पंजाब

क्या वाकई बलदेव सिंह देव को कांग्रेस जिला प्रधान बनाने का लोकसभा चुनाव में होगा नुकसान?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
कांग्रेस नेता बलदेव सिंह देव को पार्टी का जिला प्रधान बनाए जाने के बाद जालंधर की सियासत गरमाने लगी है| कांग्रेस विधायक सुशील कुमार रिंकू के समर्थकों के अलावा भी कुछ अन्य कांग्रेस नेता विरोध पर उतर आए हैं| हर कोई बलदेव सिंह देव का विरोध तो कर रहा है लेकिन यह कोई नहीं बता रहा कि जिला प्रधान किसे बनाया जाना चाहिए था? विरोधियों द्वारा देव को जिला प्रधान बनाने पर पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में नुकसान होने की दुहाई दी जा रही है| अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई देव को जिला प्रधान नहीं बनाया जाना चाहिए था? क्या उन्हें जिला प्रधान बनाने का खामियाजा वाकई पार्टी को लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा? क्या नेताओं का विरोध जायज है? क्या बिना विधायकों की रजामंदी के देव जिला प्रधान बन सकते थे? इस मसले पर विधायकों की खामोशी यह साबित करती है कि जिला प्रधान की नियुक्ति में उनकी पूरी रजामंदी रही है| किसी भी विधायक ने खुलकर हाईकमान के इस फैसले का विरोध नहीं किया है| निश्चित तौर पर जिला प्रधान की नियुक्ति में बलराज ठाकुर जैसे काबिल नेता की अनदेखी की गई है लेकिन इससे यह साबित नहीं हो जाता कि बलदेव सिंह देव नाकाबिल हैं।
दरअसल , टीम की नियुक्ति उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जिन्होंने सीटिंग पार्षद होने के बावजूद बलदेव सिंह देव के हाफ टिकट नहीं लगने दी थी और वह पार्षद का चुनाव लड़ने से पार्टी से वंचित रह गए थे। बलदेव सिंह देव को सिर्फ इसलिए पार्टी से टिकट नहीं दी गई थी क्योंकि वह हैदरी के वफादार सिपाही थे| उस वक्त बलदेव सिंह देव खून का घूंट पीकर रह गए थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और ऐसी सियासी चाल चली कि सारे विरोधी चारों खाने चित हो गए| हेनरी से वफादारी का इनाम उन्हें मिल चुका है| रही बात लोकसभा चुनाव में नुकसान की तो सिर्फ एक विधायक के नाराज होने से पार्टी को कोई खास असर नहीं पड़ने वाला| हां अगर बलदेव सिंह देव को जिला प्रधान नहीं बनाया जाता तो कांग्रेस के कुछ और विधायक भी नाराज हो सकते थे और पार्टी को इसका खामियाजा भी लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता था| यही वजह है कि वर्तमान सांसद और कांग्रेस के संभावित लोकसभा प्रत्याशी चौधरी संतोख सिंह ने भी अंदर खाते बलदेव सिंह देव का समर्थन किया| जो मेजर सिंह कांग्रेस की लहर होने के बावजूद पार्षद तक का चुनाव नहीं जीत पाए वह बलदेव सिंह देव का विरोध करके खुद अपना ही मजाक बनवाने में लगे हैं|

