जीवन में ऐसी विडम्बना, जाने क्यों अब हमें डराए।
मन क्यों आज यहाँ पर भटका, क्यों अपना मुँह इतना लटका
ऐंठ दिखाने लगा आज वह, जिससे काम किसी का अटका
जिसको लगा खूब है झटका, उसने अपना माथा पटका
भ्रष्टाचार फूलता- फलता,यही आजकल हमको खटका
जिनको अपना समझ रहे थे, वे अब लगने लगे पराए
जीवन में ऐसी विडम्बना, जाने क्यों अब हमें डराए।
गतिविधियाँ जब हुईं अनैतिक, कौन यहाँ पर किसकी माने
झटके का जो माल हड़पते, वही आज देते हैं ताने
बड़े आदमी लगते ऐसे, अंधों में हों राजा काने
निर्बल की अब कौन सुनेगा, दुत्कारें जब चौकी-थाने
जिसको घास यहाँ पड़ जाए, नहीं किसी को कभी चराए
जीवन में ऐसी विडम्बना, जाने क्यों अब हमें डराए।
तिकड़म में जो सफल हो गया, मिलती उसको दूध- मलाई
मानवता का पहन मुखौटा, अपने हित की बात चलाई
कुटिल नीति पर चलने वाले, करें किसी की नहीं भलाई
बेच दिया ईमान कहीं पर, और आस्था यहाँ जलाई
पाला पड़ा दबंगों से जब, सज्जन हाय खूब घबराए
जीवन में ऐसी विडम्बना, जाने क्यों अब हमें डराए।
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