पंजाब

नहीं मिला वफादारी का ईनाम, अब झाड़ू थामने की तैयारी कर रहे हेनरी के करीबी पूर्व कांग्रेस पार्षद प्रदीप राय

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नीरज सिसौदिया, जालंधर

सियासत के खेल में कब कौन बादशाह बन जाए और कब किस के पैरों के नीचे से जमीन निकल जाए यह कोई नहीं जानता| उपेक्षा से नाराज चल रहे हेनरी खेमे के मजबूत सिपाही निर्मल सिंह निम्मा को जहां कुछ महीनों पहले ही मना लिया गया था वहीं अब हेनरी का एक और सिपाही उपेक्षा से नाराज होकर पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी का झाड़ू थामने की तैयारी कर रहा है| हालांकि यह सिपाही हेनरी का बेहद खास रहा है लेकिन जालंधर नॉर्थ विधानसभा सीट से इनका कोई वास्ता नहीं रहा| यही वजह रही कि हेनरी अपने इस सिपाही को पार्टी में वह मान सम्मान नहीं दिला सके जिसका वह हकदार था| जालंधर वेस्ट में रहने वाले इस शख्स का नाम प्रदीप राय है जो पिछली बार कांग्रेस की सीट से पार्षद चुने गए थे लेकिन इस बार विधायक सुशील रिंकू ने उनका पत्ता साफ करा दिया और इस बार उन्हें पार्टी से टिकट भी नहीं दिया गया|
दरअसल, डॉ प्रदीप राय और हेनरी का साथ बहुत पुराना है| सियासत में आने से पहले प्रदीप राय दवाओं का कारोबार किया करते थे| शहीद बाबू लाभ सिंह नगर में रहने वाले प्रदीप राय को सियासत में लाने का श्रेय भी हेनरी को ही जाता है| साफ-सुथरी छवि वाले दवा कारोबारी रहे प्रदीप राय को स्थानीय लोग डॉक्टर के नाम से भी जानते हैं| सियासत में भले ही प्रदीप राय की इंट्री देर से हुई हो लेकिन समाज सेवा के क्षेत्र में वह पहले से ही एक्टिव थे| यही वजह थी कि कांग्रेस के सामने जब अकाली दल के टक्कर का कोई तोड़ नहीं था उस वक्त प्रदीप राय को मैदान में उतारा गया और उन्होंने लगातार जीत दर्ज टक्कर को चारों खाने चित कर जीत दर्ज की और पार्षद बन गए| यह वह दौर था जब पूरे शहर के विभिन्न वार्डों से सबसे ज्यादा सीटें अकाली-भाजपा गठबंधन को मिली थीं और नगर निगम की सत्ता पर मेयर सुनील ज्योति काबिज हुए थे| इस मुश्किल दौर में प्रदीप राय ने कांग्रेस को अपने वार्ड से जीत दिलाई थी| कहते हैं लहरों के साथ तो सभी तैर लेते हैं लेकिन असल तैराक वो होता है जो लहरों के चीर कर आगे बढ़ता है| प्रदीप राय भी उन्हीं में से एक हैं जो लहरों को चीर कर आगे बढ़े और जब वह चुनावी मैदान में उतरे तो भारतीय जनता पार्टी और अकाली गठबंधन की लहर भी उनका रास्ता नहीं रोक सकी| यही वजह थी कि गठबंधन प्रत्याशी को प्रदीप राय से मुंह की खानी पड़ी| विपरीत परिस्थितियों में पार्षद बने प्रदीप राय का कद बढ़ने लगा था| एक तरफ प्रदीप राय की साफ-सुथरी छवि और दूसरी तरफ हेनरी का साथ उनकी सियासी गाड़ी को तेज रफ्तार से आगे बढ़ा रहा था| लेकिन यह बात हेनरी विरोधी गुट को नागवार गुजरी और जिसे दुश्मन नहीं हरा सके वो अपनों से हार गया| उसकी अपनी ही पार्टी के नेताओं ने उन्हें ही राजनीति का शिकार बना लिया.
