दिल्ली

“वर्दी वाले गुंडों” को तानाशाह मत बनाइये मिस्टर शाह

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली

पुलिस और वकील लोकतंत्र के दो ऐसे पहिए हैं जिनके बिना इंसाफ की गाड़ी एक कदम का फासला भी तय नहीं कर सकती| हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब यह दोनों पहिए अलग-अलग दिशा में चल रहे हैं| मामला सिर्फ एक जरा सी बात का है जिसने पुलिस और वकीलों की वर्षों की दोस्ती खत्म कर दी है| दिल्ली की सड़कों पर पुलिस और उनके परिजन इंसाफ की भीख मांग रहे हैं| वह दिल्ली के पुलिस अफसरों से ऐसी छूट मांग रहे हैं कि उन्हें वकीलों को सड़कों पर मारने की इजाजत मिल जाए और उनका बदला पूरा हो सके| क्या यह जायज है? क्या पुलिस को सरेराह गुंडागर्दी का लाइसेंस मिलना चाहिए? यह लड़ाई इंसाफ की नहीं बल्कि पुलिस के अहम की बन चुकी है| इस मामले को अगर गंभीरता से देखें तो मामला सिर्फ रोटी का था| दोपहर 2:00 बजे एक अदालत में एक वकील का केस लगा हुआ था| वह वकील अपनी गाड़ी पार्क करके उस केस को अटेंड करने के लिए जाना चाहता था लेकिन मौके पर मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे जाने की इजाजत नहीं दी| वह रिक्वेस्ट करता रहा गिराता रहा, सिर्फ 10 मिनट मांगे थे उसने| उसके पास वक्त नहीं था इसलिए पुलिसकर्मियों के साथ बहस में उलझना नहीं चाहता था. उसने अपनी गाड़ी की चाबी पार्किंग वाले को थमा दी थी ताकि वह उसकी गाड़ी सही जगह पार्क कर दे| क्योंकि मंगलवार को बार के इलेक्शन होने थे इसलिए पार्किंग की समस्या तीस हजारी कोर्ट में कुछ अधिक ही बढ़ गई थी| लेकिन पुलिसकर्मी उसकी मजबूरी समझने को तैयार नहीं थे और बहस पर उतारू हो गए| दोनों के बीच बहस हुई तो वकील कमजोर पड़ गया और पुलिस वाले उस पर टूट पड़े, मारते हुए उसे लॉकअप तक ले जाया गया| यहां सारी मानवीय संवेदनाएं हवा हो गईं. वकीलों में जब यह बात फैलने लगी तो डीजे लॉकअप गए और उस वकील से मिलने की इच्छा जताई लेकिन पुलिस वालों ने डीजे को भी पीड़ित वकील से नहीं मिलने दिया| इसके बाद वकीलों में गुस्सा बढ़ा और फिर वकीलों ने वही किया जो पुलिसवाले अब करने का लाइसेंस मांग रहे हैं. जो लॉकअप जलता हुआ सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा है यह वही लॉकअप है जिसमें वकील को पीटने के बाद बंद किया गया था. अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार पुलिस कर्मचारी इतने बेलगाम कैसे हो गए कि उन्होंने एक पार्किंग के लिए वकील को पीट दिया और लॉकअप में बंद कर दिया| इस पर बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब पुलिसकर्मी विरोध प्रदर्शन करके गुंडागर्दी का लाइसेंस मांगने लगे| अगर पुलिस अपने विरोध प्रदर्शन को सही मानती है तो फिर वकीलों को गलत कैसे कह सकती है. क्योंकि वकीलों ने भी तो वही किया जो अब पुलिस करना चाहती है.

जब पुलिस के पास गुंडागर्दी का, किसी को पीटने का लाइसेंस नहीं है तब पुलिसकर्मी एक वकील को उसी के कोर्ट परिसर से पीटते हुए लॉकअप तक ले जाते हैं| एक निहत्थे वकील पर गोलीबारी करते हैं, ये कैसा सेल्फ डिफेंस है? अगर ऐसे में उन्हें गुंडागर्दी का लाइसेंस दे दिया जाए तो हालात क्या होंगे इसका अंदाजा खुद ब खुद लगाया जा सकता है| क्या हिंदुस्तान में पुलिसिया राज चलना चाहिए या लोकतंत्र को जगह मिलनी चाहिए| अगर गोली का जवाब गोली ही है तो फिर कानून की जरूरत ही क्या है? पुलिस की जरूरत क्या है? हर आदमी को फ्री किया जाना चाहिए कि वह अपना बदला अपने तरीके से ले ले. हैरानी की बात तो यह है कि यह बातें वो पुलिस वाले कर रहे हैं जो दुनियाभर से यह कहते फिरते हैं कि कानून हाथ में न लें, पुलिस के पास आएं.

