रामचंद्र कुमार अंजाना, कसमार/बोकारो थर्मल
कसमार प्रखंड में ऐसे तो 16 स्थानों में शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होती है। इनमें से कसमार के गर्री चौबे परिवार द्वारा की जानेवाली दुर्गा पूजा सबसे प्राचीन माना जाता है। समाजसेवी व शिक्षाविद मुरारी कृष्ण चौबे से प्राप्त जानकारी के अनुसार गर्री निवासी मोतीराम चौबे ने सन 1833 में मिट्टी के एक पिंड स्थापित कर देवी दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू की। कहा जाता है कि मोतीराम चौबे का भतीजा एवं उचित चौबे का पुत्र छत्रधारी चौबे एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गया था। उसके जीने की कोई उम्मीद नहीं बची थी। इस स्थिति में मोतिराम चौबे ने देवी दुर्गा का मन मे ध्यान करते हुए भतीजे को बीमारी से मुक्त करने की विनती की। देवी की कृपा से बीमार छत्रधारी ठीक हो गया, और उसी साल से गर्री में दुर्गा प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू हुई।
जब अंग्रेज अफसर को देवी ने सपने में फटकारा
गर्री में प्राचीन दुर्गा मंदिर कसमार ही नहीं , बल्कि बोकारो जिले के कई क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मोतीराम चौबे के पुत्र पंडित वंशीधारी चौबे ब्रिटिश शासन में हजारीबाग में शिक्षा विभाग में बड़े अधिकारी के रुप मे कार्य करते थे। एक बार दुर्गा पूजा से पूर्व वंशीधरी चौबे ने अंग्रेज अफसर को पूजा में गर्री जाने की छुट्टी मांगी थी , इस पर अंग्रेज अफसर ने देवी दुर्गा का मजाक उड़ाते हुए छुट्टी नहीं दी। इस पर नाराज होकर देवी दुर्गा उसी रात अंग्रेज अफसर के सपने में आकर फटकार लगाते हुए कहा था कि पंडित को छुट्टी नहीं देने पर तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। सपना टूटते ही अफसर दौड़े दौड़े पंडित के पास आये और तुरंत छुट्टी मंजूर कर दी।
एक मंदिर में होती है दो प्रतिमा स्थापित
गर्री के चौबे परिवार के प्राचीन दुर्गा मंदिर में देवी दुर्गा की दो प्रतिमा स्थापित कर बंगाली विधि विधान से पूजा अर्चना होती है। इसमें सुरजुडीह के मुखर्जी परिवार के आचार्य के द्वारा पूजा करवाया जाता है। इस मंदिर में दो प्रतिमा वेदी है , जिसमें एक वार्षिक पूजा वेदी व दूसरा मानसिक पूजा वेदी है। वार्षिक पूजा वेदी में 185 साल से लगातार देवी प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना हो रही है , वहीं मानसिक पूजा वेदी में सबसे पहले शिक्षाविद व कसमार हाई स्कूल के संस्थापक भगवती शरण चौबे ने 72 वर्ष पूर्व पूजा की शुरुआत की थी।
महाष्टमी और नवमी को उमड़ती है भीड़
दुर्गा पूजा ही एकमात्र ऐसा अवसर है , जब कसमार गर्री के चौबे परिवार के सभी सदस्य अपने पैतृक गांव आकर पूजा में जरूर शामिल होते हैं। ऐसे तो बेलवरण से लेकर दशमी तक उत्साह व उल्लास का माहौल रहता है , खासकर महाष्टमी और नवमी को आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ता है। नवमी को पूजा के बाद बकरे की बलि भी चढ़ाई जाती है। संतान प्राप्ति के लिए सैकड़ो महिला पुरुष तालाब से दंडवत करते मंदिर तक आते हैं। कहते हैं जिसने भी देवी दुर्गा की आराधना कर मुराद पूरी करने की विनती की , देवी की कृपा से उनकी मनोकामना पूरी हुई।