नीरज सिसौदिया, बरेली
फर्जी साक्ष्य सम्मिलित करने और तीन लाख रुपये की रिश्वत न मिलने पर वादी के खिलाफ निर्णय देने के मामले में तहसीलदार सदर आशुतोष गुप्ता की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. पीड़ित डा. अनुपमा राघव ने न्यायालय विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम प्रथम की अदालत में गुहार लगाते हुए आशुतोष गुप्ता के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत संबंधित थाना प्रभारी निरीक्षक/सक्षम प्राधिकारी को एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश देने की गुहार लगाई है.
कोर्ट पहुंची डॉक्टर अनुपमा राघव ने अदालत में सदर तहसीलदार बरेली आशुतोष गुप्ता के खिलाफ दिए गए प्रार्थना पत्र में लिखा है कि आशुतोष गुप्ता तहसीलदार सदर जनपद बरेली ने न्यायालय में राजस्व वाद संख्या 0824/10-11/14 और 97/ 01/02 अंतर्गत धारा 34/35 जेडएलआर एक्ट के तहत डॉक्टर अनुपमा राघव बनाम राम बहादुर विचाराधीन था जिसमें दया शंकर मौर्य द्वारा अवैधानिक रूप से आपत्ति प्रस्तुत की गई जबकि दयाशंकर मौर्या को इस वाद में आपत्ति प्रस्तुत करने का कोई वैधानिक अधिकार ही नहीं था क्योंकि मुख्य प्रतिवादी राम बहादुर थे| डॉक्टर अनुपमा राघव ने आरोप लगाया है कि तहसीलदार आशुतोष गुप्ता ने दयाशंकर मौर्या के फर्जी एवं कूट रचित साक्ष्यों को पत्रावली में सिर्फ संलग्न ही नहीं किया बल्कि मनमाने तरीके से वाद को भी लंबित रखा और अवैधानिक विधि से आदेश पारित किए| तहसीलदार आशुतोष गुप्ता पर निम्न अवैधानिक कार्य करने के आरोप लगाए गए हैं| पहला आरोप है कि आशुतोष गुप्ता तहसीलदार सदर के न्यायालय में विपक्षी ने फर्जी साक्ष्य प्रस्तुत किए थे| उक्त साक्ष्यों के विरुद्ध डॉक्टर अनुपमा ने न्यायालय में सीआरपीसी की धारा 340सी के तहत प्रार्थना की एवं आशुतोष गुप्ता द्वारा किए गए वैधानिक कृत्यों की शिकायत उच्च अधिकारियों से की| शिकायत की जांच शुरू होने पर आशुतोष गुप्ता ने उनके पैरोकार परमानंद के माध्यम से 20 मार्च 2019 को शाम 8:30 बजे अपने आवास पर बुलाया और मुकदमे में डा. अनुपमा राघव के पक्ष में फैसला सुनाने के लिए तीन लाख रुपये की रिश्वत मांगी. डॉक्टर अनुपमा राघव ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने इंकार कर दिया तो तहसीलदार ने बिना पैसा लिए उनके पक्ष में फैसला सुनाने से इनकार कर दिया| आरोप है कि जब डॉक्टर अनुपमा राघव ने तहसीलदार की शिकायत लिखित रूप में की तो तहसीलदार ने उनके पैरोकार पर फिर से तीन लाख रुपये रिश्वत दिलवाने का दबाव बनाया| पैसे नहीं देने पर तहसीलदार द्वारा उक्त वाद को विलंबित रखते हुए अंत में एबेट कर दिया गया| इसके बाद डॉक्टर अनुपमा ने घटना की शिकायत संबंधित थाना कोतवाली और पुलिस अधीक्षक से भी की लेकिन कहीं भी उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई| डा. अनुपमा का आरोप है कि आशुतोष गुप्ता द्वारा न्यायालय में अवैधानिक रीति से दयाशंकर मौर्य की आपत्ति के साथ फर्जी एवं कूट रचित दस्तावेज सम्मिलित किए गए और तीन लाख रुपये की रिश्वत न मिलने के कारण उनके विरुद्ध फैसला दिया गया जो संजेय अपराध की श्रेणी में आता है| इसलिए उन्होंने विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम प्रथम से अपील की है कि न्याय हित एवं न्याय की दृष्टि से घटनाक्रम की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर प्रभारी निरीक्षक थाना कोतवाली और सक्षम प्राधिकारी को विवेचना करने के आदेश पारित किया जाए. डॉ. अनुपमा ने अदालत से गुहार लगाई है कि तहसीलदार के खिलाफ घटनाक्रम के आधार पर समुचित धाराओं में अभियोग पंजीकृत कर विवेचना करने के आदेश प्रभारी निरीक्षक थाना कोतवाली अथवा सक्षम प्राधिकारी को दिए जाएं|
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