दरअसल, नगर निगम में कांग्रेस के दो गुट बन गए थे जिसमें एक का नेतृत्व जगदीश राज राजा कर रहे थे तो दूसरे डायनमिक ग्रुप का नेतृत्व सुशील कुमार रिंकू कर रहे थे| सुशील रिंकू जैसे ही पार्षद से विधायक पद पर काबिज हो गए वैसे ही प्रदीप राय की मुश्किलें बढ़ती गई| दरअसल, इसके पीछे एक वजह डायनमिक ग्रुप के नेताओं की मेयर सुनील ज्योति के साथ नज़दीकियां भी रहीं| इस ग्रुप की नजदीकियां जालंधर नॉर्थ के विधायक केडी भंडारी के साथ भी रहीं जिसके चलते हैनरी खेमा इस गुट को पसंद नहीं करता था| लेकिन राणा गुरजीत सिंह का हाथ होने की वजह से रिंकू खेमा हावी होता गया| इसी तरह 5 साल गुजर गए और फिर वक्त आया नगर निगम चुनाव का| प्रदीप राय को पूरी उम्मीद थी कि उनकी पिछली बार की विपरीत परिस्थितियों में हुई जीत को देखते हुए पार्टी उन्हें इस बार भी जरूर मैदान में उतारेगी लेकिन हेनरी खेमे का यह वफादार सिपाही रिंकू खेमे की सियासत का शिकार हो गया| प्रदीप राय को टिकट नहीं दिया गया और उनकी जगह जगदीश समराय को मैदान में उतारा गया| वार्ड बंदी भी इस तरह से की गई कि प्रदीप राय किसी भी वार्ड से आजाद लड़े तो उन्हें जीत न मिल सके| इस धोखे को प्रदीप राय बर्दाश्त नहीं कर सके और वह आजाद प्रत्याशी के तौर पर मैदान में कूद पड़े| क्योंकि प्रदीप राय का वार्ड हेनरी के विधानसभा क्षेत्र में नहीं आता इसलिए यहां हैनरी भी प्रदीप राय की कोई खास मदद नहीं कर पाए| निराश प्रदीप राय के पास मैदान में अकेले ही किस्मत आजमाने के सिवाय कोई चारा नहीं था| प्रदीप राय को जनता का प्यार तो मिला लेकिन उनके खिलाफ भाजपाई और कांग्रेसियों के एक होने से वह दोबारा जीत की इबारत लिखने में नाकाम रहे| इसके बावजूद प्रदीप राय नेे उम्मीद से कहीं अधिक वोट हासिल किए| वक्त आगे बढ़ता गया और प्रदीप राय की निराशा भी बढ़ती गई| पिछले कुछ महीनों से प्रदीप राय की यह निराशा और बढ़ती गई जिसका फायदा उठाने की जुगत में आम आदमी पार्टी लग गई| सूत्र बताते हैं कि प्रदीप राय अब आम आदमी पार्टी में सियासी जमीन तलाश रहे हैं| इसे लेकर प्रदीप राय के पुराने जानकार भगवंत मान ने खुद उन्हें आप में शामिल होने का ऑफर दिया है. सूत्र यह भी बताते हैं कि भगवंत मान के साथ उनकी मीटिंग भी हो चुकी है| मुमकिन है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले प्रदीप राय के हाथों में झाड़ू देखने को मिले| अगर ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर सुशील रिंकू की मुश्किलें बढ़ेंगी| प्रदीप राय पहले ही सुशील रिंकू पर राजनीति करने का आरोप लगा चुके हैं| वह सार्वजनिक रूप से सुशील रिंकू को गुटबाजी बढ़ाने का जिम्मेदार भी ठहरा चुके हैं| अगर प्रदीप राय पार्टी छोड़कर झाड़ू थाम लेते हैं तो पार्टी हाईकमान के समक्ष सीधा सा संदेश जाएगा कि रिंकू की वजह से जालंधर वेस्ट में पार्टी कमजोर हो रही है और पार्टी के मजबूत नेता पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं| वहीं, हेनरी समर्थकों में भी यह संदेश जाएगा कि हेनरी अब अपने वफादार सिपाहियों की पार्टी में हिफाजत करने में असमर्थ हैं| ऐसे में संभव है कि कुछ और मजबूत सिपाही भी हैनरी खेमे से दूरी बना लें| बहरहाल, प्रदीप राय आम आदमी पार्टी का दामन कब थाम लेंगे यह तो निश्चित नहीं है लेकिन उनकी मौजूदगी आम आदमी पार्टी को एक नई ऊर्जा और कांग्रेस को निराशा जरूर देगी|

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