मिट्टी का बदन और सांसें
बस उधार की हैं।
जाने घमंड किस चीज़ का
बात विचार की है।।
आदमी बस इक किरायेदार
मेहमान कुछ दिन का।
नहीं उसकी हैसियत यहां पर
जमींदार की है।।
जिन्दगी हमें हर मोड़ पर
रोज़ आज़माती है।
कुछ नई रोज़ हमें बतलाती
और सिखलाती है।।
सुनते नहीं हम बात अंतरात्मा
की अपने स्वार्थ में।
ईश्वरीय शक्तियां भी हमें यह
बात जतलाती हैं।।
उम्मीद की ऊर्जा से अंधेरे में
भी रोशनी कर सकते हैं।
भीतर के उजाले से हम मन
मस्तिष्क भर सकते हैं।।
जो कुछ करते हम दूसरों के
लिये दुनिया में।
बस उसी सरोकार के सहारे हर
जंग हम लड़ सकते हैं।।
-एसके कपूर “श्री हंस”