं. डा. मृदुला शर्मा बरेली के धर्मदत्त सिटी हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि एक डॉक्टर होने के साथ ही वह एक अच्छी कथक डांसर और एक बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी भी हैं. उन्होंने चार साल तक प्रयागराज से कथक का प्रशिक्षण लिया और कई परफॉर्मेंस भी दीं. उमाशंकर दीक्षित के सामने परफॉर्म करने का मौका भी मिला.
दिल्ली स्टेट की टीम से दो बार नेशनल गेम्स खेल चुकीं डॉक्टर मृदुला शर्मा समाजसेवा के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर से ही अपनी नौकरानी की बेटी को इंजीनियर बनाकर की है. चिकित्सा जगत को अपनी जिंदगी के लगभग तीस बेशकीमती साल देने वाली मृदुला शर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली शहर की रहने वाली हैं लेकिन उनका बचपन राजधानी दिल्ली में गुजरा. अतीत की अलमारी से कुछ हसीन यादें निकालते हुए मृदुला कहती हैं, ‘मैं मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले की रहने वाली हूं पर मेरा जन्म लखनऊ में हुआ था. मेरे पिता केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में तैनात थे इसलिए महज 7-8 महीने की उम्र में ही हम दिल्ली आ गए थे और मेरा बचपन दिल्ली की गलियों में ही बीता.’
मृदुला शर्मा पढ़ाई में जितनी अच्छी थीं उतनी ही अच्छी कथक डांसर और हॉकी प्लेयर भी थीं. एक डांसर और हॉकी प्लेयर से वह डॉक्टर कैसे बन गईं? क्या पिता ने उन्हें किसी तरह की बंदिशों में रखा था? पूछने पर मृदुला बताती हैं, ‘मेरे पिता ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखते थे मगर उन्होंने मेरी हर ख़्वाहिश पूरी की. एक बार मेरे ताऊ जी ने मेरी पढ़ाई को लेकर पिता से कहा कि बिटिया को ज्यादा पढ़ाओगे तो उसके लायक लड़का नहीं मिलेगा. इस पर मेरे पिता का स्पष्ट कहना था कि मेरी बेटी जितना चाहेगी मैं उसे पढ़ाऊंगा. मुझे हॉकी का शौक बचपन से ही था. छठी क्लास से ही मैंने हॉकी खेलना शुरू कर दिया था. वर्ष 1980 की बात है, उस वक्त मैं दसवीं में पढ़ती थी और दिल्ली स्टेट की टीम से पहली बार चंडीगढ़ में नेशनल खेला.
इसके बाद पुणे में आयोजित नेशनल हॉकी में भी मैं दिल्ली की टीम से सेंट्रल हाफ प्लेयर के तौर पर खेली. हॉकी मेरा पैशन था और डॉक्टर बनना मेरा सपना. मेरी मां उस दौर में एमए बीएड थी और वह भी चाहती थीं कि उनकी इकलौती बेटी डॉक्टर बने. मेरे साथ ही दिल्ली स्टेट टीम के लिए देवेंदर खोखर का भी सेलेक्शन हुआ था. उसने हॉकी को चुना और ओलंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा भी बनी मगर मैं सोसाइटी के लिए कुछ करना चाहती थी. यही वजह थी कि मैंने हॉकी की जगह मेडिकल लाइन को चुना.’
डा. मृदुला शर्मा की स्कूलिंग दिल्ली के एयरफोर्स बाल भारती स्कूल से हुई. इसके बाद एशिया के सबसे बड़े महिला मेडिकल कॉलेज लेडी हार्डिंग से वर्ष 1987 में एमबीबीएस पास आउट करने वाली मृदुला ने सफदरगंज मेडिकल कॉलेज से डीएनबी (डिप्लोमा इन नेशनल बोर्ड इन ऑक्जेन गाइनी) भी किया. वह दिल्ली के सफदरजंग हास्पिटल में सीनियर रेजीडेंट भी रहीं.
दिल्ली में सफलता के शिखर को चूमने वाली मृदुला ने बरेली जैसे छोटे से शहर में शादी का फैसला क्यों किया? क्या अपने पति डाक्टर अनुपम शर्मा से उनकी लव मैरिज हुई थी? पूछने पर मृदुला खिलखिलाने लगती हैं. साफ तौर पर तो वह कुछ नहीं कहतीं पर डा. अनुपम से अपनी मोहब्बत को नकारती भी नहीं हैं.