मीडिया में दिए गए बयान में मेजर सिंह ने कहा है कि बलदेव सिंह देव को जिला प्रधान बनाने के कारण लोकसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा| क्या यह नुकसान मेजर सिंह करेंगे? क्या यह नुकसान सिर्फ इसलिए किया जाएगा क्योंकि बलदेव सिंह देव को पार्टी का जिला प्रधान नियुक्त किया गया है? अगर ऐसा है तो फिर ऐसे कार्यकर्ताओं की पार्टी को क्या जरूरत है जो अपनी मर्जी के नेता को पद नहीं दिए जाने पर हाईकमान का ही विरोध कर डालें? यह वही मेजर सिंह है जिनकी रेस्टोरेंट्स दाना पानी में कांग्रेस परिवार को भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रमन पब्बी ने भाजपा में शामिल करवाया था|
बलदेव सिंह देव के दूसरे विरोधी संजय सहगल हैं| संजय सहगल वह शख्स हैं जिन्होंने आरटीआई के माध्यम से कई अहम मुद्दे उठाए हैं जो जनता के हितों से सीधे ताल्लुक रखते हैं| काबिल होने के बावजूद पार्टी ने उन्हें कभी टिकट देना जरूरी नहीं समझा| ऐसे में यह बात संजय सहगल के गले से नीचे नहीं उतर रही है कि जिस आदमी को पार्टी पार्षद का चुनाव लड़ने के काबिल भी नहीं समझती उस व्यक्ति को जिला प्रधान की कमान कैसे सौंपी जा सकती है? संजय सहगल की बात जायज है और उनका दर्द भी समझा जा सकता है| कारण यह है कि संजय सहगल को ना तो पार्टी आलाकमान ने गंभीरता से लिया और ना ही कोई विधायक उन्हें गंभीरता से ले रहा है| बलदेव सिंह देव एक सुलझे नेता हैं। उनकी छवि मिलनसार नेताओं की है| कभी वह भगवा ब्रिगेड का हिस्सा हुआ करते थे मगर अब पूरी तरह से हेनरी भक्त हैं। जब हेनरी को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला था तो हाईकमान का विरोध करने वालों में सबसे आगे बलदेव सिंह देव ही थे| कांग्रेस विधायक सुशील रिंकू के खिलाफ भी उन्होंने जमकर आग उगली थी। लेकिन यह उनका गुस्सा था जो टिकट नहीं मिलने पर फूट पड़ा था| उनका गुस्सा जायज भी था क्योंकि वह सीटिंग पार्षद थे और उनकी टिकट वार्ड बंदी के खेल में उलझ कर रह गई थी| बहरहाल बलदेव सिंह देव के जिला प्रधान बनने आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला| पंजाब में कांग्रेस को जो भी वोट मिलेंगे वह पंजाब सरकार और स्थानीय विधायकों की कारगुजारियों के आधार पर मिलेंगे या फिर राहुल गांधी के नाम पर| इसके अलावा स्थानीय सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के माहौल के कारण भी कांग्रेस की झोली में वोट आ सकते हैं| कांग्रेस जिला प्रधान इसमें कोई अहम भूमिका नहीं निभा सकता| जनता वादों और दावों की हकीकत पर वोट करती है ना कि जिला प्रधान का चेहरा देख कर| अगर बलदेव सिंह देव को 3 विधायकों का समर्थन है तो निश्चित तौर पर उन तीन विधायकों का सपोर्ट पार्टी को मजबूत करने में बलदेव सिंह देव को जरूर मिलेगा| पिछले तीन दशक से सियासत मे एक्टिव रहे बलदेव सिंह देव का एक मजबूत जनाधार है| देव उस वक्त कांग्रेस से पार्षद बने थे जब शहर और प्रदेश में भाजपा की लहर और भाजपा गठबंधन की सरकार थी।
हालांकि , बलदेव सिंह से बेहतर विकल्प शहर के कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेता हो सकते थे लेकिन अगर उन्हें जिला अध्यक्ष की कमान सौंप दी जाती तो कुछ विधायक नाराज हो जाते और पार्टी को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है| यही वजह है कि बलदेव सिंह देव कांग्रेस के लिए मजबूरी में जरूरी बन गए वरना जिस बलदेव सिंह देव को कांग्रेस ने पार्षद का टिकट देने के लायक भी नहीं समझा उन्हें जिला अध्यक्ष की कमान किसी भी सूरत में नहीं सौंपी जाती। बलदेव सिंह देव का विरोध सिर्फ वही नेता कर रहे हैं जिनका खुद का ना तो कोई सियासी वजूद है और ना ही कोई जनाधार| ऐसे नेताओं का क्षणिक विरोध पार्टी के फैसले को कभी नहीं बदल सकता| इसलिए इन नेताओं को भी अब चुप्पी साध लेनी चाहिए वरना उनके हाथ फजीहत के अलावा कुछ नहीं आएगा| इस संबंध में जब कांग्रेस के नए जिला प्रधान बलदेव सिंह देव से बात की गई तो उन्होंने कहा पार्टी ने जो जिम्मेदारी सौंपी है उसे वह पूरी मेहनत और ईमानदारी से निभाएंगे|

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