झारखण्ड

पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनें करती हैं वट सावित्री पूजा, इस बार बन रहे ये विशेष योग 

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रामचंद्र कुमार अंजाना, बोकारो थर्मल
वट सावित्री का व्रत एवं पूजन की तैयारी में सुहागिन महिलाएं जुट गई है। पति के दीर्घायु के लिए सुहागिनों के द्वारा यह पूजा की जाती है। वट वृक्ष के नीचे एकजुट होकर सुहागिनों के द्वारा वट सावित्री का व्रत रखकर पूरे विधि-विधान के साथ वट वृक्ष की पूजा की जाती है।

इस बार तीन जून को वट सावित्री पूजा करना श्रेयस्कर होगा। आचार्य घनश्याम पांडेय के अनुसार इस बार तीन जून को हीं मनाया जाएगा वट सावित्री पूजा। बताया कि इस दिन सोमवती अमावस्या होने के कारण सर्वार्थ सिद्ध योग, अमृत सिद्ध योग के साथ- साथ त्री ग्रही योग का संयोग लग रहा है।

इसके अलावा माना जाता है कि इस दिन हीं शनिदेव का जन्म हुआ था। इसलिए इस मुहूर्त के संयोग लगने के कारण भी इस दिन वट सावित्री की पूजा करने वाली सुहागिन महिलाओं को सौभाग्यवती बने रहने का फल मिलेगा। बताया कि वट सावित्री के दिन मुहूर्तों के लग रहे संयोग से वट सावित्री पूजा के बाद सुहागिन महिलाओं के द्वारा पीपल वृक्ष का भी पूजन एवं परिक्रमा करना लाभप्रद रहेगा। लेकिन बोकारो थर्मल व ऊपरघाट के कुछ इलाकों में रविवार को को वट सावित्री पूजा की गयी। सोमवार को भी वट सावित्री पूजा की जाऐगी।

ज्येष्ठ महीने की अमावस्या में की जाती है वट सावित्री पूजा
सुहागिन महिलाओं के द्वारा प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत व पूजा की जाती है। कहा जाता है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास होता है। इसलिए इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवति महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, उसी समय देव ऋषि नारद आए और सावित्री से कहने लगे की तुम्हारा पति अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लें। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिंदू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं। उन्हें आता देख यमराज ने कहा सावित्री से लौट जाने को कहा। कहा कि पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के ये तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु, ऐसा ही होगा। उसके बाद सावित्री पुनरू उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुनरू जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया। वट सावित्री अमावस्या के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन और व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की ही मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है.

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