दिल्ली

खतरे में दिल्ली, निशाने पर अमित शाह

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली

भाजपा के शाह के सितारे इन दिनों गर्दिश में जाते नजर आ रहे हैं. पहले हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने शाह की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए और अब दिल्ली के बिगड़े हालातों ने उनकी फजीहत करा दी. राजधानी दिल्ली में पिछले 2 दिनों के भीतर दो ऐसे बड़े मामले सामने आए हैं जिन्होंने राजधानी की सुरक्षा को और Home Minister Amit Shah को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है| दोनों ही मामले केंद्रीय गृह मंत्री के तौर पर Amit Shah की नाकामी का सबूत देते हैं| इन दोनों ही मामलों के बाद शाह के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं|

दरअसल, पिछले 2 दिनों में जो दो प्रमुख मामले सामने आए हैं उनमें से पहला मामला दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच उपजा विवाद है तो दूसरा मामला भाजपा सांसद हंसराज हंस के दफ्तर पर खुलेआम गोलीबारी का है| एक तरफ दिल्ली पुलिस के कर्मचारी और उनके परिवार वाले इंसाफ के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए| तो दूसरी तरफ भाजपा सांसद के दफ्तर पर हमले ने दिल्ली की सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं|

विरोध प्रदर्शन करते दिल्ली पुलिस के कर्मचारी

सबसे पहले बात करते हैं वकीलों और पुलिस के बीच उपजे विवाद की| 4 नवंबर को तीस हजारी कोर्ट में वकीलों ने एक पुलिसकर्मी की पिटाई कर दी और उसके बाद पुलिसकर्मियों और वकीलों के बीच विवाद बढ़ गया| कुछ वकील घायल होकर अस्पताल पहुंच गए तो गुस्साए वकीलों ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया| वकीलों के आक्रोश से बचने के लिए आला पुलिस अधिकारियों ने आरोपी पुलिसकर्मियों को नौकरी से सस्पेंड कर दिया और कुछ आला अधिकारियों का तबादला भी कर दिया| यहां से विवाद और गहरा गया| नतीजा यह हुआ कि पुलिसकर्मी पुलिस कमिश्नर कार्यालय के बाहर सड़क पर धरना प्रदर्शन करने लगे| एक तरफ पुलिस वाले धरने प्रदर्शन पर बैठे थे तो दूसरी तरफ उनके परिजनों ने दिल्ली चंडीगढ़ हाईवे जाम कर दिया| आखिरकार पुलिसकर्मियों का विरोध प्रदर्शन रंग लाया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की हरी झंडी मिलने के बाद उनकी सभी मांगें मान ली गईं|

अब सवाल यह उठता है कि जो चुस्ती Amit Shah ने विवाद बढ़ने के बाद दिखाई है वह पहले क्यों नहीं दिखाई| दिल्ली के इतिहास में यह घटना एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई. ऐसा पहली बार हुआ है जब पुलिस वालों को नौकरी छोड़कर धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है और वह भी अपनी सुरक्षा को लेकर| दूसरी तरफ वकीलों में गुस्सा है| हालात इतने बदतर पहले कभी नहीं हुए| कहीं न कहीं अमित शाह दिल्ली के हालात संभालने में नाकाम साबित हुए हैं और वह भी ऐसे समय जब राजधानी पर आतंकी हमले का साया मंडरा रहा है|

राजधानी की सुरक्षा में इतनी लापरवाही अमित शाह की नाकामियों का जीता जागता सबूत है| गनीमत रही कि इस दौरान कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ| आतंकी आसानी से इस मौके का फायदा उठा सकते थे|

