विचार

प्रज्ञा यादव की कविताएं-5

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नारी सबसे महान

तड़पती है आसमान में उड़ने की ख़्वाहिश में,
रोको न इसको तुम, हवस की फरमाइश में।

चाहती है हंसना, सांस लेना आजादी की आबो-हवा में,
जकड़ो न इसे तुम, स्वार्थ की फरमाइश में।

चाहती है डूबना, प्रकृति की अतुल्यता में,
खींचो न इसे तुम, गर्त की गहराई में।

चाहती है चलना, राहों पर शान से,
लूटो न इसे तुम, अपनी झूठी शान की नुमाइश में।

उठाती है आवाज, पाने को हक अपना संसार में,
गला न काटो इसका, स्वार्थी तलवार से।

पवित्र है नारी, मूरत भगवान की,
पहनाओ न माला इसे, कुशब्दों के जाल सी।

नारी है ये, संपत्ति नहीं तुम्हारी,
बेचो न इसको, भरे बाजार में।

चली है नारी, पाने को अस्तित्व अपना संसार में,
रोको न इसको कुत्सित विचार से,

देवी है नारी, पूजनीय सम्पूर्ण जहान में,
बेचो न इसको कोठों के बाजार में।

नींव है नारी, मानव अस्तित्व की ब्रह्माण्ड में,
तोड़ो न इसको बेटे के जन्म की चाहत में।

मित्र है भाई की, मां-बाप की शान है,
पूजो इसको, नारी देवतुल्य रूप समान है।

नारी कलसी है तुलसी की, जीवन का आधार है,
इसके चरणों में नतमस्तक शीश सहस्त्रों बार है।

रोको न नारी को तुम
नारी जग में सबसे महान है।

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