कहती हैं, ‘हम शादी से पहले एक-दूसरे से मिल चुके थे और बहुत अच्छी तरह समझ भी चुके थे पर मेरे पापा खुद रिश्ता लेकर बरेली आए थे और इस तरह वर्ष 1988 में हमारी शादी हो गई. उस वक्त बरेली डेवलप हो रहा था लेकिन इतनी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं. मेरे पति और मैं चाहते थे कि अपने शहर के लिए भी हम कुछ करें. इसलिए हमने दिल्ली छोड़ने का फैसला लिया और वर्ष 1995 में हम बरेली आ गए.’
तीन साल तक प्रोफेशनल डॉक्टर की भूमिका निभाने के बाद डा. मृदुला शर्मा समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय हुईं. उन्होंने मीरगंज, शाही और शेरगढ़ जैसे इलाकों में स्वास्थ्य जांच एवं जागरूकता कैंप लगाने शुरू किए लेकिन पब्लिसिटी से दूर रहीं. वह किसी सामाजिक संगठन या एनजीओ से भी नहीं जुड़ी हैं. समाजसेवा को लेकर उनका नजरिया और तरीका दोनों एकदम अलग है. वह कहती हैं, ‘सोशल वर्क के लिए किसी प्लेटफॉर्म की जरूरत नहीं होती. सोशल वर्क को फैशन के रूप में बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. फोटो खिंचवाकर किसी गरीब को सबके सामने छोटा दिखाकर पेश करना और समाजसेवा का शोर करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है.’
डा. मृदुला ने अपनी नौकरानी की बेटी की तकदीर संवारी. उसे पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर बनाया. इतना सब करने के बावजूद डा. मृदुला ने उसके साथ फोटो खिंचवाना तो दूर उसके नाम तक का कहीं जिक्र नहीं किया ताकि उस इंजीनियर बेटी को अपनी मां की बेबसी की वजह से समाज में शर्मिंदगी न उठानी पड़े.
वह मीरगंज के ब्रह्मादेवी बालिका विद्यालय की मैंनेजर भी हैं. स्कूल के जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करने के साथ ही उन्हें उच्च स्तर तक ले जाने की दिशा में भी मृदुला शर्मा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. कई गरीब बच्चों को वह मुफ्त शिक्षा भी दिलवा रही हैं.
चिकित्सा क्षेत्र में बरेली में उपलब्ध सरकारी सुविधाओं को वह नाकाफी मानती हैं. बरेली की चिकित्सा सुविधाओं को देखने का उनका नजरिया क्या है? पूछने पर कहती हैं, ‘हमारी सरकार ने पॉलिसी तो बहुत अच्छी बनाई है मगर उस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो पा रहा. आबादी के अनुरूप स्वास्थ्य विभाग के पास सुविधाएं नहीं हैं. इसकी एक वजह जागरूकता की कमी है.’
मृदुला उस दौर में आगे बढ़ रही थीं जिस दौर में बेटियों पर कई तरह के सामाजिक बंधन हुआ करते थे. ऐसे में एक बहू की आजादी की कल्पना करना भी बेमानी था लेकिन मृदुला को अपने पति और ससुराल का पूरा साथ मिला. मृदुला एक मंत्री और राजनीतिक रसूख वाले परिवार की बहू थीं लेकिन ससुराल में भी उन्हें वही आजादी मिली जो मायके में थी. मृदुला कहती हैं, ‘एमबीबीएस करते ही मेरी शादी हो गई थी. आगे की पढ़ाई मैंने शादी के बाद ही की. मेरे पति डा. अनुपम शर्मा और ससुर बीएन शर्मा ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी किया.
