विचार

या रब क्यों इतने…

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या रब क्यों इतने निष्ठुर हो
जो न तेरा मान धरें
क्यों उनके लिए छिपे बैठे हो
आ जाओ उनके लिए बस
जो तेरे लिए समर्पित हैं
तुम तो जानों ये बेटी तेरी
अब भी कितनी तटस्थ खड़ी
सारा जग मायूस खड़ा है
पर ये बेटी तेरी अडिग बड़ी
तुझसे अटूट जो आस जुड़ी
रख लें अब तो मान प्रभु
आओ धरा पर उनके लिए
जो तेरी बस राह चले
संहार करो अब बस उनका
मानुष नहीं हैवान हैं जो
मेरी आंख में न आंसू हैं
न मुझको है भय भी जरा
पर टूट रहे जो हिम्मतवाले
उनका हौसला टूटे न
आ भी जा या अल्लाह मेरे
इस बेटी की लाज धरा
बेशक मैं न हारी हूं न हारूंगी
पर तेरी भी जिम्मेदारी अब
संभाल ले आके अपनी ये धरा

-प्रमिला ब्रह्मदेव सक्सेना

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