विरोध प्रदर्शन करते पुलिसकर्मी

वहीं पुलिस कमिश्नर का भी इस विरोध प्रदर्शन के दौरान खुलकर विरोध हुआ| धरना प्रदर्शन के दौरान पुलिसकर्मियों ने “हमारा कमिश्नर कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो” के नारे लगाए| दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य के लिए यह बेहद शर्मनाक पल था कि उनके ही पुलिस कर्मी उन्हीं के खिलाफ इस तरह से नारेबाजी कर रहे थे. ऐसा भी दिल्ली के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ. कहीं न कहीं पुलिस कमिश्नर से भी इस मामले को संभालने में चूक हुई| वह पुलिसकर्मियों की बात सही तरीके से नहीं समझ सके और न ही उन्हें अपनी बात समझा सके| ऐसी स्थिति में गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद पुलिस कर्मियों की मांगें पूरी करने के बाद खत्म हुआ धरना प्रदर्शन पुलिस कर्मियों की जीत कही जाएगी और केंद्रीय गृहमंत्री एवं पुलिस कमिश्नर की नाकामी|

विरोधियों के बोल

फिलहाल इस मामले के बाद अमित शाह विरोधियों के निशाने पर आ गए हैं| आम आदमी पार्टी हो या कांग्रेस दोनों ही दल पहले दिन से इस मसले को भुनाने में लगे हुए थे| पहले दोनों दल वकीलों के साथ खड़े नजर आए और बाद में पुलिस वालों के विरोध प्रदर्शन पर अमित शाह को घेरते दिखाई दिए. हालांकि आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने पुलिसकर्मी से हुई मारपीट को गलत करार देते हुए उसका विरोध भी किया| लेकिन अमित शाह को घेरने में उन्होंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी|

सुरजेवाला की चुटकी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तो सीधे-सीधे अमित शाह के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लपेटे में ले लिया| सुरजेवाला ने “मोदी है तो मुमकिन है” के स्लोगन पर तंज कसते हुए कहा कि मोदी है तो मुमकिन है, 72 साल में पहली बार दिल्ली पुलिस सड़कों पर धरना प्रदर्शन कर रही है| परिजन हाईवे जाम कर रहे हैं. सच में मोदी है तो यही मुमकिन है|

पिछले कुछ समय से जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी की किरकिरी हो रही है उसका नुकसान आने वाले समय में पार्टी को उठाना पड़ेगा| केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह की फजीहत भी कुछ कम नहीं हो रही| कभी कश्मीर के मसले पर तो कभी राजधानी की सुरक्षा पर, अमित शाह सवालों के घेरे में आने लगे हैं| विपक्षी उन्हें निशाना बनाने लगे हैं|

दहशत में दिल्ली

सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जिस राजधानी में भारतीय जनता पार्टी के अपने सांसद का कार्यालय तक सुरक्षित नहीं रह गया उसे आतंकी हमलों से कैसे बचाया जायेगा| पद्म श्री हंसराज हंस के रोहिणी स्थित कार्यालय पर जिस तरह से खुलेआम गोलीबारी की गई उसने राजधानी में एक दहशत का माहौल बनाया है| दिल्ली की जनता यह सोचने पर मजबूर हो गई है कि जब सांसद ही सुरक्षित नहीं है तो फिर आम जनता का क्या होगा? ऐसा दहशत का माहौल पिछली सरकार में देखने को नहीं मिला था. लेकिन बदलते हालात भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं. दिल्ली के बिगड़ते हालात भारतीय जनता पार्टी के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है| खासकर तब जबकि दिल्ली में कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं| बैठे-बिठाए भारतीय जनता पार्टी की नाकामियां विपक्ष को रोज नए मुद्दे दे रही है| खासकर दम तोड़ती कांग्रेस में भाजपा की नाकामियों ने नई ऊर्जा डाल दी है| दम तोड़ चुकी कांग्रेस को फिर से उम्मीद की किरण नजर आने लगी है| यही वजह है कि कांग्रेस नेता हर मुद्दे को भुनाने में लगे हुए हैं|

बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah के लिए यह मंथन का समय है| दिल्ली के वर्तमान हालात से सबक लेते हुए Amit Shah को भविष्य के लिए तैयार रहना होगा वरना अतीत के पन्नों पर उनका नाम हिंदुस्तान के नाकाम गृह मंत्रियों की सूची में पहले पायदान पर दर्ज हो जाएगा|

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