डॉक्टरी का पेशा बहुत ही जिम्मेदारी का का होता है क्योंकि इसका ताल्लुक़ सीधा लोगों की जिंदगी से होता है. जिंदगी बच जाए तो धरती के भगवान का दर्जा दे दिया जाता है और खत्म हो जाए तो पैसे का भूखा हैवान बना दिया जाता है. मृदुला इसे अलग नजरिये से देखती हैं. कहती हैं, ‘मेरा मानना है कि डॉक्टर्स को इतना ऊंचा दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए. डाक्टर्स भी उसी तरह अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं जिस तरह एक ट्रेन ड्राइवर, पुलिस, वकील या शिक्षक. एक ड्राइवर भी पूरी तरह अलर्ट होकर हमें सुरक्षित अपनी मंजिल तक पहुंचाता है. इसी तरह डॉक्टर की भी जिम्मेदारी होती है कि वह अपने मरीज की जिंदगी को सुरक्षित करे. सभी को अपना काम पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए.’
डॉक्टर और मरीज का रिश्ता बहुत नाजुक और भरोसे वाला होता है लेकिन कुछ डाक्टर्स पैसों की खातिर इस पेशे को ही शर्मसार करने में लगे हुए हैं. कई बार डॉक्टर्स की पूरी कोशिशों के बावजूद मरीज की जिंदगी नहीं बच पाती और उस पर तरह तरह के आरोप लगा दिए जाते हैं. इन परिस्थितियों से निपटने के लिए एक डॉक्टर को क्या करना चाहिए? पूरी ईमानदारी से काम करने के बावजूद कहां कमी रह जाती है जो इस तरह की परिस्थितियां जन्म लेती हैं. पूछने पर वह बताती हैं, ‘डॉक्टर कभी नहीं चाहता कि उसके किसी भी मरीज की मौत हो. परिजनों और डॉक्टर दोनों का मकसद मरीज की जान बचाना होता है. सामान्य शब्दों में कहा जाए तो दोनों एक ही टीम का हिस्सा होते हैं और अपनी टीम को जिताने के लिए ही खेलते हैं. इस तरह की परेशानियां ज्यादातर जागरूकता के अभाव और कम्युनेशन गैप की वजह से आती हैं. डॉक्टर को चाहिए कि वह अपने मरीज के बारे में वास्तविक स्थिति से पहले ही अवगत करा दे. किसी भी प्रकार की बात छुपाने से मुश्किलें और बढ़ती हैं.’
डॉक्टर और मरीज के रिश्ते को मृदुला बेहद बारीकी से समझती हैं. उनके कई मरीज दशकों से उनसे जुड़े हुए हैं. मरीजों के इस भरोसे को ही मृदुला अपनी उपलब्धि मानती हैं. एक यादगार किस्सा सुनाते हुए वह कहती हैं, ‘वर्ष 1995 में जब मैं बरेली आई थी तो मिशन हॉस्पिटल ज्वाइन किया था. उसी दौरान शबाना नाम की एक महिला मरणासन्न स्थिति में भर्ती हुई थी. वह गर्भवती थी और गर्भपात के लिए कहीं जा चुकी थी जिसकी वजह से उसकी आंतों तक में इंजुरी आ चुकी थी. उसका बचना नामुमकिन सा लग रहा था. हम लोग उम्मीद छोड़ चुके थे मगर कोशिश नहीं छोड़ी. उसका ऑपरेशन किया और लगभग 15-20 दिन तक ऑब्जर्वेशन में रखा. वह पूरी तरह ठीक हो चुकी थी. हम लोगों के लिए यह एक चमत्कार था. आज तक शबाना मेरे पास आती है और मुझे बाजी (दीदी) कहकर बुलाती है. ऐसे कई मरीज हैं जो मुझ पर भरोसा करते हैं. तीस साल के करियर में इस भरोसे को ही मैं अपनी उपलब्धि मानती हूं. मुझे खुशी है कि मैंने हॉकी और कथक की जगह डॉक्टर के पेशे को चुना और मुझे दूसरा जन्म भी मिले तो मैं उस जन्म में भी डा. मृदुला शर्मा ही बनना चाहूंगी.’
डा. मृदुला एक अच्छी डॉक्टर होने के साथ ही कुशल गृहिणी भी हैं. उनके बड़े पुत्र मेजर डॉ. राघव शर्मा आर्मी में डॉक्टर हैं जो हाल ही में यूएन में सेवा देकर लौटे हैं. साथ ही बहू मेजर डा. निकिता भी एएफएमसी पुणे में पोस्टेड हैं. एक ढाई साल के पोते की वह दादी हैं. छोटे पुत्र माधव शर्मा आर्किटेक्ट हैं और साथ ही पढ़ाई भी कर रहे हैं.