वकील को पीटने वाले पुलिसकर्मी यह क्यों भूल गए कि वह एक सरकारी मुलाजिम है और अनुशासन उनका पहला धर्म है और वह वकील एक आम आदमी है जिसकी सुरक्षा के लिए पुलिस को लगाया गया है न कि उस वकील के साथ हाथापाई करने उसे पीटकर लॉकअप में बंद करने के लिए| विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ पुलिसकर्मी यह कहते नजर आए कि उन्हें पूरी छूट मिलनी चाहिए वह वकीलों को जान से मार देंगे| क्या सरकार उन्हें 50, 70 हजार रुपए की तनख्वाह इसीलिए देती है कि वह मनमाने तरीके से किसी को भी गोली मार दें? निहत्थे वकील पर गोली चलाने का अधिकार उन्हें किसने दिया था, यह जांच का विषय है और इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए| हाईकोर्ट ने जब आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने का आदेश दिया तो उसका पालन क्यों नहीं किया गया? क्या पुलिस अपने तरीके से देश चलाएगी? या कानून के मुताबिक संविधान और जनता की रक्षा करेगी| 3 दिन से वकील घर बैठे हुए हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं| इनमें से ज्यादातर ऐसे वकील है जो रोज दो-चार सौ ही कमा पाते हैं और उसी से उनका परिवार चलता है| उन्हें कोई सरकारी तनख्वाह नहीं मिलती| उनके बच्चों की स्कूल की फीस उनकी दिहाड़ी पर ही निर्भर करती है| 3 दिन से खाली बैठे वकीलों के हाथ एक फूटी कौड़ी तक नहीं लगी है| क्या यह वकील शौकिया हड़ताल पर हैं या फिर वाकई इनका जख्म इतना गहरा है, इनकी  सुनने वाला कोई नहीं| अदालती फैसलों पर अगर कार्रवाई नहीं होगी तो जनता में पुलिस क्या संदेश देना चाहती है? क्या कर रहे हैं गृहमंत्री अमित शाह? पुलिस को इस कदर बेकाबू होने की इजाजत क्यों दी गई? पुलिस वाले जिस सीसीटीवी फुटेज की दुहाई दे रहे हैं और कह रहे हैं कि महिला डीसीपी तक को वकील ने नहीं छोड़ा तो वह पुलिस वाले यह क्यों भूल रहे हैं यह मामला पुलिस की ही उस हरकत की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया जो उन्होंने एक वकील के साथ की थी| उस वकील के दो छोटे-छोटे बच्चे थे जिसे मारते हुए पुलिस लॉकअप तक ले गई| उस वक्त पुलिस की मानवीय संवेदनाएं कहां गई थी? पुलिस वाले यह भी भूल रहे हैं कि अगर वकीलों की भीड़ चाहती तो वह महिला डीसीपी को जान से भी मार सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया| सीसीटीवी फुटेज में साफ देखा जा रहा है कि महिला डीसीपी को भीड़ ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया उसने सिर्फ पुलिसकर्मियों को पकड़ा जिनके खिलाफ उनके मन में आक्रोश था| अगर उन्हें महिला डीसीपी का ख्याल नहीं होता तो सैकड़ों वकीलों की मौजूदगी में चंद पुलिस वाले महिला डीसीपी को बचाने में कामयाब नहीं हो पाते| पुलिस कर्मचारियों के परिजन भी इंसाफ के लिए सड़कों पर नजर आए| यह मामला बेहद मार्मिक था| निश्चित तौर पर पुलिस वालों के परिजन जो झेलते हैं वह किसी से छुपा नहीं है| पुलिस वाले 24 घंटे नौकरी करते हैं और परिवार को वक्त नहीं दे पाते| इतनी मेहनत के बाद भी जब कोई अपना बेवजह सिर्फ इस वजह से पीटा जाए कि उसके तन पर खाकी वर्दी चढ़ी हुई है तो परिजनों और बच्चों को गुस्सा तो आएगा| लेकिन वकीलों के परिजनों और बच्चों के बारे में किसी ने नहीं सोचा. एक वकील जब सुबह काला कोट पहनकर घर से निकलता है तो उसके साथ उसके अपनों के सपने भी निकलते हैं, उनकी उम्मीदें भी निकलती हैं. शाम को वही उम्मीदें अगर लहूलुहान होकर घर लौटें तो उन मासूम बच्चों पर क्या गुजरती होगी ये वर्दी वाले गुंडे कभी नहीं समझ सकते. तीस हजारी कोर्ट में आने वाले लगभग 70 फीसदी वकीलों की कहानी कुछ ऐसी ही है. उनके लिए एक केस मिलना किसी नामुमकिन सपने के पूरा होने जैसा ही है. धरना प्रदर्शन करने वाले 90 फीसद वकील यही लोग हैं जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं. उन्हें कोई सरकारी तनख्वाह नहीं मिलती. दो दिन घर बैठ जाएं तो तीसरे दिन रोटी की कोई गारंटी नहीं होती. ऐसे में उनके सपने को अगर कोई 50 हजार की पगार पाने वाला खाकी वर्दी धारी कुचल देगा तो उस वकील का गुस्सा क्यों नहीं फूटेगा? अत: ये वक्त बदलेे का नहींं समझदारी से का लेनेे का हैै.  राजनेताओं को समझना चाहिए कि पुुुुुलिस इतनी बेलगाम न हो जाए कि जिसे चाहेे पीटने लगे और जिस पर चाहे गोली चला दे.

Police protest

अगर केंद्र सरकार आज पुलिस के इस गलत काम को संरक्षण देती है तो यह हिन्दुस्तान के भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा. चूंकि पुलिसकर्मी इस मसले पर एकजुट हैं सिर्फ इसलिए उन्हें सही नहीं माना जा सकता. पुलिस को तानाशाह बनने मत दीजिए क्योंकि वर्दी वाला जब गुंडा बन जाएगा तो फिर किसी के काबू नहीं आएगा. पुलिस की पावर का गलत इस्तेमाल हमेशा होता रहा है और आगे भी होता रहेगा लेकिन अगर पुलिस को इसकी खुली छूट दे दी गई तो नतीजे कितने भयावह होंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. इसलिए मिस्टर अमित शाह पुलिस पर लगाम लगाइये उसे तानाशाह मत बनाइये.

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